
कानून और न्याय:फोन कॉलर प्रदर्शित करने की सेवा पर लोकहित याचिका दायर!
– विनय झैलावत
सर्वोच्च न्यायालय ने इसी माह एक जनहित याचिका में दूरसंचार नेटवर्क ऑपरेटरों को सीएनपी (काॅलिंग नेम प्रेजेंटेशन सर्विस) को लागू करने के निर्देश देने की मांग करते हुए भारत सरकार से जवाब मांगा है। सीएनपी को हम एक ऐसी सेवा कह सकते हैं जिस पर किसी के द्वारा फोन करने पर आपके मोबाईल पर फोन करने वाले का नाम प्रदर्शित होता है। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने साइबर धोखाधड़ी की समस्या की व्यापकता पर विचार करते हुए जनहित याचिका में नोटिस जारी किया। सीएनपी को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा एक सुविधा के रूप में पेश किया गया था जो उपयोगकर्ता के फोन पर काॅल करने वाले का नाम प्रदर्शित करता है। यह स्पैम और धोखाधड़ी काॅल का मुकाबला करने में सहायता कर सकता है। सीएनपी को पहले से मौजूद ‘ट्रू काॅलर’ के विकल्प के रूप में प्रस्तावित किया गया है, जिसमें एक ही विशेषता है। लेकिन, जानकारी हमेशा सटीक नहीं होती।
याचिकाकर्ता, गौरीशंकर बेंगलुरू के, जिन्होंने तेजी से बढ़ते साइबर अपराधों और अवांछित काॅल के आलोक में वर्तमान जनहित याचिका दायर की है। याचिका में दूरसंचार विभाग और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा सीएनपी के कार्यान्वयन में देरी के मुद्दे को रेखांकित किया गया है। जनहित याचिका में कहा गया है कि ‘‘इस मुद्दे की दबाव वाली प्रकृति के बावजूद, पिछले ढाई वर्षों के दौरान एक स्पष्ट कार्यान्वयन समयसीमा और सीएनपी की प्रगति की कमी के कारण यह जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है।‘‘ अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने साइबर धोखाधड़ी पर अंकुष लगाने और ऐसे अपराधों की त्वरित रिपोर्टिंग के लिए एक कुषल प्रषासनिक तंत्र के साथ-साथ तीन महीने की अवधि के भीतर सीएनपी को लागू करने का निर्देष चाहा है। सन् 2022 में प्रत्यर्थी के मूल पत्र के बाद सीएनपी के कार्यान्वयन में ठोस प्रगति की कमी और याचिकाकर्ता की सूचना एकत्र करने की कवायद के कारण, यह जनहित याचिका यह सुनिष्चि करने के लिए अंतिम उपाय के रूप में दायर की गई है कि सीएनपी को तुरंत लागू किया जाए। याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह प्रत्यर्थी को तीन माह के भीतर सीएनपी को लागू करने और आवश्यक पूरक उपायों की स्थापना करने का निर्देष देते हुए एक रिट आॅफ मैंडमस (परमादेश याचिका) जारी करें। इसमें धोखाधड़ी वाले काॅल के लिए एक रिपोर्टिंग तंत्र, साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल के साथ ही सीएनपी सेवा का एकीकरण और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए अन्य उपयुक्त आदेश पारित करने की प्रार्थना की गई है।
ट्राई ने ही काॅलर नाम प्रदर्शित करने के लिए सीएनपी सेवा शुरू करने की सिफारिश की थी। ट्राई ने सुझाव दिया था कि सभी एक्सेस सेवा प्रदाता अपने टेलीफोन ग्राहकों को उनके अनुरोध पर कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (सीएनपी) पूरक सेवा प्रदान करें। दिसंबर 2022 में ट्राई ने सिफारिश की थी कि भारतीय दूरसंचार नेटवर्क में पूरक सेवा के रूप में कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (सीएनपी) शुरू किया जाना चाहिए। सीधे शब्दों में कहें तो सीएनपी एक पूरक सेवा है जो किसी के काॅल पर फोन करने वाले का नाम फोन स्क्रीन पर फ्लैश (प्रदर्शित) करने में सक्षम बनाती है। ट्राई ने अपनी सिफारिशों में कहा कि देशी स्मार्टफोन उपकरण और ट्रू काॅलर और भारत कॉलर आईडी और एंटी-स्पैम जैसे थर्ड-पार्टी ऐप भी काॅलिंग पार्टी नाम पहचान और स्पैम पहचान सुविधाएं प्रदान करते हैं। लेकिन, ये सेवाएं क्राउड-स्रोत डेटा पर आधारित है, जो विश्वसनीय नहीं हो सकते हैं।
यह सुविधा काॅल किए गए व्यक्ति को काॅलिंग पार्टी के बारे में जानकारी प्रदान करेगी (ट्रू काॅलर और भारत काॅलर आईडी और एंटी-स्पैम के समान)। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है, कि टेलीफोन ग्राहक आने वाली काॅल के बारे में एक सूचित विकल्प चुन सकें और अज्ञात या स्पैम काॅल करने वालों द्वारा उत्पीड़न पर अंकुश लगा सकें। मौजूदा तकनीकें संभावित रिसीवर के हैंडसेट पर काॅलिंग इकाई का नंबर प्रस्तुत करती हैं। चूंकि, ग्राहकों को फोन करने वाले का नाम और पहचान नहीं दी जाती है, इसलिए वे कभी-कभी यह मानते हुए उन्हें जवाब नहीं देते हैं कि यह पंजीकृत टेलीमार्केटरों से अवांछित वाणिज्यिक संचार हो सकता है। इससे वास्तविक काॅल का भी जवाब नहीं दिया जा सकता है। ट्रू काॅलर की 2021 ग्लोबल स्पैम एंड स्कैम रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में हर महीने प्रति उपयोगकर्ता स्पैम काॅल की औसत संख्या 16.8 थी, जबकि इसके उपयोगकर्ताओं द्वारा प्राप्त कुल स्पैम वाॅल्यूम अकेले अक्टूबर 2022 में 380 करोड़ काॅल से अधिक थी।
इसमें कई चुनौतियां भी है। काॅल सेट करने में लगने वाले समय में थोड़ी वृद्धि होने की संभावना है। तेज वायरलेस नेटवर्क (4जी या 5जी) से अपेक्षाकृत धीमी (2जी या 3जी) या इसके विपरीत की ओर बढ़ने पर भी प्रतिक्रियाशीलता प्रभावित हो सकती है। यह विशेष रूप से स्पष्ट नहीं है कि (सीएनपी) तंत्र काॅल करने वाले के गुमनाम रहने के अधिकार को कैसे संतुलित करेगा, जो गोपनीयता के अधिकार का एक आवश्यक घटक है। इस परिप्रेक्ष्य में एक व्यक्ति कई कारणों से गुमनाम रहने का विकल्प चुन सकता है। उदाहरण के लिए, व्हिसल ब्लोअर या कर्मचारियों को परेशान किया जाना। यह आदर्श होगा कि किसी तीसरे पक्ष द्वारा संचालित केंद्रीकृत डेटाबेस होस्ट करने और साझा करने के लिए कहने के बजाय उन तर्ज पर एक ढांचा विकसित किया जाए।
इसमें आगे का रास्ता भी हमें पहचानना होगा। केवल पहचान दिखाने का ज्यादा मतलब नहीं होगा। एक बार प्रणाली (स्पैमर्स अर्थात बड़ी संख्या में अनवांछित ई-मेल भेजने वाले व्यक्ति की पहचान करने और चिन्हित करने के लिए) का निर्माण हो जाता है। सैकड़ों लोग इस प्रणाली का उपयोग करने में सक्षम होते हैं। तभी प्रणाली का सार्थक प्रभाव पड़ेगा। इंटरफेस एक प्रभावी तंत्र के साथ उपयोगकर्ता के अनुकूल होना चाहिए। अभिदाताओं की सक्रिय भागीदारी यह सुनिश्चित करेगी कि स्पैमर्स की सही पहचान हो और वे आगे काॅल करने में असमर्थ हों। सरकार को डिजिटल साक्षरता में भी निवेश करना चाहिए। नागरिकों को तकनीक का बेहतर उपयोग करने के लिए कुषल बनाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने डेटा को अंधाधुंध रूप से साझा न करें और उन्हें वित्तीय धोखाधड़ी और स्पूफिंग जैसे खतरों के बारे में सूचित किया जाए।
ट्राई ने सुझाव दिया कि सभी एक्सेस प्रदाता अपने टेलीफोन ग्राहकों को उनके अनुरोध पर काॅलिंग नेम प्रेजेंटेशन (सीएनपी) पूरक सेवा प्रदान करें। ट्राई ने विज्ञप्ति में कहा कि थोक कनेक्शन और व्यावसायिक कनेक्शन रखने वाली ग्राहक संस्थाओं को ग्राहक आवेदन पत्र (सीएएफ) में दिखाई देने वाले नाम के स्थान पर अपना पसंदीदा नाम प्रस्तुत करने की सुविधा दी जानी चाहिए। ट्राई ने बताया कि यह पसंदीदा नाम कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ पंजीकृत ट्रेडमार्क नाम या जीएसटी परिषद के साथ पंजीकृत व्यापार नाम या सरकार के साथ विधिवत पंजीकृत कोई अन्य अनूठा नाम हो सकता है। हालांकि, यह ऐसे नाम के स्वामित्व को साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने की अभिदाता इकाई की क्षमता पर निर्भर है।
देखना होगा कि सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका पर क्या निर्णय देता है? यह भी जानना दिलचस्प होगा कि भारत सरकार का इस याचिका पर क्या रुख होगा। लेकिन निश्चित ही याचिकाकर्ता ने मोबाइल की एक जटिल और परेशान करने वाली समस्या पर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस समस्या का ऐसा कोई समाधान निकलेगा जो मोबाईल उपयोगकर्ताओं को धोखाधड़ी से बचाने में मददगार साबित होगा।