Law and Justice:  आरक्षण व्यवस्था, कानून और समाज पर इसका असर

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न्याय और कानून:  आरक्षण व्यवस्था, कानून और समाज पर इसका असर

आरक्षण पर देश की सर्वोच्च अदालत में दिलचस्प एवं विचारोत्तेजक बहस चल रही थी। अनुच्छेद 15 (6) के तहत संशोधन राज्य को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण सहित नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। इसमें कहा गया है कि इस तरह के आरक्षण किसी भी शैक्षणिक संस्थान में किए जा सकते हैं, जिसमें सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त दोनों निजी संस्थान शामिल हैं। लेकिन अनुच्छेद 30 (1) के तहत आने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाऐं इसमें सम्मिलित नहीं है।

भारत की संसद ने 9 जनवरी 2019 को संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 अधिनियमित किया था। इसने राज्यों को केवल आर्थिक मानदंडों के आधार पर उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में आरक्षण करने में सक्षम बनाया था। अधिनियम ने 15(6) और 16(6) को सम्मिलित करके संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया गया। इसे 12 जनवरी 2019 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी और उसी दिन राजपत्र में प्रकाशित भी किया गया।

अनुच्छेद 16(6) राज्य को नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। ये प्रावधान मौजूदा आरक्षणों के अतिरिक्त दस प्रतिशत की सीमा के अधीन है। 103वें संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 20 से अधिक याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि संशोधन संविधान की मूल भावनाओं का उल्लंघन करता है। यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रकाश में आरक्षण केवल आर्थिक मानदंडों पर आधारित नहीं हो सकता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आर्थिक आरक्षण से बाहर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। साथ ही उक्त संशोधन उन आरक्षणों का परिचय देता है जो इंद्रा साहनी द्वारा स्थापित आरक्षण 50% की उच्चतम सीमा से अधिक है। राज्य सहायता प्राप्त नहीं करने वाले शैक्षणिक संस्थानों पर आरक्षण लागू करना समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

वर्तमान में शिक्षा और सार्वजनिक नियुक्तियों में 49% सीटें आरक्षित हैं, जिनमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रमषः 15.7% और 27%  कोटा है। 2019 में पांच दिनों की सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को संविधान पीठ को सौंपने के मुद्दे पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। 5 अगस्त 2020 को कोर्ट ने इस मामले को पांच जजों की बेंच को रेफर करने का फैसला किया। 30 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट के पहले सप्ताह से चार अन्य संविधान पीठ के मामलों के साथ सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध किया। मुख्य न्यायाधिपति यूयू ललित के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई की है। मुख्य न्यायाधिपति ने राज्य में मुसलमानों के लिए आरक्षण प्रदान करने वाले आंध्र प्रदेश के 2005 के अधिनियम को चुनौती देने के साथ-साथ इस मामले की भी सुनवाई करने के लिए सहमति प्रदान की।

इस संबंध में दायर याचिकाओं में 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। यह उल्लेखनीय है कि इसी संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में खंड (6) शामिल किया गया था। इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 31 जुलाई 2019 को अपना निर्णय सुरक्षित रखा था। सर्वोच्च न्यायालय को यह तय करना था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये आरक्षण की वैद्यता से संबंधित इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जाए अथवा नहीं।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि 103वां संविधान संशोधन स्पष्ट तौर पर असंवैधानिक है। क्योंकि, यह संविधान के मूल ढांचे में बदलाव करता है। याचिका में यह कहा गया था कि यह संविधान संशोधन वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय के विपरीत है। इस फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर यह कहा था कि पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक कसौटी के संदर्भ में नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का एक मुख्य तर्क यह भी था कि सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए लागू किए आरक्षण के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई 50% की सीमा का उल्लंघन करते हैं।

इस संबंध में केंद्र सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के सामाजिक उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था करना आवश्यक है। इस वर्ग को मौजूद आरक्षण प्रावधानों का लाभ नहीं मिलता है। सरकार ने यह भी कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग श्रेणी में देष का एक बड़ा वर्ग शामिल है। इनका भी उत्थान आवष्यक है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये आरक्षण का उद्देष्य उन लोगों का उत्थान करना है जो अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं।

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तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने कहा था कि संविधान पीठ मुख्य तौर पर इस प्रष्न पर विचार करेगी कि ‘आर्थिक पिछड़ापन’ सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिए एकमात्र मानदंड हो सकता है अथवा नहीं। साथ ही संविधान पीठ यह भी तय करेगी कि क्या आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत से अधिक हो सकती है। इसी खंडपीठ ने 103वें संविधान संशोधन के कार्यान्वयन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। तीन न्यायाधीशों वाली इस खंडपीठ ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) और सर्वोच्च न्यायालय 2013 के नियमों से स्पष्ट है कि जिन मामलों में कानून की व्याख्या संबंधी प्रश्न शामिल हैं, उन्हें संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या के लिए संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो, तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पांच न्यायाधीश हो।

सन् 2019 में 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में संशोधन किया गया था। संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) को सम्मिलित किया गया, ताकि अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ प्रदान किया जा सके। संविधान का अनुच्छेद 15 (6) राज्य को खंड (4) और खंड (5) में उल्लेखित लोगों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान बनाने और शिक्षण संस्थानों (अनुदानित तथा गैर-अनुदानित) में उनके प्रवेश के लिए एक विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है। इसमें संविधान के अनुच्छेद 30 के खंड (1) में संदर्भित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को शामिल नहीं किया गया है। संविधान का अनुच्छेद 16 (6) राज्य को यह अधिकार देता है कि वह खंड (4) में उल्लेखित वर्गों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का कोई प्रावधान करें। यहां आरक्षण की अधिकतम सीमा दस प्रतिषत है, जो कि मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त है।