Law And Justice: सीनियर सिटीजन के लिए जरूरी है कानूनी सुरक्षा

851

भारत में दिन-प्रतिदिन वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटीजन) के साथ प्रताड़ना, उपेक्षा एवं क्रूरता के प्रकरण बढ़ते ही जा रहे है। पूरी दुनिया में वृद्धों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने की तरफ कदम उठाए हैं।

इस बारे में भारत में भी कानूनी कवच को मजबूत करना जरुरी है। संसद में सन 2011 में प्रस्तुत बिल पर प्रभावी कार्यवाही न होना दुर्भाग्यपूर्ण है।


इन दिनों वरिष्ठ नागरिकों से जुड़ी ‘सीनियर सिटीजन पंचायत’ जैसी संस्थाएं बहुत व्यस्त है। वरिष्ठ नागरिक अपने उत्पीड़न, शारीरिक रूप से प्रताड़ना और भरण-पोषण न करने की शिकायत लेकर आ रहे है। यह आश्चर्य और दुखदः स्थिति है कि ये शिकायतें और इस प्रकार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है।

लगता है कि मानों समाज में आदर, मानवीय संवेदनाएँ, लगाव, आत्मीयता और अपने वरिष्ठजनों के प्रति स्नेह समाप्त होता जा रहा है।

पूरे देश में अनेक घटनाओं में माता-पिता द्वारा अपने बच्चों द्वारा की जा रही क्रूरता की शिकायत की जा रही है। इनमें मारपीट से लेकर मानसिक एवं आर्थिक क्रूरता सम्मिलित है।

इन शिकायतों के विरूद्ध माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं उनके कल्याण के लिए ‘माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007′ प्रचलन में है।

इसमें विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को कानूनी संरक्षण देने का प्रयास किया गया है, जिन्हें अपने बच्चों से प्रताड़ना मिल रही है।

प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं और उसके परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उचित जीवन स्तर जिसमें भोजन, कपड़ा, आवास एवं चिकित्सकीय सुविधा सम्मिलित है।

साथ ही आवश्यक सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और बेरोजगारी, बीमारी, असमर्थता, विधवापन, वृद्धावस्था अथवा उसके नियंत्रण की परिस्थितियों में जीवन निर्वाह की अन्य सभी सुरक्षा का अधिकार भी है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 भी इसी भावना को प्रकट करता है।

इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी दैहिक स्वतंत्रता को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही वंचित किया जा सकता है। अनुच्छेद 39 भी नागरिकों की संरक्षण की बात करता है। भारत में वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत 2011 की जनगणना के अनुसार कुल आबादी का 8.6% है। इसके सन 2050 तक 21% से अधिक होने की संभावना है।

भारत में परिवारों और संस्कारों में आज भी संयुक्त परिवार की प्रथा है। लेकिन, धीरे-धीरे एकल परिवारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इनमें वरिष्ठ नागरिक एकाकी होते जा रहे हैं तथा उनकी देखभाल एक जटिल समस्या बन गई है। संयुक्त परिवारों में वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान और देखभाल एक आसान काम था।

लेकिन, संयुक्त परिवारों की धारणा धीरे-धीरे समाप्त होने से मुश्किलें बढ़ती जा रही है। अपने माता-पिता से उनकी संपत्ति हड़पने तथा बाद में उनकी देखभाल न करने तथा प्रताड़ित करने की घटनाएं देश में तेजी से बढ़ी है।

पहले हम विदेशों में वृद्धाश्रम में अपने बुजुर्गों को रखने के मामलों पर आश्चर्य करते थे, लेकिन आज हमारे ही देश में इन आश्रमों की स्थापना, उनमें बुजुर्गों को रखने की घटनाएं और तरह-तरह के किस्से तेजी से बढ़े हैं।

इस प्रकार की घटनाओं को दृष्टिगत रखते हुए माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम सन् 2007 में प्रभावशील हुआ था। यह अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण प्रदान करने तथा नैतिक बाध्यता आरोपित करता है। यह राज्य सरकारों द्वारा प्रत्येक जिले में वृद्धावस्था स्थापित करने की अनुमति भी प्रदान करता है। अपने भरण-पोषण के लिए संबंधित न्यायालयों में इसके लिए आवेदन दिया जा सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 भी इस संबंध में प्रावधान करती है। इस कानून में अधिकतम भरण-पोषण दस हजार की राशि तक हो सकता है।

मासिक भत्ता न देने पर आर्थिक दंड तथा तीन माह के कारावास की सजा की भी व्यवस्था है। 60 वर्ष की आयु से अधिक का कोई व्यक्ति इन प्रावधानों में सहायता प्राप्त कर सकता है। इनके भरण-पोषण की जवाबदारी पुत्रों, पुत्रियों, पौत्र और पौत्रियों पर आती है। जो रिश्तेदार वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति प्राप्त करते है उन पर भी यह जवाबदारी होगी।

इस अधिनियम में संशोधन के लिए तथा इसे और अधिक प्रभावी तथा व्यापक बनाने के लिए माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) बिल, 2019’ संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पेश किया गया था।

दुखद स्थिति है कि इसके पारित होने की कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। इस बिल में बच्चों की परिभाषा में सौतेले बच्चे, दत्तक बच्चे, बहु, दामाद और नाबालिग बच्चों के कानूनी संरक्षण को भी शामिल किया गया है।

बिल में अधिकतम राशि की सीमा को हटाया गया है। इसमें भरण-पोषण अधिकरणों के फैसलों के खिलाफ वरिष्ठ नागरिकों को अपील करने का अधिकार दिया गया है।

बकाया राशि के लिए अधिकरणों को वारंट जारी करने तथा निर्धारित समय में राशि जमा न करने पर सजा का प्रावधान भी किया गया है। साथ ही निजी केयर होम्स तथा होम केयर सेवा प्रदान करने वाले संस्थानों के विनियमन का प्रावधान भी है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक मामले में केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि अधिनियम के कुछ प्रावधानों की फिर से समीक्षा की जाए। न्यायालय के अनुसार कुछ प्रावधान अस्पष्ट है। अधिनियम के प्रावधानों को यह बिल अधिक व्यापक बनाता है।

इस प्रस्तावित बिल में सास-ससुर, दादा-दादी तथा नाना-नानी को शामिल किया गया है जो अधिनियम में नहीं था। इसमें माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य और सुरक्षा का प्रावधान शामिल है, ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सके। इसमें परिभाषा को भी व्यापक बनाया गया है तथा उनकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी प्रावधान तथा कपड़ा, आवास और सुरक्षा को महत्व दिया गया है।

संबंधित अधिकारियों की संपर्क अधिकारी के रूप में भूमिका है। पुलिस थानों पर एक अधिकारी इन मामलों को निपटाने के लिए नियुक्ति का प्रावधान है। इसी प्रकार के अन्य कई प्रावधान इस बिल में किए गए है।

दुर्भाग्य है कि इतना समय व्यतीत होने के बाद भी इतने महत्वपूर्ण बिल को लोकसभा में पेश करने के बाद भी इसको पारित करने के संबंध में सरकार द्वारा रूचि नहीं ली गई है। आज जरुरत इस बात की है कि वरिष्ठ नागरिकों को उनके खुद के ही बच्चों की उपेक्षा से बचाया जाए। साथ ही सामाजिक रूप से भी युवा पीढ़ी में इन वरिष्ठजनों के प्रति उपेक्षा का जो भाव पनपा है उसे रोका जाए।

नई पीढ़ी के मन में अपने माता-पिता तथा वरिष्ठजनों के प्रति जो संवेदनाएं मरती जा रही है उसे फिर से जगाया जाए। नई पीढ़ी के मन में इस भावना को जगाना होगा कि आज वे जो भी है, उस स्थिति में लाने के लिए हमारे वरिष्ठजनों ने भारी त्याग किए है। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि आज जिस स्थान पर उनके बुजुर्ग है, वहां कल उन्हें भी होना है।

यदि यह भावना आ सके तो हमारे परिवारों में बुजुर्गों की जो स्थिति है उसमें सुधार हो सकेगा। इसके अलावा सरकारों की अपनी जवाबदारी तो है ही कि वह वरिष्ठ नागरिकों के लिए शीघ्र ही प्रभावी कदम उठाए ताकि इन नागरिकों की समस्या का तत्काल एवं प्रभावी निराकरण हो सके। इसके लिए सभी प्रभावी कदम तत्काल उठाए जाना जरूरी है।