कानून और न्याय: पिछले साल के सर्वोच्च न्यायालय के वे फैसले जो मिसाल बन गए!
भारत एक संघीय राज्य है और इसकी एकल व संयुक्त न्यायिक प्रणाली है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक का संबंध सर्वोच्च न्यायालय से हैं। संविधान के अनुच्छेद 124 (1) में सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है। देष की सर्वोच्च न्यायाल ने बीते वर्ष कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं। इनका भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इन फैसलों ने लैंगिक समानता, एलजीबीटी अधिकारों, तीन तलाक, आरक्षण नीतियां और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। बहुत से निर्णय विवादास्पद भी रहे, जिनसे विरोध भी पैदा हुआ। उन्हें एक अधिक समावेशी और प्रगतिशील समाज की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा गया।
सर्वोच्च न्यायालय ने हेट स्पीच मामले में सख्ती दिखाई। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करने निर्देश दिया है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही कोई शिकायत दर्ज की गई हो या नहीं लेकिन प्रशासन को मामला दर्ज करना ही है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी भी दी कि मामले दर्ज करने में किसी भी देरी को अदालत की अवमानना माना जाएगा। एक अन्य फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हर नागरिक को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों को केवल इस आधार पर राशन कार्ड देने से मना नहीं कर सकती कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत जनसंख्या अनुपात सही तरह से नहीं रखा गया है। न्यायालय ने कहा कि हर नागरिक को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने टैक्स भुगतान कर्ताओं को राहत भी दी। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के टैक्स चोरी, छापेमारी व तलाशी अभियान को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने करदाताओं को बड़ी राहत दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह साफ किया है कि अगर तलाषी के दौरान कोई ठोस सबूत नहीं मिले हों तो इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 153ए के तहत करदाता की आय को नहीं बढ़ाया जा सकता है। फैसले में कहा गया कि आयकर कानून की धारा 153ए के तहत जिन मामलों में असेसमेंट पूरा हो चुका है, उन्हें आयकर विभाग फिर से नहीं खोल सकता है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 3 मार्च को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसमें कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा। इस पैनल में प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष (सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल रहेंगे। जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरूद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश राॅय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने यह बड़ा फैसला सुनाया है। बाद में इसे संसद ने कानून के द्वारा बदल दिया।
उच्चतम न्यायालय ने इस वर्ष कई अन्य ऐतिहासिक निर्णय भी दिए हैं। इनमें अनुच्छेद 370 की संवैधानिक वैधता के बारे में निर्णय, विवाह समानता याचिका, 2016 विमुद्रीकरण को चुनौती, महाराष्ट्र और दिल्ली में राजनीतिक संकट जैसे अन्य मामले शामिल हैं। विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने 4ः1 के बहुमत से केंद्र सरकार द्वारा छह साल पहले रूपये के नोटों का विमुद्रीकरण करने के फैसले को बरकरार रखा। बहुमत ने माना कि 8 नवंबर, 2016 की केंद्र की अधिसूचना वैध थी और आनुपातिकता की कसौटी को संतुष्ट करती है। अपने असहमति पूर्ण विचार में, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि हालांकि विमुद्रीकरण सुविचारित था, लेकिन इसे कानूनी आधार पर गैर कानूनी घोषित किया जाना चाहिए।
भारत संघ और ओआरएस विरूद्ध एम/एस यूनियन कार्बाइड काॅर्पोरेशन और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को भुगतान करने के लिए यूनियन कार्बाइड काॅर्पोरेशन (यूसीसी) से अधिक धन प्राप्त करने के लिए सरकार की सुधारात्मक याचिका को खारिज कर दिया। संविधान पीठ ने कहा कि मुआवजे को बढ़ाने का कोई भी प्रयास त्रासदी के तुरंत बाद किया जाना चाहिए था, न कि तीन दषक बाद। षिल्पा शैलेष बनाम वरूण श्रीनिवासन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 142 (1) के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग वह कुछ शर्तों के तहत हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत अनिवार्य छह महीने की प्रतीक्षा अवधि को माफ कर सकता है।
सुभाष देसाई बनाम प्रधान सचिव, महाराष्ट्र के राज्यपाल और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने एक सर्वसम्मत फैसले में, शिवसेना पार्टी से दलबदल के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खिलाफ अयोग्यता कार्यवाही के लिए प्रभावी रूप से दरवाजे खोल दिए। न्यायालय ने कहा कि तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विश्वास मत का आह्वान करने में गलती की। इसके कारण 2022 के मध्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई। रितु छाबरिया बनाम भारत संघ मामले के फैसले में कहा गया कि केंद्रीय एजेंसियां कई पूरक आरोप पत्र दायर करके और नए सिरे से हिरासत की मांग करके आरोपी व्यक्तियों को उनकी डिफाॅल्ट जमानत के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती है।
इंदिरा जयसिंह बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने अपने 2017 के फैसले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पदनाम प्रदान करने को विनियमित करने वाले दिषा-निर्देषों में संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं में निर्देश पारित किए। पीठ ने निर्देश दिया कि पूर्ण अदालत द्वारा ‘‘गुप्त मतदान‘‘ का तरीका अपवाद होना चाहिए न कि नियम। पशु कल्याण बोर्ड बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने 2017 के पशु क्रूरता निवारण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम और 2017 के पशु क्रूरता निवारण (जल्लीकट्टू का संचालन) नियमों को बरकरार रखते हुए कहा कि पारंपरिक बैल-नियंत्रण खेल जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पिछली शताब्दी से चल रहा है। डाॅ जया ठाकूर बनाम भारत संघ और अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रवर्तन निदेषालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को नवंबर में अपना तीसरा कार्यकाल विस्तार समाप्त होने से चार महीने पहले इस्तीफा देने के लिए कहा, जबकि इसने वैधानिक संशोधनों को बरकरार रखा, जो केंद्रीय जांच ब्यूरो और ईडी के निदेशकों के कार्यकाल को टुकड़ों में बढ़ाने की अनुमति देते हैं। न्यायमूर्ति बीआर की अध्यक्षता वाली एक पीठ गवई ने मंगलवार को कहा कि 2021 और 2022 में श्री मिश्रा को दिए गए बैक-टू-बैक सेवा विस्तार अवैध थे। हालांकि, अदालत ने मिश्रा को पद छोड़ने के लिए 31 जुलाई तक का समय दिया।
राहुल गांधी बनाम पूर्णेश ईश्वर भाई मोदी और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में एक राजनीतिक रैली के दौरान कथित रूप से की गई ‘‘मोदी‘‘ उपनाम की टिप्पणी के लिए आपराधिक मानहानि के मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। इस ठहराव ने श्री गांधी की संसद में वापसी का मार्ग प्रशस्त किया। रेवा सिदप्पा बनाम मल्लिकार्जुन प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अमान्य या अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा मिताक्षरा कानून द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू पारिवारिक संपत्ति में माता-पिता के हिस्से का उत्तराधिकारी हो सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ चंद्रचूड़ ने हालांकि स्पष्ट किया कि ऐसा बच्चा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति में या उसके अधिकार का हकदार नहीं होगा। केंद्रीय अन्वेषण ब्यरो बनाम डाॅ आरआर किशोर मामले में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षत वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम की धारा 6ए, जो सीबीआई को नियंत्रित करती है, 11 सितंबर, 2003 को इसके शामिल होने के दिन से ही अमान्य थी।
‘एक्स’ बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 26 सप्ताह की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की एक विवाहित महिला की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत डाॅक्टरों को भ्रूण की दिल की धड़कन रोकने का आदेश देने के खिलाफ है, जब चिकित्सा रिपोर्टों में कहा गया है कि वह एक व्यवहार्य बच्चे को जन्म देगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला दिया। न्यायमूर्ति डीवाॅय चंद्रचूड़ ने यह स्पष्ट किया कि महिला गर्भपात के पूर्ण, प्रबल अधिकार का दावा नहीं कर सकती है, खासकर जब एम्स मेडिकल बोर्ड की कई रिपोर्टों ने पुष्टि की कि उसकी या भ्रूण की जान को तत्काल कोई खतरा नहीं है।
सुप्रियो बनाम भारत संघ मामले में समान-लिंग विवाह मामले का फैसला करने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के बहुमत के विचार में कहा गया कि गैर-विषमलैंगिक जोड़े शादी करने के अयोग्य अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। डाॅ बलराम सिंह बनाम भारत संघ के जनहित मामले में में उच्चतम न्यायालय ने भविष्य में भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा के पूर्ण उन्मूलन के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए। टेम्पल ऑफ हीलिंग बनाम भारत संघ प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश जारी किए। इसने राज्यों को गोद लेने योग्य बच्चों की पहचान करने और गोद लेने वाली एजेंसियों की स्थापना के लिए अभियान चलाने का भी निर्देश दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अगस्त 2019 में एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति को बरकरार रखा। इससे जम्मू और कश्मीर के पूर्ण राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया और इसे संविधान के तहत इसके विशेष विशेषाधिकार से वंचित कर दिया गया। एन.एन. ग्लोबल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम एम/एस इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड और अन्य मामले में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि बिना स्टाम्प वाले या अपर्याप्त रूप से स्टाम्पित वाले मूल वाणिज्यिक अनुबंधों या उपकरणों में निहित मध्यस्थता समझौते अमान्य, अप्रवर्तनीय या यहां तक कि अस्तित्व में नहीं हैं। यह निर्णय वाणिज्यिक विवादों को जल्दी से हल करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र बनने की भारत की महत्वाकांक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इससे पहले, इस तरह के विवादों के लिए मध्यस्थता ने आवश्यक स्टाम्प शुल्क का भुगतान न करने या पक्षों द्वारा अनुबंधों की अपर्याप्त मुद्रांकन के कारण बाधा उत्पन्न की थी। यह उन कुछ फैसलों की संक्षिप्त बानगी मात्र है जो सर्वोच्च न्यायालय ने विगत वर्ष में दिए हैं। इनके अलावा भी सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य कई फैसले भी दिए जिन्होंने देश, समाज और आम लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।