कानून और न्याय: नए डिजिटल कानून में अभिव्यक्ति की आजादी की जरूरत!

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कानून और न्याय: नए डिजिटल कानून में अभिव्यक्ति की आजादी की जरूरत!

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की अपनी संतुलित नीतियों को अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मूल अभिव्यक्ति के अधिकारों के लिये संवैधानिक सुरक्षा तक सीमित किया जा सकता है। सूचना और प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में अक्टूबर, 2022 के एक संशोधन में कहा गया है कि प्लेटफार्म को उपयोगकर्ताओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों का सम्मान करना चाहिये। सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा सामग्री संबंधी शिकायतों के निवारण के लिये अब तीन शिकायत अपीलीय समितियों की स्थापना की गई है। इन्हें अब डिजिटल इंडिया अधिनियम में शामिल किये जाने की संभावना है। इसके साथ ही नए कानून में ऑनलाइन सुरक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह अधिनियम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), डीपफेक, साइबर क्राइम, इंटरनेट प्लेटफार्म के बीच प्रतिस्पर्धा के मुद्दों और डेटा सुरक्षा को शामिल करेगा।

सरकार ने 2022 में एक डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का मसौदा तैयार किया था, जो डिजिटल इंडिया एक्ट के चार पहलुओं में से एक होगा। इसमें राष्ट्रीय डेटा शासन नीति तथा भारतीय दंड संहिता में संशोधन के साथ-साथ डिजिटल इंडिया अधिनियम के तहत तैयार किये गए नियम भी शामिल हैं। ऑनलाइन किये गए आपराधिक और दीवानी अपराधों के लिये एक नया न्यायिक तंत्र लागू होगा। सरकार साइबर स्पेस के एक प्रमुख पहलू सेफ हार्बर पर भी पुनर्विचार कर रही है। यह एक सिद्धांत है, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्ताओं द्वारा किये गए पोस्ट के लिये उत्तरदायित्व से बचने की अनुमति देता है। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) 2021 जैसे नियमों द्वारा हाल के वर्षों में इस शब्द पर लगाम लगाई है, जिसके लिये सरकार द्वारा ऐसा करने का आदेश दिये जाने पर या कानून द्वारा आवश्यकता होने पर पोस्ट को हटाने के लिये प्लेटफार्म की आवश्यकता होती है।

यह विचार सबसे पहले उच्चतम न्यायालय ने के.पुट्टास्वामी के प्रकरण में व्यक्त किए थे। इसमें कहा गया था कि यह प्रकरण निजता एवं भूल जाने के अधिकार के बारे में है। पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया था। निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन का अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के तृतीय भाग द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है। भूल जाने के अधिकार के विषय में एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अपनी व्यक्तिगत जानकारी को इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफार्म से हटाने का अधिकार देता है। जब संबंधित व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है। गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ न्यायालय द्वारा वर्ष 2014 में दिए निर्णय बाद से भूल जाने के अधिकार का महत्व काफी अधिक बढ़ गया है।

भारतीय संदर्भ में ‘पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि भूल जाने का अधिकार निजता के अधिकार का हिस्सा है। मूल तौर पर भूल जाने का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार से और अनुच्छेद-14 के तहत गरिमा के अधिकार से ही उत्पन्न हुआ है। अकेले रहने के अधिकार अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति समाज से हट रहा है। यह एक प्रकार की अपेक्षा है कि समाज व्यक्ति द्वारा चुने गए विकल्पों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वह दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाता।

भूल जाने के अधिकार से संबंधित मुद्दों में गोपनीयता एवं भूल जाने का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों, जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये यह संभव है कि कोई व्यक्ति अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी को डी-लिंक करना चाहता हो और जब लोग उससे संबंधित जानकारी एकत्र करने हेतु गूगल पर सर्च करें तो उनके लिये कुछ पत्रकारिता रिपोर्ट तक पहुंचना कठिन बन सकता है। यह अनुच्छेद-21 से प्राप्त व्यक्ति के अकेले रहने के अधिकार के सीधे मुद्दों पर रिपोर्ट करने के अनुच्छेद-19 में वर्णित मीडिया के अधिकारों के साथ कुछ विरोधाभासी प्रतीत होता है।

यह विधेयक भारत के भीतर डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के ऐसे प्रसंस्करण पर लागू होगा जहां ऐसा डेटा ऑनलाइन या ऑफलाइन डिजिटल रूप में एकत्र किया जाता है। यदि यह भारत में वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश या व्यक्तियों की प्रोफाइलिंग के लिये है तो यह भारत के बाहर इस तरह के प्रसंस्करण पर भी लागू होगा। व्यक्तिगत डेटा को केवल वैध उद्देश्य के लिए संसाधित किया जा सकता है जिसके लिये व्यक्ति ने सहमति दी है। यह सहमति कुछ मामलों में मानी जा सकती है। डेटा फिड्यूशरी (नियामक) डेटा की सटीकता बनाए रखने, डेटा को सुरक्षित रखने तथा इसका उद्देश्य पूरा होने के बाद डेटा को हटाने के लिये बाध्य होंगे।

डेटा फिड्यूशरी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को निर्धारित करता है। यह बिल लोगों को कई अधिकार प्रदान करता है। इसमें सूचना प्राप्त करने, सुधार करने, हटाने और शिकायत निवारण का अधिकार शामिल है। केंद्र सरकार विशिष्ट कारणों से जैसे राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और अपराधों की रोकथाम करने में शासकीय एजेंसियों को बिल के प्रावधानों में छूट प्रदान कर सकती है। बिल की आवश्यकताओं के अनुपालन न करने के मामलों को तय करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड ऑफ इंडिया की स्थापना की जाएगी।

सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन व्यक्तिगत डेटा प्रसंस्करण के लिये व्यापक डेटा संरक्षण कानून पर केंद्रित है। यूरोपीय संघ में निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में निहित है। यह किसी व्यक्ति की गरिमा और उसके द्वारा उत्पन्न डेटा पर उसके अधिकार की रक्षा हेतु लक्षित है। अमेरिका में गोपनीयता अधिकारों या सिद्धांतों के लिए कोई समग्र विनियम नहीं है जो डेटा के उपयोग, संग्रह और प्रकटीकरण को विनियमित करता हो। इसके बजाय यह सीमित क्षेत्र-विशिष्ट विनियम है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लिए डेटा सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण अलग है। गोपनीयता अधिनियम, इलेक्ट्रॉनिक संचार गोपनीयता अधिनियम जैसे व्यापक कानून के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी तथा सरकार की गतिविधियों और शक्तियों को अच्छी तरह से परिभाषित एवं सूचित किया गया है। निजी क्षेत्र के लिये भी कुछ क्षेत्र आधारित विशिष्ट मापदंड है।

यह जानकारी भी दिलचस्प एवं उपयोगी है कि पिछले 12 महीनों में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी जारी किये गए नए चीनी कानूनों में व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून शामिल है। यह नवंबर, 2021 में लागू हुआ था। यह चीनी डेटा विनियामकों को नए अधिकार प्रदान करता है ताकि व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोका जा सके। डेटा सुरक्षा कानून, जो सितंबर 2021 में लागू हुआ, व्यावसायिक डेटा को उनके महत्व के स्तरों के आधार पर वर्गीकृत करने की आवश्यकता है। यह डीएसएल सीमा पर हस्तांतरण पर नए प्रतिबंध आरोपित करता है। डिजिटल इंडिया पर नए कानून की आवश्यकता को लंबे अरसे से महसूस किया जा रहा है। भारत सरकार की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए और आशा की जानी चाहिए कि नया कानून जल्द से जल्द देश में लागू होगा।