कानून और न्याय:देश में तंबाकू पर रोकथाम के कानून प्रभावी नहीं!
– विनय झैलावत
भारत सबसे बड़े तंबाकू उत्पादक देशों में से एक है। साथ ही विश्व में तंबाकू के सेवन से होने वाली मौतों के 1/6वें हिस्से का जिम्मेदार भी है। ऐसे में हमें एक बेहतर नीति के निर्माण की जरूरत है। भारत सरकार ने इसके सेवन और उसके रोकथाम के लिए सिगरेट एवं तंबाकू प्रोडक्शन एक्ट (कोटपा), सन् 2003 पारित किया है। तंबाकू नियंत्रण कानून (कोटपा) 2003 के तहत सार्वजनिक स्थलों पर धूमप्रान करने, खुलेआम तंबाकू से संबंधित सामग्री बेचने पर कार्रवाई की जाती है। इसके तहत दो सौ रूपए से दस हजार रूपए तक जुर्माना और पांच साल की कैद तक का प्रावधान है। किन्तु खेद की बात यह कि पुलिस दूसरे अपराधों पर ज्यादा ध्यान देती है तथा धूम्रपान नियमों की अनदेखी करती है।
अक्सर पुलिस थानों एवं कार्यालयों से करीब दो सौ मीटर के दायरे में न्यायालय, जेल, बिजली आफिस, महिला कालेज समेत कई सरकारी कार्यालय, शिक्षण संस्थान और अस्पताल होते हैं। इन इलाकों में कहीं भी भीड़-भाड़ वाली जगह पर खड़े होने की देर है कि सिगरेट का धुआं आपको मिलने लगेगा। सड़क किनारे खुले शराब पीते लोगों को भी देखा जा सकता है। पुलिस मुख्यालयों के सामने भी सिगरेट का धुआं उड़ता है। जबकि, बस स्टैंड, बाजार जैसे सार्वजनिक स्थलों के पास खुलेआम शराब पीने-पिलाने का दौर चलता है। सार्वजनिक स्थलों पर नशीले पदार्थों का सेवन करते हुए पकड़े जाने पर दंड का प्रावधान होने के बाद भी ऐसी स्थिति दुखद एवं चिंताजनक है। यही नहीं, इस विधेयक में तंबाकू उत्पादों के सेवन को सार्वजनिक स्थानों में नहीं रोका गया है। यह कानून में तीस लोगों से ज्यादा क्षमता वाले होटल पर भी लागू नहीं होगा।
भारत सरकार ने मई 2003 में राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कानून पारित किया था। इस कानून को सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम का नाम दिया गया। उल्लेखनीय है कि डब्ल्यूएचओ-फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल यानी तंबाकू नियंत्रण के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के एक अभिन्न अंग के रूप में है। भारत सरकार ने तंबाकू नियंत्रण कानून के प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2007 में राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) का शुभारंभ किया था। इसका उद्देश्य तंबाकू नियंत्रण कानून और तंबाकू के उपयोग द्वारा होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में अधिक से अधिक जागरूकता प्रसारित करना भी है।
उल्लेखनीय है भारत में तंबाकू प्रयोग की आर्थिक लागत अनुमानतः एक लाख चार हजार पांच सौ करोड़ रूपए प्रतिवर्ष है। कई देशों द्वारा तंबाकू नियंत्रण को गरीबी समाप्त करने वाली नीतियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत को इस दिषा में आगे कदम बढ़ाना चाहिये। भारत ने तंबाकू नियंत्रण पर डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंषन की पुष्टि करने के बाद से तंबाकू नियंत्रण के संबंध में पर्याप्त प्रगति की अपेक्षा की है। अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है। अतः तंबाकू नियंत्रण नीतियों की पहुंच विशेष रूप से शहरी मध्यवर्गीय तक बनानी होगी। गांवों में रहने वाले अधिकांश गरीबों के पास टेलीविजन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतः धूम्रपान के खिलाफ चेतावनी देने वाले अभियानों से जरूरी लाभ नहीं मिल पाता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के संबंध में मई 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि तंबाकू के पैकेट पर 85% सचित्र चेतावनी मानदंड का पालन करना होगा। दरअसल, पैकेट के दोनों किनारों पर बड़ी सचित्र चेतावनी धूम्रपान करने वालों से स्वास्थ्य जोखिमों के बारे संवाद करने का सबसे प्रभावी और शक्तिषाली तरीका है। उल्लेखनीय है कि कनाडा के कैंसर सोसायटी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत तंबाकू उत्पादों पर सर्वाधिक बड़े सचित्र चेतावनी जारी करने वाले देशों में से एक है। साथ ही अध्ययनों से पता चलता है कि ग्राफिक चेतावनियों के कारण कनाडा में 58%, ब्राजील और थाईलैंड में लगभग 54% धूम्रपान करने वाले लोग, धूम्रपान के स्वास्थ्य परिणामों के बारे में अपनी राय बदल चुके हैं।
किशोरों में धूम्रपान की लत एक गंभीर समस्या है। तंबाकू की खपत का स्तर अनपढ़ बच्चों और निम्न आय समूहों के बच्चों में अधिक है। युवाओं को तंबाकू से दूर रखने के लिए एक वृहद दृष्टिकोण आवश्यक है। स्कूलों के पास के क्षेत्र में तंबाकू के विज्ञापनों के होर्डिंग, बैनर आदि को प्रतिबंधित कर देना चाहिये। साथ ही स्कूलों के सौ मीटर के आस-पास के क्षेत्र में तंबाकू की बिक्री पर प्रतिबंध को लागू करने और फिर उसके समुचित पालन पर ध्यान देने की जरूरत है। यदि सिगरेट के मूल्य बढ़ेंगे तो भी युवा इसके प्रयोग को हतोत्साहित होंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के अनुसार भारत के तंबाकू उपभोग का विशिष्ट पैटर्न देखने को मिलता है। तंबाकू उत्पादों के उपभोग का पैटर्न भारत में जटिल है, क्योंकि इसका सिगरेट, बीड़ी, चबाने वाली तंबाकू और खैनी जैसे कई रूपों में सेवन किया जाता है। भारत में सिगरेट की बाजार हिस्सेदारी केवल 14% है, जबकि बीड़ी की 48% है। दरअसल, भारत में सिगरेट से ज्यादा बीड़ी का सेवन इसलिए किया जाता है क्योंकि सिगरेट बीड़ी के मुकाबले काफी महंगी है। बीड़ी पर कर लगाने की सबसे बड़ी बाधा यह है कि गरीब बीड़ी कामगारों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, यह विडंबना ही कही जाएगी कि धूम्रपान जनित स्वास्थ्य चिंताओं से सबसे अधिक प्रभावित गरीब जनता ही होती है। चूंकि भारत की कराधान व्यवस्था आय वृद्धि और मुद्रास्फीति से जुड़ी हुई नहीं है। इसलिए, तंबाकू उत्पाद अधिकांश जनता की आय की तुलना में कम मूल्य पर उपलब्ध है।
जीएसटी के तहत, सभी तंबाकू उत्पादों को 28% के कर स्लैब में रखा गया है। फलस्वरूप सिगरेट के मूल्य में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। जबकि बीड़ी के छोटे बंडल की की कीमतों में गिरावट देखी गई है। भारत में यह महसूस किया जा रहा है कि सचित्र चेतावनियों को और व्यापक बनाए जाने की जरूरत है। कई अध्ययनों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि तंबाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनियां तंबाकू उपभोग को सीमित करने में काफी अहम साबित हुई है। 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेष के बाद तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर चेतावनियों को व्यापक बनाया गया, हालांकि इसे अभी भी और व्यापक बनाया जा सकता है। सिगरेट के पैकेटों पर दी जाने वाली पिच्यासी प्रतिषत सचित्र चेतावनियों को बढ़ाकर 90% तक करने की जरूरत है जैसा कि नेपाल ने किया है। साथ ही बीड़ी के बंडलों पर भी सामान्य पैकेजिंग पर ही सही सचित्र चेतावनियां जारी की जानी चाहिये।
तंबाकू उत्पाद निर्माता कंपनियों की प्रभावशाली उपस्थिति के कारण न तो सिंगल स्टिक सेल अनिवार्य हो पाया है और न ही सिगरेट जैसे अन्य तंबाकू उत्पादों के लिये लाइसेंस जारी करने की व्यवस्था अमल में आ पाई है। सिंगल स्टिक सेल एक ऐसा उपाय है जो धूम्रपान कम करने में अहम भूमिका निभा सकता है और इस संबंध में सरकार को प्रयास करना चाहिये। इसके लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं जाने की जरूरत है। तंबाकू नियंत्रण के लिए लोगों को शिक्षित एवं जागरूक बनाना होगा और इसके लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिये। तंबाकू उत्पादों की अवैध बिक्री को रोकने में सरकार को अहम भूमिका निभानी होगी। लेकिन, साथ ही साथ आम जनता की सहभागिता भी अनिवार्य है। गौरतलब है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 48 में कहा गया है कि राज्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य में लगातार बेहतरी के प्रयास करते रहने चाहिये। अतः भारत जैसे एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य को अपने सामाजिक दायित्वों के पालन के लिए वर्तमान तंबाकू नीति में विद्यमान खामियों पर गौर करते हुए आगे बढ़ना होगा।