Law And Justice : हाईकोर्ट में हिन्दी में दिए गए फैसलों से धारा बदली!

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हाईकोर्ट में हिन्दी

Law And Justice : हाईकोर्ट में हिन्दी में दिए गए फैसलों से धारा बदली!

मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय में हिन्दी प्रयोग का ऐतिहासिक योगदान रहा है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य न्यायाधिपति न्यायमूर्ति शिवदयाल का इस संबंध में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने उच्च न्यायालय में हिन्दी में फैसले दिए और न्यायालयों में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार हो इस दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके भतीजे न्यायमूर्ति ए.के. श्रीवास्तव ने भी कुछ फैसले/आदेश हिन्दी में दिए। इस संबंध में न्यायमूर्ति श्री गुलाब गुप्ता का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने उच्च न्यायालय में अपने पूरे कार्यकाल में नियम से एक फैसला हिन्दी में दिया। इनमें दिवानी, फौजदारी एवं अन्य विषयों के फैसले सम्मिलित है। न्यायमूर्ति एआर तिवारी एवं न्यायमूर्ति शंभू सिंह भी इनमें सम्मिलित है। इन न्यायाधीशों ने यह साबित किया कि उच्च न्यायालयों में हिन्दी में आसानी से कार्य संभव है। हिन्दी में काम न करने के पीछे मुझे लगता है कि षिक्षा व्यवस्था के कारण हमारी अंग्रेजियत का बढ़ना और हिन्दी की भाषा पर पकड़ कमजोर होना भी रहा है।
यह प्रसन्नता एवं संतोष की बात है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों ने हाल ही में हिन्दी में फैसले लिखकर पुनः यह साबित किया है कि हिन्दी में उच्च न्यायालय में काम किया जा सकता है और फैसले भी लिखे जा सकते है। इन फैसलों में जिस हिन्दी का प्रयोग किया गया है वह भी आसान, सहज और आम पक्षकारों को समझ में आने वाली है। हिन्दी में फैसला/आदेश लिखने वाले न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति शील नागू, न्यायमूर्ति आनंद पाठक एवं न्यायमूर्ति दीपक अग्रवाल सम्मिलित है। न्यायमूर्ति आनंद पाठक तो पर्यावरण के संबंध में जमानत आवेदनों में पर्यावरण के संबंध पौधे लगाने व उनकी देखभाल करने के सराहनीय निर्णयों के कारण चर्चा में है।
न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने नरेश विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य प्रकरण में एक जमानत आवेदन में आदेश अंग्रेजी में दिया लेकिन अभियुक्त को पालन करने वाले निर्देश हिन्दी में दिए हैं। इसमें उन्होंने लिखा है ‘एतद् द्वारा यह निर्देषित किया जाता है कि आवेदक 01 पौधे का (फल देने वाले पेड़ अथवा नीम/पीपल) रोपण करेगा तथा उसे अपने आस पड़ोस में पेड़ों की सुरक्षा के लिए बाड़ लगाने की व्यवस्था करनी होगी, ताकि पौधे सुरक्षित रह सके। आवेदक का यह कर्तव्य है कि न केवल पौधों को लगाया जाऐ, बल्कि उन्हें पोषण भी दिया जाए।’ वृक्षारोपण के साथ, वृक्षारोपण भी आवश्यक है।’ आवेदक विशेषतः 6-8 फीट ऊॅंचे पौधे/पेड़ों को 3-4 फीट गड्ढा करके लगाएगा ताकि वे शीघ्र ही पूर्ण विकसित हो सके। अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, आवेदक को रिहा किए जाने की दिनांक से 30 दिनों के भीतर संबंधित विचारण न्यायालय के समक्ष वृक्षों/पौधों के रोपण के सभी फोटो प्रस्तुत करना होंगे। तत्पश्चात, विचारण के समापन तक हर तीन महीने में आवेदक के द्वारा विचारण न्यायालय के समक्ष प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।
वृक्षों की प्रगति पर निगरानी रखना न्यायालय का कर्तव्य है। क्योंकि, पर्यावरण क्षरण के कारण मानव अस्तित्व दांव पर है न्यायालय अनुपालन के बारे में आवेदक द्वारा दिखाई गई किसी भी लापरवाही को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। इसलिए आवेदक को पेड़ों की प्रगति और आवेदक द्वारा अनुपालन के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया जाता है एवं आवेदक द्वारा किये गये अनुपालन की एक संक्षिप्त रिपोर्ट इस न्यायालय के समक्ष प्रत्येक तीन माह में (अगले छः महीनों के लिए) रखी जाएगी जिसे कि ‘निर्देश’ शीर्ष के अंतर्गत रखा जाएगा। वृक्षारोपण में या पेड़ों की देखभाल में आवेदक की ओर से की गई कोई भी चूक आवेदक को जमानत का लाभ लेने से वंचित कर सकती है। आवेदक को अपनी पसंद के स्थान पर इन पौधों/पेड़ों को रोपने की स्वतंत्रता होगी, यदि वह इन रोपे गये पेड़ों की ट्री गार्ड या बाड़ लगाकर रक्षा करना चाहता है, अन्यथा आवेदक को वृक्षों के रोपण के लिए तथा उनके सुरक्षा उपायोग के लिए आवश्यक खर्चे वहन करना होंगे।
इस न्यायालय द्वारा यह निर्देश एक परीक्षण प्रकरण के तौर पर दिए गए हैं ताकि हिंसा और बुराई के विचार का प्रतिकार, सृजन एवं प्रकृति के साथ एकाकार होने के माध्यम से सामांजस्य स्थापित किया जा सके। वर्तमान में मानव अस्तित्व के आवश्यक अंग के रूप में दया, सेवा, प्रेम एवं करूणा की प्रकृति को विकसित करने की आवश्यकता है। क्योंकि, यह मानव जीवन की मूलभूत प्रवृत्तियां हैं और मानव अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उनका पुनर्जीवित होना आवश्यक है। ‘यह प्रयास केवल एक वृक्ष के रोपण का प्रश्न न होकर बल्कि एक विचार के अंकुरण का है।’
न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने कई प्रकरणों में ऐसे प्रयोग किए हैं। इनकी सराहना की जानी चाहिए। इस आदेश में जिस सुन्दर हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है उसकी शुद्धता को भी कोई चुनौती नहीं दे सकता है। एक प्रकरण में न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने एक जूनियर अभिभाषक से कहा कि यदि आप इस प्रकरण में हिन्दी में बहस करेंगे तो मैं भी हिन्दी में आदेश दूंगा। न्यायमूर्ति विरेन्द्र सिंह ने अपना वादा पूरा किया। ऐसे प्रयासों से ही न्यायालयों में हिन्दी आगे बढ़ेगी। मध्यप्रदेश के इन न्यायाधीशों द्वारा हिन्दी में दिए गए फैसलों के लिए इन्हें जितना साधुवाद दिया जाए वह कम है। इन फैसलों का योगदान उच्च न्यायालय में हिन्दी के उपयोग और प्रयोग में ‘मील का पत्थर’ साबित होगा।
अब यह भी नहीं कहा जा सकता है कि हिन्दी में उच्च न्यायालयों में कार्यवाही व फैसले लिखना कठिन है। गूगल टेक्नोलॉजी इस दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। हिन्दी में अनुवाद आसान हुआ है तथा उसके बाद उन लोगों को भी आसानी हुई है जिन्हें हिन्दी में कार्य करने में कठिनाई आती है। इसके बाद सरलता एवं सहजता से हिन्दी में कार्य किया जा सकता है। इसके अलावा उच्च न्यायालयों में जिला न्यायालयों से भी वरिष्ठ न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालयों में होती है। उनके लिए हिन्दी एवं स्थानीय भाषा में कार्य करना सहज और सरल होता है। यदि ये न्यायाधीश उच्च न्यायालय में हिन्दी में कार्य करें तो इससे कार्य की गति काफी हद तक स्वाभाविक रूप से बढ़ जाएगी। साथ ही विधि की पढ़ाई में भी भाषा का ध्यान रखा जाना चाहिए।
उच्च न्यायालयों में हिंदी में काम करना आसान है। आवश्यकता केवल संकल्प की है। देश के विभिन्न हिस्सों में लोग अंग्रेजी या हिंदी नहीं जानते हैं। उनके लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग बेहद सहायक सिद्ध होगा। भारत के मुख्य न्यायाधिपति के इस सुझाव के बाद कि राजभाषा अधिनियम में आवश्यक सुधार भी तुरंत किए जाने चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनबी रमन्ना ने एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय कानूनी व्यवस्था के औपनिवेशिक स्वरूप पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए इसके भारतीयकरण को समय की मांग बताया है।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि देश अपनी भाषाओं में सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय में काम नहीं कर पा रहे है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों में हिन्दी एवं अन्य स्थानीय भाषाओं का उपयोग हो। विधि आयोग ने 20 हजार कानूनी शब्दावली तैयार की है। चीन और जापान व अन्य कई देश न्यायालयों में अपनी भाषा में कार्य कर रहे है। भारत में भी सुनवाई, कार्यवाही और फैसले मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में संभव है। उम्मीद की जानी चाहिए की भारत में भी सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों में किसी दिन सभी कार्य हिन्दी में संभव होगा। वह दिन जल्द ही आएगा। यह आशा की जानी चाहिए। आवश्यकता केवल इच्छाशक्ति की है। यह भी आशा की जानी चाहिए कि भारत सरकार यह व्यवस्था करने में समर्थ हो सकेगी।