कानून और न्याय: मतदान प्रणाली को बदलने का प्रयास स्वीकार्य नहीं!

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कानून और न्याय: मतदान प्रणाली को बदलने का प्रयास स्वीकार्य नहीं!

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका ईवीएम मतदान प्रणाली पर सवाल उठाने की कड़ी का एक हिस्सा थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे भी खारिज कर दिया। साथ ही वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पेपर स्लीप के साथ ईवीएम पर डाले गए वोटों के शत प्रतिशत क्राॅस-वेरिफिकेशन का निर्देश देने की याचिकाकर्ताओं की मांग को भी खारिज कर दिया। वर्तमान में किसी भी विधानसभा क्षेत्र में केवल 5% ईवीएम-वीवीपीएटी की गिनती ऐच्छिक रूप से सत्यापित की जाती है। अलग-अलग लेकिन सहमत राय में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव प्रक्रिया की अखंडता में न्यायपालिका के विश्वास को दोहराया। हालांकि अदालत ने मौजूदा प्रणाली को मजबूत करने के लिए भारत के चुनाव आयोग को कई निर्देश जारी किया। यह फैसला कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के लिए एक कड़ा आघात है।
हालांकि, कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत द्वारा खारिज की गई याचिकाओं में कांग्रेस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक पक्ष नहीं थी। इस महीने की शुरूआत में जारी अपने चुनावी घोषणा पत्र में, राजनीतिक दल ने एक हाइब्रिड प्रणाली का प्रस्ताव दिया था जिसमें ईवीएम के साथ-साथ बैलेट पेपर दोनों का उपयोग किया जाता है। कई न्यायिक उदाहरणों का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित किया कि वीवीपीएटी की शुरूआत के बाद वर्तमान मतदान प्रणाली पर संदेह करने के लिए कोई ठोस सामग्री और आंकड़े उपललब्ध नहीं है। सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत के चुनाव आयोग के मामले में अपने 2013 के फैसले में, अदालत ने कहा था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए एक पेपर ट्रेल एक अनिवार्य आवश्यकता है।
बाद में, 2019 में, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में वीवीपीएटी पर्चियों के साथ ईवीएम वोटों के पचास प्रतिषत क्रास-सत्यापन की मांग करने वाली याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने मतदान केंद्रों की संख्या में वृद्धि का समर्थन किया। इसमें वीवीपीएटी सत्यापन प्रति विधानसभा क्षेत्र या खंड से किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि हम वर्तमान रिट याचिकाओं को केवल इस अदालत के पिछले उदाहरणों और फैसलों पर भरोसा करके खारिज कर सकते थे। बिना किसी ठोस सामग्री और डेटा के मात्र संदेह के आधार पर बार-बार की जाने वाली चुनौतियों वांछनीय है। हालांकि, हम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों को रिकॉर्ड पर रखना चाहेंगे।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि ईवीएम में निर्माताओं द्वारा अलग से प्रयोग किए गए माइक्रोकंट्रोलर अपरिवर्तनीय हैं। वे राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों को नहीं पहचानते हैं। वे केवल मतदाताओं द्वारा दबाए गए बटनों को पहचानते हैं। ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर या मेमोरी तक पहुंचने के किसी भी अनधिकृत प्रयास के मामले में, अनधिकृत एक्सेस डिटेक्शन मैकेनिज्म (यूएडीएम) इसे स्थायी रूप से अक्षम कर देता है। ईवीएम में लोड किए गए प्रोग्राम को तैयार किया जाता है। निर्माण के समय वन टाइम प्रोग्रामेबल माइक्रोकंट्रोलर चिप में डाला जाता है। इस प्रकार छेड़छाड़ की किसी भी संभावना को दूर किया जाता है। यह ध्यान देने योग्य है कि ईवीएम की तीनों इकाइयों मतपत्र इकाई, नियंत्रण इकाई और वीवीपीएटी में माइक्रोकंट्रोलर होते हैं जिनमें संबंधित साॅफ्टवेयर लिखा दिया जाता है। जले हुए प्रोग्राम/कोड को बदला नहीं जा सकता है और निर्माता द्वारा ईसीआई को ईवीएम की डिलीवरी/आपूर्ति के बाद इसे संषोधित नहीं किया जा सकता है।
कार्यवाही के दौरान, याचिकाकर्ता एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग का यह दावा कि माइक्रोप्रोसेसर रिप्रोग्रामेबल नहीं थे, संदेह में था और इन प्रोसेसरों की फ्लैश मेमोरी को फिर से प्रोग्राम किया जा सकता है। इस तरह के तर्क को खारिज करते हुए, न्यायाधीशों में निष्कर्ष निकाला कि ईवीएम की लिखी मेमोरी में अज्ञेयवादी साॅफ्टवेयर को हैक करने या छेड़छाड़ करने की संभावना निराधार है। इस संबंध में किसी भी संदेह को खारिज कर दिया जाना चाहिए कि किसी विशेष उम्मीदवार के पक्ष में ईवीएम में हेरफेर किया जा सकता है। उन्होंगे आगे इस बात पर विचार किया कि चार करोड़ से अधिक वीवीपीएटी पर्चियों का मिलान उनकी नियंत्रण इकाईयों की इलेक्ट्राॅनिक गिनती के साथ किया गया है। अभी तक इसके बेमेल होने का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मतदाताओं को यह सुनिश्चित करने का मौलिक अधिकार है कि उनके वोट सटीक रूप से दर्ज किए गए हैं। अदालत ने जोर देकर कहा कि इस तरह के अधिकार को ईवीएम वोटों शत-प्रतिषत क्राॅस-वेरिफिकेशन के अधिकार के साथ वीवीपीएटी पर्ची या भौतिक रूप से उपयोग करने के अधिकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। ‘‘केवल यह संदेह कि ईवीएम के माध्यम से डाले गए वोटों में बेमेल हो सकता है, जिससे शत-प्रतिशत वीवीपीएटी पर्ची सत्यापन की मांग बढ़ सकती है। रिट याचिकाओं के वर्तमान सेट को बनाए रखने योग्य मानने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। इन रिट याचिकाओं को बनाए रखने के लिए, यह दिखाया जाना चाहिए था कि उल्लंघन का एक ठोस खतरा मौजूद है। हालांकि, इसकी भी पुष्टि नहीं की गई है।
मौजूदा प्रणाली के अनुसार, एक वीवीपीएटी पर्ची मतदाता को यह सत्यापित करने के लिए सात सेकंड के लिए दिखाई देती है कि नीचे रखे डिब्बे में गिरने से पहले उनका वोट सही ढंग से डाला गया था या नहीं। बाद में उनका उपयोग मतदान अधिकारियों द्वारा ऐच्छिक रूप से चुने गए पांच मतदान केंद्रों में डाले गए मतों को सत्यापित करने के लिए किया जाता है। यह मतदाता को आश्वस्त करता है कि उसके डाले गए वोट को दर्ज कर लिया गया है और उसकी गिनती की जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मतदाताओं को वीवीपीएटी पर्ची तक भौतिक पहुंच देना अव्यावहारिक है और इससे दुरूपयोग होगा।
ईवीएम वीवीपीएटी गणनाओं के पूर्ण क्राॅस-सत्यापन से जुड़ी विभिन्न लाॅजिस्टिक समस्याओं पर प्रकाष डालते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि सबसे पहले, यह मतगणना के लिए समय बढ़ाएगा। परिणामों की घोषणा में देरी करेगा। आवश्यक श्रम शक्ति को दोगुना करना होगा। हस्तचलित गणना मानवीय त्रुटियों के और जानबूझकर गलत कार्यों का कारण बन सकती है। गिनती में हस्तचलित हस्तक्षेप भी परिणामों में हेरफेर के कई आरोप लगा सकता है।