Law & Justice : हाथ से मैला उठाने की प्रथा का अंधेरा छांटना होगा!

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Law & Justice : हाथ से मैला उठाने की प्रथा का अंधेरा छांटना होगा!

 

– विनय झैलावत

 

सर्वोच्च नयायालय ने हाथ से मैला साफ करने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि हमारी लड़ाई सत्ता की ताकत के लिए नहीं है। यह आजादी की लड़ाई है। यह मानव व्यक्तित्व को पुनः प्राप्त करने की लड़ाई है।’ न्यायालय ने इस वर्ग के लोगों की मौत पर परिजनों को तीस लाख, स्थायी दिव्यांगता पर बीस लाख, जख्मी होने पर दस लाख मुआवजा देने का आदेश दिया। खंडपीठ ने कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी दिव्यांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में बीस लाख रुपये का भुगतान किया जाए। किसी अन्य प्रकार की चोट के लिए दस लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि हमारी लड़ाई सत्ता की ताकत के लिए नहीं है। यह आजादी की लड़ाई है। यह मानव व्यक्तित्व को पुनः प्राप्त करने की लड़ाई है।

हाथ से सीवर सफाई पर सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश देते हुए कहा कि सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि इस प्रथा का पूरी तरह उन्मूलन हो। पीठ ने हाथ से मैला उठाने वालों के रोजगार पर प्रतिबंध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को 14 दिशा निर्देश जारी किए। न्यायालय ने कहा कि यह अकारण नहीं है कि हमारे संविधान में गरिमा और भाईचारे के मूल्य पर बहुत जोर दिया गया है। लेकिन इन दोनों के लिए, अन्य सभी स्वतंत्रताएं कल्पना हैं। अपने गणतंत्र की उपलब्धियों पर गर्व करने वाले हम सभी को आज जागना होगा, ताकि वह अंधेरा छंट जाए।

न्यायालय ने कहा कि पीड़ितों के परिजनों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाए और कौशल विकास प्रशिक्षण किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि आपको वास्तव में सभी मामलों में समान होना है तो संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15(2) जैसे मुक्तिदायक प्रावधानों को लागू करके समाज वर्गों को जो प्रतिबद्धता है, वह देने की जरूरत ना होती। केंद्र और राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि हाथ से मैला साफ करने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो। संविधान के अनुच्छेद 15(2) में कहा गया है कि सरकार किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। फैसले में पीठ ने कहा कि सच्चे भाईचारे को साकार करना सभी का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि यह अकारण नहीं है कि हमारे संविधान में गरिमा और भाईचारे के मूल्य पर बहुत जोर दिया गया है। लेकिन इन दोनों के लिए, अन्य सभी स्वतंत्रताएं कल्पना हैं। अपने गणतंत्र की उपलब्धियों पर गर्व करने वाले हम सभी को आज जागना होगा, ताकि वह अंधेरा छंट जाए।

पिछले पांच वर्षों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 347 लोगों की मौत हो चुकी है। जुलाई 2022 में लोकसभा ने उद्धत सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से चालीस प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुई है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए। न्यायालय ने मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 को सख्ती से लागू करके मैनुअल स्कैवेंजिंग की घृणित प्रथा को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए।

न्यायालय ने निर्देश दिया कि सीवरों की मैन्युअल सफाई की प्रक्रिया को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी उद्देश्य के लिए मैन्युअल रूप से सीवरों में प्रवेश न करना पड़े। सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में आवश्यक निर्देश भी जारी किए। न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार को उचित उपाय करने चाहिए और नीतियां बनानी चाहिए। निगमों, रेलवे, छावनियों के साथ-साथ अपने नियंत्रण वाली एजेंसियों सहित सभी वैधानिक निकायों को निर्देश जारी करना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि चरणबद्ध तरीके से मैन्युअल सीवर सफाई को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने संघ और राज्यों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि सीवर से होने वाली मौतों के लिए मुआवजा बढ़ाया जाए।

न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार माॅडल अनुबंध तैयार करेगा, जिसका उपयोग संबंधित अधिनियम में, जैसे कि अनुबंध श्रम (निषेध और विनियमन अधिनियम), 1970, या किसी भी स्थान पर, उसके या उसकी एजेंसियों और निगमों द्वारा, जहां भी अनुबंध दिए जाने हैं, किया जाएगा। अन्य कानून, जो मानकों को करता है – 2013 अधिनियम और नियमों के अनुरूप का सख्ती से पालन किया जाएगा और किसी भी दुर्घटना की स्थिति में एजेंसी अपना अनुबंध खो देगी और संभवतः ब्लैकलिस्ट कर दी जाएगी। इस मॉडल का उपयोग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा भी किया जाएगा। संबंधित विभाग तीन माह के भीतर राष्ट्रीय सर्वेक्षण के संचालन के लिए तौर-तरीके तैयार करेंगे। सर्वेक्षण आदर्श रूप से आयोजित किया जाएगा और अगले एक वर्ष में पूरा किया जाएगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सर्वेक्षण का हश्र पिछले सर्वेक्षणों जैसा न हो, सभी संबंधित समितियों को सही शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए उपयुक्त माॅडल तैयार किए जाएंगे। केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेषों को यह सुनिश्चित करने के लिए स्काॅलरशिप देने की आवश्यकता है कि सीवर पीड़ितों (जिनकी मृत्यु हो गई है, या विकलांगता हो सकती है) के आश्रितों को सार्थक शिक्षा दी जाए।

राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) भी उपरोक्त नीतियों को तैयार करने के लिए परामर्ष का हिस्सा होगा। यह सर्वेक्षण की योजना और कार्यान्वयन के लिए राज्य और जिला कानूनी सेवा समितियों के साथ समन्वय में भी शामिल होगा। इसके अलावा, एनएएलएसए मुआवजे के आसान वितरण के लिए उपयुक्त माॅडल (अपराध के पीड़ितों को मुआवजे के वितरण के लिए अन्य माॅडलों के संबंध में अपने अनुभव के आलोक में) तैयार करेगा। केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेषों को समयबद्ध तरीके से राज्य स्तरीय, जिला स्तरीय समितियों और आयोगों की स्थापना के लिए सभी आयोगों (एनसीएसके, एनसीएससी, एनसीएसटी) के साथ समन्वय सुनिष्चित करने का निर्देश दिया जाता है। इसके अलावा, रिक्तियों की मौजूदगी उन्हें भरने की निरंतर निगरानी की जाएगी। एनसीएसके, एनसीएससी, एनसीएसटी और केंद्र सरकार को 2013 अधिनियम के तहत जिला और राज्य स्तरीय एजेंसियों द्वारा जानकारी और उपयोग के लिए प्रषिक्षण और शिक्षा माॅड्यूल का समन्वय और तैयार करना आवश्यक है। पोर्टल और डैशबोर्ड, जिसमें सीवर से होने वाली मौतों और पीड़ितों से संबंधित जानकारी, मुआवजा वितरण की स्थिति, साथ ही किए गए पुनर्वास उपायों और मौजूदा और उपलब्ध पुनर्वास नीतियों सहित सभी प्रासंगिक जानकारी शामिल होगी, विकसित और लाॅन्च किया जाएगा। गरिमा और भाईचारे के बिना अन्य स्वतंत्रताएं कल्पना मात्र हैं।

न्यायमूर्ति भट्ट ने फैसला सुनाते समय डाॅ. अम्बेडकर के इन शब्दों को उद्धत किया ‘हमारी लड़ाई सत्ता के धन के लिए नहीं है। यह स्वतंत्रता की लड़ाई है। यह मानव व्यक्तित्व के पुनरूद्धार की लड़ाई है।’ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘‘यदि आपको वास्तव में सभी मामलों में समान होना है तो संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15(2), 17 और 23 और 24 जैसे मुक्तिदायक प्रावधानों को लागू करके समाज के सभी वर्गों को जो प्रतिबद्धता दी है, हम में से प्रत्येक को अपने उक्त वादे पर खरा उतरना होगा। संघ और राज्य यह सुनिष्चित के लिए बाध्य हैं कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह से समाप्त हो जाए। हम में से प्रत्येक व्यक्ति आबादी के इस बड़े हिस्से के प्रति कृतज्ञ है, जो अमानवीय परिस्थितियों में व्यवस्थित रूप से फंसे हुए, अनदेखे, अनसुने और मौन बने हुए हैं। यह सम्मान संविधान और 2013 अधिनियम के प्रावधानों में स्पष्ट निषेधों के माध्यम से संघ और राज्यों पर अधिकारों और दायित्वों की नियुक्ति का मतलब यह है कि वे प्रावधानों को अक्षरश लागू करने के लिए बाध्य है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘‘हम सभी नागरिकों पर सच्चे भाईचारे को साकार करने का कर्तव्य है। यह बिना कारण नहीं है कि हमारे संविधान ने गरिमा और भाईचारे के मूल्य पर बहुत जोर दिया है। लेकिन कई लोगों के लिए अन्य सभी स्वतंत्रताएं कल्पना से परे हैं। हम सभी आज जो हमें अपने गणतंत्र की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं, उन्हें जागना होगा, जिससे हमारी पीढ़ियों के लिए जो अंधकार बना हुआ है वह दूर हो जाए और वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से इन स्वतंत्रताओं और न्याय का आनंद उठा सकें जिन्हें हम हल्के में लेते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रकरण 1 फरवरी को नियत किया है।