सत्ता के अमृत फल के लिए अलग  टोकरी लिए नेताओं के मोर्चे

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सत्ता के अमृत फल के लिए अलग  टोकरी लिए नेताओं के मोर्चे

सत्ता के अमृत फल पकने का मौसम नजदीक आ रहा है | इसलिए हर क्षेत्र के नेता अलग अलग रंग और भोंपू लेकर निकल पड़े हैं | ताज़ी आवाज लखनऊ से निकल कोलकाता में सुनाई दी है | समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ने कांग्रेस की ‘ दादागिरी ‘ को नकारते हुए अलग से छोटे बड़े मोर्चे के रुप में आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने का निश्चय किया है | मतलब ये दल अपने अपने क्षेत्र / राज्य में आपसी सहयोग से चुनाव लड़ेंगे ताकि भारतीय जनता पार्टी को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़े | ममता इसी इरादे से पूरब के ही ओडीसा के एकछत्र नेता नवीन पटनायक से बातचीत करेंगी | यह मेल मुलाकात कितनी फलदायक हो सकती है ? हाल के पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव में बड़ी तैयारी और दावों के साथ उतरी तृणमूल कांग्रेस को बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा | अखिलेश बंगाल में या ममता उत्तर प्रदेश में कितने वोट ले या दिला सकती हैं ? ममता तो गोवा में भी विफल हुई |

मजेदार बात यह है कि अखिलेश और ममता पहले महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार से भी साझेदारी की बात करते रहे हैं | लेकिन शरद पवार तो बार बार यह राग ही गए रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी को साथ रखे बिना किसी मोर्चे की टोकरी जनता को नहीं लुभा सकेगी | शरद पवार कभी सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के विरोध के नाम पर कांग्रेस से भागे थे , लेकिन अब कहने को सही मलिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष हैं और महाराष्ट्र में कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिव सेना के साथ सत्ता और संघर्ष के दौर में साथी हैं | अखिलेश और ममता को अपने वोट बैंक के लिए कांग्रेस और शिव सेना की कोठरी से खतरे हैं | उद्धव का कट्टर हिंदुत्व पूरी टोकरी के रंग और स्वाद को बदल देगा | उधर अखिलेश को  जात भाई बिहार के तेजस्वी यादव की पार्टी से उत्तर प्रदेश – बिहार में थोड़ा समर्थन मिल सकता है | लेकिन तेजस्वी तो जनता दल ( यु ) के नीतीश बाबू को प्रधान मंत्री बनवाने की तावीज लिए सत्ता सुख और पुराने घोटाले के मामलों में भाजपा सरकार से लड़ने के लिए कांग्रेस ही नहीं अरविन्द केजरीवाल से भी कंधा मिला रहे हैं |

अखिलेश , तेजस्वी , ममता , पवार के साथ हाथ मिलाने के लिए दक्षिण से के चंद्रशेखर राव भी दौड़ भाग कर रहे हैं | वे एक नए मोर्चे से देवगौड़ा की तरह सत्ता का फल पाने का दिवा स्वप्न देख रहे हैं | वे यह भूल जाते हैं कि देवगौड़ा कांग्रेस के बल पर प्रधान मंत्री बने और उसीके धक्के से गिरे | इसीलिए अब देवगौड़ा और उनके पुत्र कुमारस्वामी  कर्नाटक में भी पर्दे  के पीछे कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लिए गलियारे खुले रखे हैं | आंध्र के जगन रेड्डी तेलंगाना के सत्ताधारी परिवार या कांग्रेस से जुड़ने को तैयार नहीं हैं | तमिलनाडु बड़ा राज्य हैं | कांग्रेस मज़बूरी में द्रमुक और उसके नेता स्टालिन से किसी भी कीमत पर जुड़ी रहना चाहती है | कांग्रेस में अब राजीव गाँधी से जुड़े वे नेता कम रह गए हैं जो कभी राजीव हत्या कांड के लिए लिट्टे आतंकवादियों से सम्बन्ध वाले द्रमुक नेताओं के विरुद्ध निरंतर आवाज उठा रहे थे | इस मुद्दे पर तो सोनिया गाँधी तक कांग्रेसी प्रधान मंत्री नरसिंह राव से भड़की हुई थीं | उन्हें लगता था कि राव द्रमुक नेताओं को दण्डित नहीं कर रहे | केरल में कांग्रेस के लिए कम्युनिस्टों से चुनौती है | फिर भी त्रिपुरा में उसने कम्युनिस्टों से समझौता कर लिया और दोनों की फजीहत हो गई |  जम्मू कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला के साथ कई बार रिश्ते जुड़े और टूटे हैं | अब फारुख के घोटालों पर केंद्रीय जांच एजेंसियों की तलवार लटकी दिख रही है | इसलिए राहुल के साथ मोहब्बत दिखा रहे हैं , अन्यथा पवार की तरह उन्हें मोदी की शरण लेने में संकोच नहीं होता |    मतलब टोकरियों के रंग और समूह सबको भ्रमित कर रहे हैं |

 भारतीय राजनीति के पुराने अध्याय को पलटने से यह भी समझा जा सकता है कि मोरारजी देसाई , जगजीवन राम , चौधरी चरण सिंह , कामराज , देवराज अर्स , ब्रह्मानंद रेड्डी और चद्रशेखर जैसे दिग्गज  नेता जनता पार्टी , जनता दल , लोकदल आदि इत्यादि और मोर्चे बनाकर कितने सफल हो पाए ? जनता पार्टी तो कांग्रेस और भारतीय जनसंघ के लोगों और विचारों से खिन्न होकर तोड़ी गई थी | कौन कितना सफल हुआ ? संघ का निरंतर विरोध ही नहीं हुआ , प्रतिबन्ध तक लगे , लेकिन आज संघ कितना संगठित और सशक्त दिख रहा है और उसके ही स्वयंसेवक भाजपा के झंडे तले सत्ता में हैं |

 देश की सबसे पुरानी  पार्टी और सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार कांग्रेस और उसके राजदुलारे राहुल गाँधी के कदम और स्वर हर महीने बदलते रहते हैं | अभी भारत जोड़ो की लम्बी यात्रा से उनकी दुकान की चमक दिखने का आभास हुआ था , लेकिन लन्दन की सूट बूट वाली यात्रा और वहां बोले गए जहरीले बोल से उसी दुकान पर कालिख उभरने लगी है | उनकी  विभिन्न दिशाओं की यात्रा पर कांग्रेस के ही पुराने जमीनी नेता और भारत यात्री चंद्रशेखरजी की एक बात याद आती है , जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्म कथा में भी किया है | यूगोस्वालिया के एक प्रोफ़ेसर दिल्ली में उनसे आए और कुछ प्रश्न किए | उनका एक प्रश्न यह भी था कि भारत में सब कुछ है , प्राकृतिक दें पर्याप्त और असीम है , लोग मेहनती और थोड़े में संतोष करने वाले हैं | गरीबी हटाने का नारा आप लोगों ने दिया था , फिर गरीबी क्यों नहीं मिटती ? चंद्रशेखरजी ने प्रोफेसर साहब से कहा – आप दुनिया में घूमते हैं , सामाजिक अध्ययन करते हैं , आप बताइये किसी भी देश के नेता ने क्या गरीबी का अनुभव किए बिना गरीबी हटाने में सफलता पाई है ? महात्मा गाँधी ने अफ्रीका में भयानक गरीबी और यातना को देखा और अनुभव किया | वे भारत में गरीबों की जिंदगी से सीधे जुड़ गए | भूख की पीड़ा का अनुभव किये बिना कोई भूख और गरीबी नहीं मिटा सकता | ” राहुल गाँधी और उनकी नई चौकड़ी की यही समस्या है | वे आधुनिक टूरिस्ट की तरह यात्रा करते हैं और दूसरों के बताए फार्मूलों से राजनीति करते हुए सत्ता का अमृत फल चाहते हैं | उनका मुकाबला प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी तथा मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों कार्यकर्ताओंसे है , जो भूख गरीबी को झेलकर संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते रहे हैं | मोदी को उसी गरीबी को ख़त्म करने के अभियान में एक हद तक सफलता मिलने से समर्थन मिल रहा है | इसलिए कितने ही मोर्चे बनें , मोदी के रथ को रोकना बहुत कठिन दिख रहा है |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।