
सीख लो श्रीलंका से…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और अपने हितों के लिए राष्ट्रीय हितों के साथ खिलवाड़ ने श्रीलंका को दिवालिएपन की कगार पर पहुंचा दिया। नेपाल में जिस तरह लोकतंत्र के सभी स्मारकों को जलाकर विद्रोही भीड़ ने राष्ट्रहितों की कुर्बानी देने वाले राजनेताओं को सबक सिखाया है, ऐसा ही सबक श्रीलंका की आम जनता ने वहां के नेताओं को सिखाया था। दोनों ही जगह विद्रोह की वजह एक जैसी ही है। भ्रष्टाचार, सत्ता का दुरुपयोग और संसाधनों की लूट, निजी हितों के लिए राष्ट्र हितों की बलि देने की मानसिकता जैसे कारण श्रीलंका में भी बर्बादी लेकर आए थे और नेपाल को भी बर्बाद कर रहे थे। यही वजह है कि श्रीलंका में पूर्व राष्ट्रपतियों की सारी सुविधाएं छीन लेने वाला नया कानून आ गया है। यहां प्रेसिडेंट एंटाइटलमेंट (रिपील) एक्ट पास हो गया है। इसके तहत पूर्व राष्ट्रपतियों और उनकी विधवाओं को आधिकारिक आवास, मासिक भत्ता, सुरक्षा स्टाफ, वाहन, सचिवालय सुविधाएं और अन्य लाभ मिलने बंद हो गए हैं। अब देश के सभी पूर्व राष्ट्रपतियों को सरकारी आवास खाली करना पड़ रहा है। 80 साल के होने जा रहे पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को अपना बंगला खाली कर नए घर में शिफ्ट होना पड़ रहा है। बुढ़ापे में उन्हें अपना घर खाली करना पड़ रहा है। श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के पॉश इलाके सिनामैन गार्डेन में मौजूद भव्य और महल जैसे दिखने वाले घर को छोड़कर महिंदा राजपक्षे अब कोलंबो से 190 किलोमीटर दूर तंगाल्ले में रहेंगे। तंगाल्ले स्थित कार्लटन हाउस ही वह जगह है जहां राजपक्षे ने 1970 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। हालांकि 2022 में जब श्रीलंका में बड़े जनआंदोलन के दौरान महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई और उस समय के राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे को पद छोड़ना पड़ा था, तब महिंदा के आधिकारिक और निजी आवास दोनों पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए थे। अब श्रीलंका में पूर्व राष्ट्रपतियों को आम नौकरीपेशा की तरह सिर्फ पेंशन मिलेगी। उनके सभी लाभ समाप्त हो गए हैं।
यह बात आजकल चौक चौराहों पर सुनने को मिल रही है कि भारत के सभी पड़ोसी देशों की हालत खराब है। श्रीलंका में तख्तापलट हुआ था, बांग्लादेश में अराजकता की स्थिति अब भी बनी हुई है, नेपाल में प्रचंड विद्रोह की आग इतिहास में दर्ज हो गई है, पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर है और बाकी हालात भी बहुत अच्छे नहीं है। हालांकि भारत की तुलना इन छोटे-छोटे देशों से नहीं की जा सकती। लेकिन फिर भी छोटे देशों में घटी घटनाएं भी बड़े से बड़े देशों को सबक सिखाने का माद्दा रखती हैं। श्रीलंका में 2024 में पूर्व राष्ट्रपतियों के ताम-झाम में सरकारी खजाने से 11 अरब श्रीलंकाई रुपये खर्च हुए थे। पर अब न किसी के पास भव्य सरकारी बंगला रहेगा, न भारी भरकम मंथली अलाउंस मिलेगा, न ही चमचमाती कारें आम आदमी को मुंह चिड़ाएंगीं और न हीं मशीनगन लिए कमांडो का सुरक्षा घेरा बेवजह शान-शौकत का भौंडा प्रदर्शन का जरिया बनेंगे। दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुके श्रीलंका में जब पिछले साल चुनाव हुए थे तो राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे अनुरा कुमारा दिसानायके ने देश के लोगों से वादा किया था कि वे पूर्व राष्ट्रपतियों की शाहखर्ची पर लगाम लगाएंगे। महंगाई और नेताओं के मनमानी खर्चे से त्रस्त श्रीलंका की जनता ने अनुरा दिसानायके के इस चुनावी वादे का समर्थन किया था।
राष्ट्रपति बनने के बाद अनुरा कुमारा दिसानायके ने इस बिल पर काम शुरू किया। यह विधेयक जुलाई 2025 में कैबिनेट ने मंजूर किया और 31 जुलाई को गजट में प्रकाशित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने राजपक्षे परिवार की चुनौती को खारिज करते हुए 9 सितंबर को इसे साधारण बहुमत से पारित करने की मंजूरी दी। संसद ने 10 सितंबर को 151-1 के मतों से इसे पारित कर दिया। और 11 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सरकारी सुविधाओं को छोड़ना पड़ा। अब अन्य पूर्व राष्ट्रपति भी अब इन सुविधाओं को छोड़ने को मजबूर हैं। दुःख इस बात का है कि देश की दुर्दशा के बाद अब इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचा है।
भारत को भी कम से कम सरकारी सुविधाओं के नाम पर फिजूलखर्ची, बेवजह का भौंडा प्रदर्शन करने के लिए भारी भरकम सरकारी खर्च पर सरकारी सुरक्षा, संसाधनों की मनमानी लूट-खसोट, भ्रष्टाचार, दिखावे जैसे मनमानी रवैया पर लगाम लगाने की बहुत ज्यादा जरूरत है। जिस तरह सरकार कर्ज लेकर विकास करने को मजबूर हैं, ऐसे में कम से कम तामझाम और दिखावे से दूर रहने की एक मुहिम सरकार को चलानी ही चाहिए। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है…की तर्ज पर जो भी बचत होगी वह भी राष्ट्रहित में बड़ा योगदान देगी। और अगर भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम लग जाए तो हो सकता है सरकारों को कर्ज लेकर विकास करने की मजबूरी से भी मुक्ति मिल जाए। श्रीलंका सीख तो दे ही रहा है, अब सीखना और ना सीखना यह हमारे खाते में है… उचित तो यही है कि श्रीलंका से सीख लेकर सभी तरह की फिजूलखर्ची पर सरकार और हम सभी को लगाम लगाना ही चाहिए।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





