Learning from Indore, Agra Also Clean : आगरा ने इंदौर से ही सीखा शहर को कैसे स्वच्छ रखना! 

इसके बाद ही उसे देश के स्वच्छ शहरों की लिस्ट 85 से 10वीं रैंक मिली! 

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Learning from Indore, Agra Also Clean : आगरा ने इंदौर से ही सीखा शहर को कैसे स्वच्छ रखना! 

 

Agra : इस बार के स्वच्छता सर्वेक्षण में आगरा ने देश में 10वीं रैंक हासिल की है। यह संभव हो पाया उस कूड़े के पहाड़ को हटाने की वजह से, जो शहर की खूबसूरती पर दाग लगा रहा था। इतना ही नहीं कूड़े की प्रोसेसिंग से कमाई भी की और रैंक भी सुधारी। एक साल में 85 वें स्थान से छलांग लगाकर देश के सबसे स्वच्छ 10 शहरों में आगरा शामिल हो गया।

इसके पीछे बड़ी वजह कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने के साथ ही इससे प्रोसेसिंग रही। इंदौर नगर निगम की तर्ज पर आगरा नगर निगम ने न केवल कचरे को निपटाया, बल्कि इससे कमाई भी की। स्वच्छ सर्वेक्षण में इस वजह से अच्छे अंक मिले, जिसका असर शहर की सफाई के साथ रैंकिंग पर पड़ा। स्वच्छ भारत मिशन के तहत आगरा नगर निगम हर दिन निकलने वाले 800 टन कचरे को वैज्ञानिक ढंग से निपटा कर कमाई भी कर रहा है।

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मिशन के सह प्रभारी सुदेश यादव के मुताबिक हर दिन 500 टन गीला कचरा कंपोस्ट खाद बनाने में उपयोग हो रहा है। इससे 40 टन खाद हर दिन बनाई जा रही है। इसे कृभको खरीद रहा है और 3100 रुपये प्रति टन के हिसाब से भुगतान भी कर रहा है।

नगर निगम के लिए यह गीला कचरा कमाई का बड़ा स्रोत है। इसके अलावा 100 टन गोबर से खाद बनाई जा रही है। करीब 10 टन कंपोस्ट खाद इससे बनाई जा रही है, जो नगर निगम के पार्कों और सड़कों के किनारे लगे पौधों में उपयोग की जा रही है। इसका कुछ हिस्सा बेचा भी जा रहा है, जिसका 50% नगर निगम को मिल रहा है।

 

इंदौर से सीखे यह सबक

– घरों से गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग लेना

– कूड़ा उठाने की डिजिटल मॉनिटरिंग, स्कैनिंग

– कूड़ा उठाने वाले वाहनों की जीपीएस लोकेशन

– कूड़े के पुराने पहाड़ों को प्रोसेसिंग के जरिये खत्म किया

– रोजाना आने वाले कचरे की प्रोसेसिंग कर खाद बनाई

– प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल सड़क, दाना बनाने में

– शहर में सड़कों पर, गलियों में बने डलावघर खत्म किए

– ट्रीटेड सीवर का इस्तेमाल पार्क के पौधों की सिंचाई में

– घर-घर में अलग-अलग कचरे के लिए डस्टबिन दिए

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कंपनियां खरीद रही प्लास्टिक दाने 

स्वच्छ सर्वेक्षण में कूड़े के पहाड़ खत्म होने के साथ कचरा निस्तारण को देखा गया। सबसे बड़ी मुसीबत प्लास्टिक कचरे की थी, जिसे प्लास्टिक दाना बनाकर और शू लास्ट के साथ सिंचाई के लिए प्लास्टिक पाइप बनाने में उपयोग किया जा रहा है। हर दिन पांच टन प्लास्टिक प्रोसेसिंग की जा रही है, जबकि 65 टन मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी में निकाली जा रही है। इससे नगर निगम को चार लाख रुपये की आय हो रही है। सुदेश यादव ने बताया कि भवन निर्माण के मलबे से पेवर, कर्व ब्लॉक बनाए जा रहे हैं। 20 टन क्षमता वाले प्लांट की क्षमता अब बढ़ाकर 150 टन की जा रही है।

कूड़े से बिजली बनाने का प्लांट अगले साल 

कूड़े से बिजली बनाने का प्लांट सितंबर 2026 में चालू हो जाएगा। तब आगरा की रैंकिंग में और सुधार होगा। टॉप-3 में आने के लिए कूड़े से बिजली बनाने के साथ इन प्लांटों का पूरी क्षमता के साथ संचालन जरूरी है। नगर निगम ने कुबेरपुर लैंडफिल साइट पर 72 एकड़ जमीन में से 47 एकड़ कचरे को निपटाकर खाली कराई है। इसमें से 11 एकड़ पर हरियाली की गई है, वहीं 10 एकड़ पर मियावाकी पद्धति से जंगल विकसित किया जा रहा है। बाकी जमीन खाद बनाने, ब्लॉक बनाने, सेनेटरी लैंडफिल साइट बनाने में उपयोग की गई है।