आओ ओटीटी के जमाने में पहली मूक फिल्म “श्री पुंडालिक” की बात करते हैं…

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आओ ओटीटी के जमाने में पहली मूक फिल्म “श्री पुंडालिक” की बात करते हैं…

कभी 70 एमएम के पर्दे से शुरू हुआ फिल्म का सफर अब ओटीटी प्लेटफॉर्म तक आ पहुंचा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म का मतलब है ओवर-द-टॉप प्लेटफॉर्म , जो इंटरनेट के माध्यम से वीडियो या अन्य डिजिटल मीडिया से संबंधित सामग्री प्रदान करता है। यह प्लेटफॉर्म ही अब सीरिज में कहानियों को परोसकर दर्शकों को बांधे रखता है। इस जमाने में आओ गम बात करें 112 साल पुरानी उस मूक फिल्म की, जिससे सिनेमा का सफर शुरू हुआ था। उस मूक फिल्म से शुरुआत हुई और फिर बोलती फिल्में आईं, फिर रंगीन सिनेमा फिर वीएफएक्स की एंट्री और फिर तब आज ओटीटी प्लेटफार्म फिल्मों की जगह लेने को आतुर है। ओटीटी नया चर्चित शब्द है, यहां तक ​​कि यह अब भी नियमों और सेंसर की पकड़ से बाहर है। हम यह भी नहीं जानते कि ओटीटी वाला सिनेमा बंधनों में जकडेगा या फिर उससे आगे का नया कोई स्वरूप हमारे सामने होगा।

खैर हम बात करें पहली मूक फिल्म की।भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म आज की ही तारीख यानि 18 मई 1912 में  रिलीज हुई थी।  इस फिल्म का नाम ‘श्री पुंडालिक’ था। इस फिल्म को साल 1912 में 18 मई के रोज मुंबई के कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ में रिलीज किया था और यह फिल्म 2 हफ्ते तक चली। हालांकि इसे कई लोग पहली भारतीय फीचर फिल्म भी नहीं मानते क्योंकि इसकी शूटिंग ब्रिटिश सिनेमैटोग्राफर ने की थी और यह महज 22 मिनट की फिल्म था। फिल्म की शूटिंग बॉम्बे के मंगलदास वादी में हुई थी, जहां प्रोफेशनल थियेटर ग्रुप पुंडालिक नाटक का मंचन कर रहा था।यह एक मूक फिल्म थी जिसका निर्देशन दादा साहेब तोर्ने ने किया था। हालांकि देश में ऐसे लोगों की तादाद भी काफी है जो राजा हरिश्चंद्र को पहली भारतीय फीचर फिल्म मानते हैं।

दादासाहेब फाल्के की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’, दादासाहेब तोरने की ‘श्री पुंडालिक’ के रिलीज होने ठीक एक साल बाद 3 मई साल 1913 को आई थी। ऐसे में सिनेमा से जुड़े कई बुद्धिजीवियों के बीच इस बात को लेकर हमेशा से बहस रही है कि भारतीय सिनेमा के जन्मदाता कौन हैं ? कुछ लोग दादासाहेब तोरने तो कुछ दादासाहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जन्मदाता मानते हैं।

पर पहली फिल्म 1912 में रिलीज हुई थी और उस मूक फिल्म का नाम ‘श्री पुंडालिक’ था। इसको लेकर कोई विवाद नहीं है। 18 मई की तारीख इस फिल्म को याद करने का दिन है। ओटीटी के जमाने में यह मूक फिल्म सुखद अनुभूति कराती है…।