आओ राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिम को याद करें…
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
यह हमारे देश भारत का राष्ट्रगीत है। संस्कृत में लिखे इस पद्य का हिंदी अर्थ यह है –
मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता! पानी से सींची, फलों से भरी,दक्षिण की वायु के साथ शान्त, कटाई की फसलों के साथ गहरी, माता!
उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं, उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है, हँसी की मिठास, वाणी की मिठास, माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।
मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
आज राष्ट्रगीत की चर्चा इसलिए की जा रही है, क्योंकि इसके रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म आज ही के दिन 26 जून 1838 को हुआ था। पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में जन्मे प्रसिद्ध लेखक बंकिम चंद्र बंगला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार रहे हैं। बंकिम ने अपना पहला बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी 1865 में लिखा था, तब वे महज 27 साल के थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बंकिम चंद्र को बंगला साहित्य को जनमानस तक पहुंचाने वाला पहला साहित्यकार भी माना जाता है। करीब 56 वर्ष की आयु में 08 अप्रैल, 1894 को 19वीं सदी के इस क्रांतिकारी उपन्यासकार ने दुनिया को सदैव के लिए अलविदा कह दिया था। पर इनके द्वारा 1874 में लिखा गया यह अमर गीत वंदे मातरम न केवल भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मुख्य उद्घोष बना बल्कि आज देश का राष्ट्रगीत भी है। अमर गीत वंदे मातरम को लिखकर महान साहित्य रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी सदैव के लिए अमर हो गए। इस रचना के पीछे एक रोचक कहानी यह है कि अंग्रेजी हुक्मरानों ने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत- गॉड! सेव द क्वीन को हर कार्यक्रम में गाना अनिवार्य कर दिया था। इससे बंकिम चंद्र समेत कई देशवासी आहत हुए थे। इससे जवाब में उन्होंने वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत की रचना की। इस गीत के मुख्य भाव में भारत भूमि को माता कहकर संबोधित किया गया था। यह गीत बाद में उनके 1882 में आए उपन्यास आनंदमठ में भी शामिल किया गया था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया।
1896 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ था। उस अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम गीत गाया गया था। थोड़े ही समय में राष्ट्र प्रेम का द्योतक यह गीत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों का पसंदीदा गीत और मुख्य उद्घोष बन गया। इस गीत की धुन ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर ने बनाई थी। आजाद भारत में 24 जनवरी, 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा दिए जाने की घोषणा की थी।
साहित्यकार के रूप में बंकिम चंद्र की प्रथम अंग्रेजी में प्रकाशित रचना राजमोहन्स वाइफ थी। प्रथम बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी 1865 में आया।सबसे चर्चित उपन्यास कपालकुंडला 1866 में, मासिक पत्रिका बंगदर्शन का प्रकाशन 1872 में, उपन्यास विषवृक्ष 1873 में, राष्ट्रीय दृष्टिकोण आधारित उपन्यास आनंदमठ 1882 में और अंतिम उपन्यास सीताराम 1886 में प्रकाशित हुआ था। उनकी अन्य रचनाएं मृणालिनी, कृष्णकांतेर दफ्तर, इंदिरा, राधारानी, देवी चौधरानी और मोचीराम गौरेर आदि शामिल हैं। इनके अलावा कुछ और प्रमुख गीत और कविताएं भी उन्होंने लिखीं हैं। बांग्ला भाषा के इस प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का रबीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में महत्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय और रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे। बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है।
लोकप्रियता के मामले में बंकिम, शरद और रवीन्द्र नाथ ठाकुर से भी आगे हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है। स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो वन्दे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को “वन्दे मातरम्” गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् 1937 में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ।
खैर याद हम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय को कर रहे हैं। जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ योद्धा और पत्रकार-साहित्यकार के बतौर संघर्ष करने वालों में अंग्रिम पंक्ति में शामिल थे। 26 जून 2023 को इस महान शख्सियत की 185वीं जयंती है। राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय आपको यह राष्ट्र नमन करता है…।