आओ ‘टाइगर’ और ‘मोहन टाइगर’ की बात करते हैं…

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आओ ‘टाइगर’ और ‘मोहन टाइगर’ की बात करते हैं…

कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्य प्रदेश की राजनीति में ‘टाइगर अभी जिंदा है…’, जुमला बहुत हिट रहा है। और उसके बाद ‘मैं भी टाइगर हूं…’ के दावे लगातार होते रहे हैं। तो चलो आज हम भी ‘टाइगर’ और ‘मोहन टाइगर’ की बात करते हैं। टाइगर की बात इसलिए क्योंकि आज से 53 साल पहले 1972 में इसे भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया था। बाघ पैंथरा टाइग्रिस-लिन्नायस, पीले रंगों और धारीदार लोमचर्म वाला एक पशु है। राजसी बाघ, तेंदुआ, टाइग्रिस धारीदार जानवर है। अपनी शालीनता, दृढ़ता, फुर्ती और अपार शक्ति के लिए बाघ को ‘राष्ट्रीय पशु’ कहलाने का गौरव प्राप्त है। बाघ की आठ प्रजातियों में से भारत में पाई जाने वाली प्रजाति को रॉयल बंगाल टाइगर के नाम से जाना जाता है। उत्तर-पश्चिम भारत को छोड़कर बाकी सारे देशों में यह प्रजाति पायी जाती है। भारत के अतिरिक्त यह नेपाल, भूटान और बंगलादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है।
तो बंगाल टाइगर (बाघ की एक प्रजाति) भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसे ठीक 53 साल पहले 18 नवंबर 1972 को भारत का राष्ट्रीय पशु चुना गया था। भारतीय बाघों पर किए गए एक शोध में पशु वैज्ञानिकों को इनके पूर्वजों के चीन में रहने के संकेत मिले हैं। कुछ समय पहले वैज्ञानिकों को एक विलुप्त उप प्रजाति के बाघ का डीएनए मिला था। उसकी जांच से वैज्ञानिकों को पता चला है कि भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ के पूर्वज लगभग 10 हजार साल पहले मध्य चीन से भारत आए थे। चीन से भारत आने के लिए इन बाघों के पूर्वजों ने चीन के जिस संकरे गांसु गलियारे का इस्तेमाल किया था। हजारों साल बाद वही मार्ग व्यापारिक सिल्क रूट के तौर पर दुनिया में प्रसिद्ध हुआ। मतलब इंसानों ने जिस सिल्क रूट की खोज करने में हजारों साल लगा दिए, उसे इन चालाक बाघों ने उससे भी सदियों पहले खोज लिया था।
और भारत का गौरव माने जाने वाले बाघों की गिनती एक बार फिर शुरू हो गई है। टाइगर स्टेट का ताज रखने वाले एमपी में बाघों की संख्या आने वाले वर्षों में नया इतिहास रच सकती है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2026 में होने वाले टाइगर सेंसेस में प्रदेश के बाघों की संख्या 1000 से ज्यादा हो सकती है। वर्तमान में राज्य में 785 बाघ हैं और लगातार बढ़ते सुरक्षित आवास इस अनुमान को मजबूती देते हैं।
और अब बात ‘टाइगर मोहन’ की। दुनिया के सबसे पहले सफेद बाघ मोहन को 1951 में सीधी जिले के बरगढ़ी के पंखोरा के जंगल में पकड़ा गया था। दुनिया भर में आज जितने भी सफेद बाघ हैं वह इसी बाघ मोहन की संतान हैं। दुनिया की नजर में आए पहले सफेद बाघ मोहन के पकड़े जाने की कहानी भी अद्भुत है। तत्कालीन रीवा महाराजा मार्तंड सिंह, जोधपुर के राजा अजीत सिंह के साथ सीधी जिले के बरगढ़ी के पंखोरा जंगल में शिकार खेलने गए थे। इसी दौरान एक गुफा के पास एक बाघिन अपने तीन शावकों के साथ नजर आई। महाराजा ने बाघिन और उसके दो शावको को मार दिया। तीसरा शावक पास में ही एक गुफा में छिप गया। वह देखने में बिल्कुल अद्भुत था। महाराज ने उसको पकड़ने का फैसला किया। उसे पकड़कर गोविंदगढ़ के किले में लाया गया और नाम दिया गया ‘मोहन’। आज पूरी दुनिया में जहां भी सफेद बाघ दिखाई देते हैं, वह इसी सफेद बाघ मोहन की संतानें हैं। रीवा महाराज मार्तंड सिंह ने मोहन को गोविंदगढ़ के किले में रखा। तीन बाघिन बेगम, राधा और सुकेसी के साथ मोहन को अलग-अलग समय में रखा गया जिनसे मोहन की कुल 34 संतानें हुईं जिसमें से 21 सफेद थीं। बेगम ने 7 बच्चों को जन्म दिया, राधा ने सर्वाधिक 14 और सुकेसी ने 13 बच्चों को जन्म दिया।
और अब टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में नए टाइगर रिजर्व की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। मध्यप्रदेश में 9 टाइगर रिजर्व हैं, जिसमें कान्हा किसली, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना बुंदेलखंड, सतपुड़ा नर्मदापुरम, संजय दुबरी सीधी, नौरादेही, माधव नेशनल पार्क और डॉ. विष्णु वाकणकर टाइगर रिजर्व (रातापानी) शामिल हैं। नौरादेही, माधव नेशनल पार्क और डॉ. विष्णु वाकणकर टाइगर रिजर्व (रातापानी) को मोहन सरकार में ही नई पहचान मिली है। तो मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट विरासत को यूं ही आगे बढ़ाता रहे। बाघों की संख्या बढ़ती रहे और सफेद बाघ मोहन की संतानों की संख्या में लगातार इजाफा होता रहे और मोहन कार्यकाल में मध्यप्रदेश का वन्य प्राणी संसार नई उपलब्धियां हासिल करता रहे…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।