झूठ बोले कौआ काटे! ओबीसी व मुस्लिम वोट के लिए लड़ेंगे ‘इंडिया’ वाले!
– रामेन्द्र सिन्हा
ओबीसी का अपमान करने के आरोप में सजा पाने और फिर सर्वोच्च न्यायालय से राहत पाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी के जबर्दस्त ओबीसी प्रेम से ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार पड़ने की संभावना प्रबल हो गई है। सवाल सपा-राजद-जदयू और जनता दल (सेक्युलर) जैसे दलों के अस्तित्व का है, जिनका राजनीतिक आधार ही जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण पर टिका हुआ है। मुस्लिम वोट बैंक की हिस्सेदारी को लेकर लड़ाई अलग है।
महिला आरक्षण कानून में ‘ओबीसी उप-कोटा’ की मांग पर राहुल गांधी से जब मीडिया ने पूछा कि वह विपक्ष में हैं तो ओबीसी उप-कोटा की मांग क्यों कर रहे हैं, जबकि 10 साल तक कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन ने अपने विधेयक में उसी ओबीसी उप-कोटा को शामिल नहीं किया और क्या उन्हें इसका अफसोस है? राहुल ने कहा, “मुझे इस बात का 100% अफसोस है कि जब हम सरकार में थे तो हमने महिला आरक्षण बिल में ओबीसी उप-कोटा शामिल नहीं किया। यह तभी किया जाना चाहिए था। हम इसे अब पूरा करेंगे।”
उन्होंने यह नहीं बताया कि कैसे। यह पूछे जाने पर कि कांग्रेस सरकार के समय सरकारी सचिवों में ओबीसी प्रतिनिधित्व का अनुपात क्या था, मोदी सरकार पर आरोप लगाने वाले राहुल ने कहा, “अगर हमारे समय में कम प्रतिनिधित्व था, तो यह भी गलत था। अगर उनके (एनडीए) समय में प्रतिनिधित्व कम है तो यह भी गलत है।” बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि आपकी जहां राज्यों में सरकार है वहां क्या स्थिति है। मालवीय ने ट्वीट करते हुए लिखा कि कांग्रेस की चार (राजस्थान, छतीसगढ, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक) प्रदेशों में आज भी सरकार है लेकिन एक में भी ओबीसी चीफ सेक्रेटरी नहीं है।
बोले तो, अप्रैल 2023 में पहली बार, कर्नाटक के कोलार में चुनावी मंच से राहुल गांधी ने ओबीसी और जातिगत जनगणना की पैरवी करके दर्शाया था कि वो ओबीसी विरोधी नहीं हैं। जबकि, कोलार में ही राहुल गांधी की मोदी सरनेम पर की गई विवादित टिप्पणी मुद्दा बन गई थी। इसके बाद राहुल दिल्ली में युवाओं के बीच समझाने लगे कि जातिगत जनगणना क्यों ज़रूरी है। राहुल गांधी जिस जातिगत जनगणना की पैरवी कर रहे हैं, उसे जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह की सरकारों ने क्यों नहीं कराया, इसका जवाब राहुल गांधी ने नहीं दिया। कांग्रेस के दूसरे नेता और प्रवक्ता भी जातिगत जनगणना रोकने की वजह नहीं बल्कि सिर्फ उसे जारी करने की जरूरत ही समझाते रहे।
अंग्रेजों को जातिगत जनगणना बंद करने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने ही राजी किया था, जिन्हें डर था कि धर्म के नाम पर बंटने के बाद देश कहीं जातियों में ना बंट जाए। 1990 में जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हो रही थी, तब राजीव गांधी विपक्ष के नेता थे। उन्होंने ओबीसी आरक्षण का संसद में विरोध किया, जिसके बाद उप्र और बिहार में कांग्रेस मंडल बनाम कमंडल की राजनीति का शिकार हो गई। कई राज्यों ने भी जाति आधारित जनगणना कराने का प्रयास किया लेकिन अधिकांश असफल रहे।
झूठ बोले कौआ काटेः
भारत की स्वतंत्रता के बाद से कांग्रेस पार्टी के लिए ओबीसी प्रतिनिधित्व को संभालना एक दीर्घकालिक चुनौती रही है। उप्र-बिहार में ओबीसी भावनाओं को भुनाने में कांग्रेस की विफलता ही थी कि मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे क्षेत्रीय ओबीसी नेताओं का उदय हुआ।
भाजपा ने कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरी का लाभ उठाया और कल्याण सिंह जैसे ओबीसी नेताओं को आगे करके एक “गैर-यादव ओबीसी” वोट बैंक बनाया, जिसके चलते लोहिया, चरण सिंह और वीपी सिंह जैसे ओबीसी नेताओं का पतन हुआ। भाजपा की राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने ओबीसी और दलितों को विभाजित करने के लिए, 2000 में जाटों को ओबीसी का दर्जा देते हुए “आरक्षण के भीतर आरक्षण” की शुरुआत की। जबकि, कांग्रेस जिसने मनमोहन सिंह के कार्यकाल में केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण और जाति जनगणना की शुरुआत की थी, अपनी ओबीसी समर्थक नीतियों से लाभ उठाने में विफल रही।
तो क्या, जातीय जनगणना के सहारे राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं? कई राज्यों में कांग्रेस का आधार वोट बैंक (मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित) अब खिसक चुका है। इसकी भरपाई और भाजपा के हिंदुत्व कार्ड को कमजोर करने के लिए पार्टी ओबीसी को साधने की कोशिश में जुट गई है। कर्नाटक के बाद अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में 48 फीसदी, राजस्थान में 55 फीसदी और 48 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की 65 सीटें हैं। सीएसडीएस सर्वे के अनुसार, 2009 में कांग्रेस को ओबीसी का 25 फीसदी वोट मिला था। उस वक्त लोकसभा चुनाव में पार्टी को 206 सीटें मिली थी। हालांकि, 2014 और 2019 में ओबीसी के वोट में काफी गिरावट देखी गई। हिंदी पट्टी में तो पार्टी का सफाया ही हो गया।
2014 और 2019 के चुनाव में कांग्रेस को ओबीसी समुदाय का 15-15 फीसदी वोट मिला था। अर्थात् 2009 के मुकाबले 10 फीसदी की गिरावट। वोट फीसदी गिरने की वजह से कांग्रेस को सीटों का काफी नुकसान हुआ। 2014 में कांग्रेस को 44 और 2019 में सिर्फ 52 सीटें मिलीं।
बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का वोट आसानी से कांग्रेस में ट्रांसफर हो जाए, इसलिए इस मुद्दे को कांग्रेस तेज कर रही है। यही कारण है कि उप्र में सपा और बिहार में राजद जैसे क्षेत्रीय दलों को अपने अस्तित्व के संकट का खतरा नजर आ रहा है। आने वाले दिनों में ‘इंडिया’ गठबंधन में फूट पड़ने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता।
और ये भी गजबः
पितृ पक्ष का प्रारंभ आज 29 सितंबर भाद्रपद पूर्णिमा से हो रहा है, जो आश्विन अमावस्या तक 16 दिनों तक चलेगा। पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण, दान, श्राद्ध, पिंडदान आदि कर्म करते हैं, लेकिन मान्यता है कि पितृ पक्ष में कुछ ऐसे जीव हैं, जो बड़े संकेत देते हैं। वे बताते हैं कि आपके पितर आप से खुश हैं या नाराज हैं। इतना ही नहीं, यदि वे जीव आपके हाथ का दिया खाना खा लेते हैं तो समझ लीजिए कि आपकी किस्मत चमकने वाली है।
कौआ: पितृ पक्ष के दौरान कौए की प्रतीक्षा उन सभी लोगों को होती है, जो अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। कौआ जब आता है तो वह आपके पितरों से जुड़े संकेत देता है। यदि आपने अपने पितरों के लिए भोजन का अंश निकाला है और वह उसे खा लेता है तो समझ लीजिए कि वह भोजन आपके पितरों को प्राप्त हो गया। उससे वे प्रसन्न और तृप्त हो जाते हैं और वे आपकी उन्नति, खुशहाली, वंश और धन में वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। यदि कौआ आपके दिए गए भोजन को नहीं खाता है तो वह अन्न पितरों को प्राप्त नहीं होता है, इससे वे अतृप्त रह जाते हैं। अतृप्त और नाखुश पितर नाराज होकर श्राप देते हैं।
गाय: हिंदू धर्म में गाय एक पवित्र और पूज्यनीय जीव है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गाय में देवों का वास होता है। पितृ पक्ष के समय में आप गाय के लिए भोजन निकालते हैं और वह उसे खा लेती है तो वह पितरों को प्राप्त हो जाता है। यह संकेत हैं कि आपके पितर आप से प्रसन्न हैं।
कुत्ता: पितृ पक्ष में पितरों तक भोजन पहुंचाने के लिए उनकी तिथि पर खाने का कुछ अंश कुत्ते को खिलाया जाता है। इससे पितरों की आत्म तृप्त होती है और वे अपने वंश को खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं।
चींटी: पितृ पक्ष में पितरों की तिथि पर भोजन बनाया जाता है, फिर उस भोजन का एक अंश चींटियों को डाल देते हैं ताकि वे उसे खा लें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चीटियों के माध्यम से वह भोजन पितर प्राप्त करके तृप्त होते हैं। यदि ये जीव आपके दिए गए भोजन को ग्रहण नहीं करते हैं तो यह पितरों के अतृप्त रहने का संकेत होता है।