झूठ बोले कौआ काटे! यशवंत, शौरी, शत्रुघ्न व कीर्ति की राह पर मलिक
– रामेन्द्र सिन्हा
पुलवामा हमले पर बार-बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने वाले जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यपाल मलिक का दावा है कि ‘चुनाव में सिर्फ छह महीने रह गए हैं। मैं लिखकर दे रहा हूं कि यह (मोदी सरकार) अब नहीं आएगी।‘ दूसरी तरफ, न पीएम मोदी उन्हें भाव देते हैं न भाजपा। तो क्या मलिक का राजनीतिक हश्र पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद जैसा होने जा रहा है?
हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ बातचीत के दौरान सत्यपाल मलिक ने कहा कि आजादी के बाद राजनीति कर्तव्य था। लोग करते थे उस तरह से। फिर यह प्रोफेशन हो गया। अब यह बिजनेस हो गया है। अडानी पर सत्यपाल मलिक ने कहा कि सरकार एमएसपी पर अपना वादा निभाने में विफल रही, क्योंकि अडानी ने बड़े-बड़े गोदाम बनाए। औने-पौने दाम पर फसलें खरीदीं। अगले साल उनकी कीमतें बढ़ेंगी और वह उन्हें बेचेंगे। अगर एमएसपी लागू होता है, तो किसान उन्हें अपने उत्पाद सस्ती दर पर नहीं बेचेंगे। मलिक ने यह भी कहा कि सरकार का मणिपुर में कोई नियंत्रण नहीं है। हालांकि यह केवल छह महीने के लिए है। मैं लिखित में दे सकता हूं। वे सत्ता में वापस नहीं आएंगे।
राहुल गांधी ने जब पुलवामा हमले को लेकर सवाल पूछा तो सत्यपाल मलिक ने कहा, पुलवामा हमले को लेकर मैं यह तो नहीं कहूंगा कि केंद्र सरकार ने कराया, लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि इन्होंने उसे इग्नोर किया और उसका राजनीतिक इस्तेमाल किया। इनका बयान है कि जब वोट देने जाओ, तो पुलवामा की शहादत याद रखना। इस दौरान राहुल गांधी ने बताया कि जब एयरपोर्ट पर शहीदों के पार्थिव शरीर लाए गए, तो मुझे कमरे में बंद कर दिया गया था। मैं लड़ कर वहां से निकला।
मलिक ने कहा कि पीएम को श्रीनगर जाना चाहिए था। राजनाथ सिंह वहां आए थे। मैं वहां था। हमने श्रद्धांजलि दी। जिस दिन यह हुआ, ये (पीएम मोदी) नेशनल कार्बेट में शूटिंग कर रहे थे, तो मैंने इनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हुई। पांच-छह बजे उनका कॉल आया, क्या हुआ? मैंने घटना के बारे में बताया। मैंने कहा कि हमारी गलती से इतने लोग मर गए हैं। तब उन्होंने (पीएम मोदी ने) मुझसे कहा कि आपको कुछ नहीं बोलना है। इसके बाद मेरे पास डोभाल का फोन आया। उन्होंने कहा कि आपको कुछ नहीं बोलना है। मैंने कहा ठीक है, जांच करानी होगी, शायद उस पर असर होगा। उसमें कुछ नहीं हुआ, न ही होना है।
सत्यपाल मलिक ने कहा कि सीआरपीएफ ने गृह मंत्रालय से पांच एयरक्राफ्ट मांगे थे। चार महीने तक आवेदन गृह मंत्रालय के पास रहा। बाद में उन्होंने खारिज कर दिया। ये चार महीने तक फाइल लटकाए रहे। अगर मेरे पास फाइल आती, तो मैं कुछ करता। यह इनपुट था कि अटैक हो सकता है। जो गाड़ी टकराई थी, वह विस्फोटक से भरी हुई 10 दिन से पूरे क्षेत्र में घूम रही थी। मलिक ने कहा कि एक अच्छी बात यह है कि लोगों ने टीवी देखना बंद कर दिया है। हमारे पास अब सोशल मीडिया का माध्यम है। लेकिन ये लोग उस पर भी लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
मलिक ने कहा कि ये किसी भी चीज का इवेंट बना देते हैं। फिर अपने पक्ष में फायदा उठाते हैं। महिला आरक्षण बिल का भी यही किया। महिलाओं को कुछ मिलना नहीं है, लेकिन इस तरह से दिखा दिया कि न जाने कितना बड़ा काम करा दिया। राहुल ने कहा कि जब आपने पुलवामा और किसान आंदोलन का मुद्दा उठाया, तो आपको धमकाया गया, सीबीआई आदि से। इस पर मलिक ने कहा कि कानून यह है कि जो शिकायतकर्ता होता है, उसे सजा नहीं दी जा सकती। मैंने शिकायत की जिनकी, उनकी पूछताछ नहीं हुई, जांच नहीं हुई, मुझसे पूछताछ के लिए तीन-तीन बार आ गए। मैंने कहा कि तुम कुछ भी कर लो, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे। मैं फकीर हूं, मेरे पास कुछ नहीं है। बाद में तंग आकर कहा कि साहब हम तो नौकरी कर रहे हैं। उनकी भी मजबूरी है। अंत में राहुल ने कहा कि हमने आपसे बात की, तो आप पर भी आक्रमण होगा। इस पर सत्यपाल मलिक ने कहा कि इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
कश्मीर की समस्या का हल क्या है, राहुल के सवाल पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने कहा कि सबसे पहले तो राज्य का दर्जा वापस करना चाहिए। फिर चुनाव कराना चाहिए। उन्हें 370 इतना नहीं चुभा जितना स्टेटहुड लेकर केंद्रशासित प्रदेश बनाना चुभा। मुझे लगता है कि यूटी इसलिए बनाया, क्योंकि इन्हें यह आशंका थी कि पुलिस बगावत कर जाएगी, जबकि पुलिसकर्मी पूरी ईमानदारी के साथ सरकार के साथ रहे। ईद का मौका था, पर पुलिसवालों ने छुट्टी भी नहीं मांगी।
सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा जम्मू-कश्मीर के 10वें और अंतिम राज्यपाल थे। इसके पूर्व मेघालय और बिहार के राज्यपाल रहे। इससे पहले अलीगढ़ सीट से 1989 से 1991 तक जनता दल की तरफ से सांसद रहे। 1996 में समाजवादी पार्टी की तरफ से फिर चुनाव लड़े लेकिन हार गए। मेरठ के एक कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की है।
झूठ बोले कौआ काटेः
भाजपा में शामिल होने से पहले सत्यपाल मलिक कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, लोकदल में रहे थे और उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के साथ भी काम किया था। वे अक्टूबर 2019 तक राज्यपाल थे, जब जम्मू-कश्मीर औपचारिक रूप से केंद्र शासित प्रदेश बन गया, और उनके अनुसार, उन्हें उपराज्यपाल की भूमिका में पदावनत नहीं किया जा सकता था। अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले मलिक ने इसे हटाए जाने की आशंकाओं को महज अफवाह बताया था। लेकिन, जब अभूतपूर्व सैन्य घेराबंदी, हजारों लोगों की गिरफ्तारी और संचार ब्लैकआउट के बीच अनुच्छेद को निरस्त कर दिया गया, वे इसका श्रेय लेने से भी नहीं चूके।
सत्यपाल मलिक जब-तब पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर हमला करने से भी नहीं चूके। पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े जाट नेता की हैसियत पाने की दबी हुई इच्छा संभवतः उबाल ले रही। कुछ वैसा ही असंतोष वाला प्रलाप, जैसे भाजपा में रहते हुए कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद किया करते थे। मलिक के पुलवामा पर किए जाने वाले कथित खुलासों ने विपक्ष को ही केंद्र और पीएम मोदी पर हमले का अवसर नहीं दिया बल्कि पाकिस्तान को भी प्रलाप करने का मुद्दा थमाया।
मेघालय का राज्यपाल रहते सत्यपाल मलिक एक आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। वीडियो में मलिक पीएम मोदी को सिक्खों और जाटों की मांग मानने की सलाह देते हुए कहते दिखते हैं, ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार में अकाल तख्त तोड़ने के बाद इंदिरा गांधी ने अपने फॉर्म हाउस में महामृत्युजंय का पाठ कराया था। उन्हें पता था कि ये सिख भूलते नहीं है। सिक्खों ने इंदिरा गांधी को दिल्ली में मारा। ऑपरेशन ब्लू स्टार की रूपरेखा तैयार करने वाले जनरल वैद्य को महाराष्ट्र में मारा। अंग्रेज अधिकारी डायर को लंदन में मारा।’ मलिक ने जून, 2022 में अग्निपथ योजना का भी विरोध किया था। मलिक ने आरोप लगाया था कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कार्यालय द्वारा की गई नियुक्तियों की “पीएमओ द्वारा जांच की जाती है।
प्रश्न है कि विस्फोटक लदी गाड़ी 10 दिन से घूम रही थी, तो राज्य का सर्वेसर्वा होने के नाते उन्हें इसकी जानकारी क्यों नहीं थी। यदि थी तो उन्होंने क्या ऐक्शन लिया? पुलवामा हमले के वक्त कनेक्टिंग रोड पर जवान तैनात नहीं थे। पुलिस तो राज्यपाल के ही अधीन थी। उन्होंने क्या कार्रवाई की? किस तरह की जांच बाद में उन्होंने बिठाई! पूर्व राज्यपाल मलिक ने पुलवामा हादसे के समय ही आरोप लगाने का साहस क्यों नहीं किया?
गोवा का राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। मलिक जब पद पर थे तो इन बातों को रिकॉर्ड पर ला सकते थे। भविष्य में उस पर जांच भी बैठ सकती थी। जब 300 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार की बात सामने आई तो वे उन लोगों को तभी गिरफ़्तार करवा सकते थे।
भारत में विपक्षी दल जब पीएम मोदी को पद से हटाने के लिए बेताब हैं, अब 2024 के चुनावों से पहले सत्यपाल मलिक रूपी अस्त्र उनके हाथ आया है। हालांकि, राफेल विमान सौदे को लेकर देश का चौकीदार चोर है, काग्रेसी अभियान टांय टांय फिस्स हो चुका है। अडानी-अंबानी के बहाने प्रलाप जारी है, भले ही कांग्रेस शासित राज्यों में दोनों के दखल पर पार्टी मौन हो जाती है। उधर, सत्यपाल मलिक का कहना है कि “मेरी लड़ाई 2024 तक जारी रहेगी”। इसका मतलब क्या यह है कि अगले लोकसभा चुनाव तक धर्मयुद्ध ख़त्म हो सकता है!
क्या मलिक के खुलासे से 2024 चुनाव से पूर्व भाजपा और पीएम मोदी की राजनीतिक स्थिति प्रभाव पड़ेगा? असंभव! नोटबंदी, किसान आंदोलन, चीनी घुसपैठ, कोविड-19 महामारी जैसे मुद्दे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को खराब नहीं कर सके, तो मलिक के हवा-हवाई बयानों से कुछ नहीं होने वाला। उल्टा, पूर्व राज्यपाल और भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यपाल मलिक कहीं पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद की तरह धीरे-धीरे अपना राजनीतिक रसूख न खो बैठें।
और ये भी गजबः
वर्ष 1985 में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर के कारण कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में विशाल बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। कांग्रेस ने अर्जुन सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और 320 विधानसभा सीटों में से 250 पर उसे जीत मिली थी। यह जीत अर्जुन सिंह के लिए इस मायने में भी खास थी कि 1980 से 1985 तक सरकार चलाने के बाद उन्होंने लगातार दूसरी जीत दर्ज की थी। ऐसे में मुख्यमंत्री पद पर उनका स्वाभाविक दावा था। कांग्रेस विधानमंडल दल की बैठक उन्हें नेता चुनने की औपचारिकता पूरी करने के लिए बुलाई गई। 11 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन आश्चर्यचकित कर देने वाले घटनाक्रम के तहत उन्होंने अगले ही दिन इस्तीफा दे दिया।
वजह यह रही कि राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अर्जुन सिंह को पंजाब का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। कांग्रेस लीडरशिप के पास उस वक्त इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के एक दिन बाद ही राज्यपाल बनाना था तो मुख्यमंत्री चुना ही क्यों गया? खुद अर्जुन सिंह इस फैसले से दंग थे और नाखुश भी। राजनीतिक गलियारों में माना गया कि वह कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गए। राजनीति में सब चलता है।