झूठ बोले कौआ काटे! अंजलि तो कभी निर्भया, क्यों न मानें इसे हत्या

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झूठ बोले कौआ काटे! अंजलि तो कभी निर्भया, क्यों न मानें इसे हत्या

बेटी अंजलि, उस रात केवल तुम नहीं घिसट रही थी उन दरिंदों के साथ… दिल्ली पुलिस भी घिसट रही थी तुम्हारे साथ। तुम तो पंचतत्व में विलीन हो गई परंतु पीछे छूट गया इस घटना में अकर्मण्यता, लापरवाही और बेशर्मी की दुर्गंध फैलाती दिल्ली पुलिस का क्षत-विक्षत शरीर और सड़ा-गला सिस्टम। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हूं… मैं 2023 हूं!

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अरुणांचल प्रदेश के तवांग में चीनी सैनिकों की कुटाई, दिसंबर 2023 तक गरीबों को मुफ्त 5 किलो अनाज की योजना जारी रखने की घोषणा, ‘नया वर्ष, नए संकल्प’ की थीम पर जारी भारत सरकार के आधिकारिक कैलेंडर जैसी घटनाओं से मेरा मन कुछ बुरी यादों के बावजूद 2022 को विदा करते-करते आह्लादित था, परंतु बेटी! मेरे जन्मते ही तुम्हारे साथ की गई बर्बरता नें मन खट्टा कर दिया। कैसे-कैसे दुष्ट हैं तथाकथित सर्वाधिक विकसित, बुद्धि-विचार वाले इस समाज में!

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साढ़े सत्ताइस वर्ष पूर्व घटित तंदूर कांड याद आ रहा है। जब, सुनील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या कर शव के टुकड़े-टुकड़े करके अपने होटल के तंदूर में जला दिया था। बेटी, याद आ रही है पैरामेडिकल की छात्रा, दामिनी या निर्भया… चाहे जो नाम दे दो। 10 वर्ष पूर्व, वासना के गिद्धों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। पीड़िता ने मजिस्‍ट्रेट को दिये बयान में बताया था कि वो दरिंदे चलती बस में उसे एक घंटे तक यातनाएं देते रहे। उसने बताया था कि वो बार-बार बेहोश हो जाती, वे उसे होश में लाने के लिए और मारते फिर उसके साथ बलात्‍कार करते। छात्रा के शरीर के अंदर जो चोटें थीं उसने देश और अदालत को झकझोर कर रख दिया था। छात्रा के शरीर के बाहरी हिस्से पर काटने के निशान थे। देश हिल गया था। उबल रहा जनाक्रोश फूटा तो 22 दिसंबर को राजपथ (अब कर्तव्य पथ) पर जैसे दिसंबर क्रांति का आगाज हो गया था।

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कुछ महीने पूर्व उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित वनंतरा रिज़ॉर्ट की लापता रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी की कहानी कुछ और ही निकली। एक भाजपा नेता के पुत्र रिजॉर्ट मालिक तथा अन्य आरोपियों के पुलिस से कबूलनामे के अनुसार अंकिता रिजॉर्ट में आने वाले कस्टमर के पास गलत काम के लिए जाने से मना करती थी। बस आरोपियों ने सुनियोजित ढंग से ले जाकर कर उसे चीला शक्ति नहर में मरने के लिए फेंक दिया।

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बेटी, घरेलू हिंसा की शिकार तो प्रायः तुम रोज होती हो। हां, अब मैं तुम्हारा जिक्र कर रहा गुड़िया। 2022 जाते-जाते चाची-मामा की कुटिलता की शिकार तुम एक बार फिर हुई। तुम्हें अपनों से दूर कर तुम्हें पहाड़ पर घर-दुनिया से दूर बेटी-मां संग बसा देने की चाल ईश्वर ने फिर असफल कर दी। कलंकित रिश्तों की कहानी भी तो कुछ कम नहीं है। कहीं बेटी, कहीं बहू, मता-पिता, सास-ससुर या अन्य परिजन इसी तरह की इंसानी हैवानियत और छल-कपट के शिकार हैं।

बेटी अंजलि, दोस्ती का रिश्ता तो सबसे बड़ा होता है। लेकिन, घटना के समय तुम्हारे साथ मौजूद एक और बेटी, तुम्हारी कथित दोस्त निधि जो शायद बेटी कहलाने लायक नहीं है पर गलतबयानी का आरोप लगा है। उसने घटना की रात तुम्हें शराब के जबर्दस्त नशे में होना बता दिया, जबकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला। शराब पीने के आरोप पर तुम्हारी मां ने भी कहा कि तुम शराब नहीं पीती थी, निधि झूठ बोल रही है। पता नहीं किसके दबाव में निधि यह बयान दे रही है। हम निधि को नहीं जानते।

झूठ बोले कौआ काटेः

बेटी, हर साल इंसानियत को दम तोड़ते मैंने देखा है। सार्वजनिक स्थान पर घटने वाली तो काफी कुछ सामने आ जाती हैं लेकिन जिन घटनाओं की नोटिस कोई नहीं ले पाता वे मात्र दुर्घटना और अज्ञात व्यक्ति की तरह पुलिस डायरी में नामजद होकर सन्नाटे में गुम हो जाती हैं। घरों के अंदर घटने वाली अनगिनत शोषण-उत्पीड़न की घटनाएं तो घर के भीतर ही दम तोड़ देती हैं।

निर्भया मामला

नारी अस्मिता के मुद्दे पर देश को विलाप करते सड़कों पर हुंकार भरते पहली बार मैंने निर्भया कांड के समय देखा था। तब भी कानून-व्यवस्था, भ्रष्ट-सुस्त सिस्टम की कलई खुली थी। पूर्व आईपीएस अधिकारी और पुडुचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर किरण बेदी के अनुसार यह घटना पुलिस की प्रतिक्रिया देने के तरीके में देरी, लोगों में कानून के प्रति कम खौफ और सिविल एजेंसियों के साथ पुलिस की एकजुटता में कमी को दिखाता है। बेदी ने पैरेंट्स को भी सही सलाह दी कि उन्हें भी अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए कि वे कहां आते-जाते हैं, किससे मिलते-जुलते हैं? अंजलि के पैरेंट्स को और जिज्ञासु होना चाहिए। बिल्कुल सही बात है।

दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस का कहना है कि अभी तक यह हत्या का केस नहीं है और मर्डर के लिए मोटिव चाहिए। हुजूर, माना कि दुर्घटना हुई। पर, कार के टायर में एक चिप्पी लगी होती है या कागज-पन्नी फंस जाए तो चालक को पता चल जाता है। यहां तो कम से कम 50 किलो का भार 13 किलोमीटर तक घिसटता रहा। तब तो आपका भी अतापता नहीं था। खैर, मोटिव स्वयं को बचाने के लिए एक घायल को मार डालने का क्यों नहीं हो सकता। क्यों न माना जाए इसे हत्या? सोचिये और ऐसे सबूत, अंजाम तक पहुंचाइये कि आरोपियों को ऐसी सजा मिले कि दूसरों को सबक मिले। कोई और कंझावला कांड कोई और न दोहराए।

और ये भी गजबः

कंझावला कांड की जांच कर रही 1996 बैच की आईपीएस अधिकारी शालिनी सिंह इस समय दिल्ली पुलिस में आर्थिक अपराध शाखा की स्पेशल कमिश्नर हैं। स्पेशल कमिश्नर के पद की जिम्मेदारी संभालने से पहले वह ज्वाइंट सीपी वेस्टर्न रेंज के पद पर तैनात थीं। बताया जाता है कि उन्हें अब तक जो भी जिम्मेदारी मिली उसे उन्होंने बखूबी निभाया है।

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किसान आंदोलन के दौरान भी उनके कामकाज की खूब तारीफ हो चुकी है। इसके अलावा दिल्ली में जब सांप्रदायिक तनाव की अफवाहें फैल रही थीं तब उसे रोकने का जिम्मा शालिनी सिंह को सौंपा गया था। शालिनी सिंह अंडमान और पुडुचेरी में भी काम कर चुकी हैं। उनकी छवि एक तेज तर्रार महिला अधिकारी की है। देश की की राजधानी दिल्ली में शालिनी सिंह लंबे समय से काम कर रही हैं। यहां वे साउथ वेस्ट और साउथ ईस्ट में बतौर डीसीपी काम कर चुकी हैं। इसके अलावा इनकी तैनाती इंटेलिजेंस ब्यूरो में भी रही है।

साल 2004 में सीनियर सिटीजन लेफ्टिनेंट जनरल हरनाम और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई थी। उस समय यह मामला काफी चर्चित था। मामले के तूल पकड़ने पर इसकी जांच की जिम्मेदारी शालिनी सिंह को दी गई। शालिनी सिंह ने अपनी सूझबूझ और तत्परता से मामले को सुलझा लिया। हत्याकांड के आरोपियों को पुलिस ने नेपाल सीमा से पकड़ा था। बताया जा रहा है कि शालिनी सिंह को क्राइम केस सुलझाने में महारत हासिल है। आईपीएस शालिनी सिंह के पति अनिल शुक्ला भी एक आईपीएस अधिकारी हैं।