झूठ बोले कौआ काटे! मोदी बनाम भ्रष्ट वंशवादी और द्विध्रुवीय गोलबंदी
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर गोलबंदी शुरू हो गई है। देश के करीब 65 दल भाजपा या कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हो गए हैं। वहीं, 91 सांसदों वाले 11 राजनीतिक दल फिलहाल तटस्थ है। प्रधानमंत्री मोदी हैं कि ताल ठोक कर कह रहे कि भ्रष्ट लोग कितना भी बड़ा गठबंधन कर लें, भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। तो क्या, अगला आम चुनाव मोदी बनाम भ्रष्ट वंशवादी होने जा रहा है?
पिछले 25 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर दो दीर्घजीवी और सफल गठबंधन रहे हैं। पहला, भाजपानीत एनडीए और दूसरा, कांग्रेसनीत यूपीए। एनडीए का यह सिल्वर जुबली वर्ष है। एनडीए में अभी 39 पार्टियां शामिल हैं। वहीं, मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष ने अब नई गोलबंदी की है। कांग्रेस और 25 अन्य विपक्षी दलों ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (I.N.D.I.A.) बनाया है। विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, जदयू, राजद, झारखंड मुक्ति मोर्चा, समाजवादी पार्टी, एनसीपी (शरद पवार गुट), शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट), माकपा, भाकपा, भाकपा एमएल, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, रालोद, अपना दल (के), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (जोसेफ), केरल कांग्रेस (मणि), आरएसपी, एमद्रमुक, केद्रमुक, वीसीके, एमएमके और फॉरवर्ड ब्लॉक शामिल हुए।
यह शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का खौफ है जो 2014 के बाद से ही विपक्ष को सता रहा है। मोदी ने केंद्र में पहली बार सत्ता संभालते ही ऐलान कर दिया था कि ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’। गैर-भाजपानीत विपक्षी दल चाहे जिन कारणों से कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट हुए हों, लेकिन इनमें अधिकांश ऐसे दल हैं, जिनके बड़े नेता भ्रष्टाचार के चलते सीबीआई और ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं। कांग्रेस समेत 14 दल ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग का रोना रोते हुए सुप्रीम कोर्ट गए भी थे किंतु वहां उन्हें निराशा हाथ लगी थी।
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी के खिलाफ यूं तो कई मामले दर्ज हैं और अलग-अलग कोर्ट में इन पर सुनवाई चलती है, लेकिन, सबसे बड़ा मामला नेशनल हेराल्ड का है, जिसमें गैर कानूनी तरीके से अधिग्रहण का आरोप है। इस मामले में राहुल गांधी और सोनिया गांधी से पूछताछ हो चुकी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर भी भाजपा भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है। उनके डिप्टी रहे मनीष सिसोदिया शराब घोटाला मामले में जेल जा चुके हैं, वहीं सत्येंद्र जैन सहित कुछ और नेताओं पर भी भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं है, लेकिन उनकी पार्टी के बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। ममता के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी शिक्षा घोटाले में जेल में हैं, वहीं उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी से भी पूछताछ की जा रही है।
एनसीपी चीफ शरद पवार के करीबी भी भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जा चुके हैं। पूर्व मंत्री अनिल देशमुख और नवाब मलिक भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। उनके अतिरिक्त द्रमुक नेता और तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन के बेटे और दामाद पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला से जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन में भ्रष्टाचार के मामले में पूछताछ हो चुकी है।
इन विपक्षी नेताओं के अतिरिक्त महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के करीबी संजय राउत भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं, वहीं पूर्व मंत्री अनिल परब पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। राजद चीफ लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा भारती और बेटे तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। वहीं झारखंड के सीएम और जेएमएम के नेता हेमंत सोरेन से अवैध खनन मामले में ईडी पूछताछ कर चुकी है।
हालांकि, भाजपानीत गठबंधन के भी कई जानेमाने नेता दूध के धुले नहीं हैं। महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में उपमुख्यमंत्री अजित पवार पर भाजपा ने ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए थे, जबकि चीनी मिलों में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच में ईडी का शिकंजा उन पर कसने लगा था। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे पर मनी लॉन्ड्रिंग और जमीन घोटाले का आरोप है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी.एस. येदियुरप्पा भले ही भ्रष्टाचार के ज्यादातर आरोपों से बरी हो गए हैं, छींटे उन पर भी पड़ते रहे हैं। असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा कभी कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे तब भाजपा ने ही गुवाहाटी में जल आपूर्ति घोटाले में प्रमुख संदिग्ध होने का आरोप लगाया गया था। भाजपा में शामिल तृणमूल कांग्रेस नेता मुकुल रॉय सारदा चिटफंड घोटाले में आरोपी हैं। हरिद्वार के सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में, दो बड़े घोटालों के केंद्र में थे, एक भूमि से संबंधित और दूसरा जल-विद्युत परियोजनाओं से संबंधित।
झूठ बोले कौआ काटेः
भारत में दो दलीय प्रणाली की स्थापना पूर्व में भाजपा का सपना होता था। यह उस ज़माने की बात है जब भाजपा को तथाकथित सेक्युलर दल अछूत मानते थे। उन्हें डर सताता था कि भाजपा के साथ दिखने से उनके हाथ से मुस्लिम वोट खिसक जाएगा। और ऐसा ही आगे चल कर हुआ भी जब मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस से अलग मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी जैसे हितैषी नेता मिल गए तो कांग्रेस पार्टी के पतन की शुरुआत हो गयी।
1980 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा का गठन हुआ, वह 1996, 1998 और 1999 के आम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी, सरकार भी बनाई पर बहुमत से कोसों दूर रही। उन दिनों जहां अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा का चेहरा होते थे, पार्टी का नीति निर्धारण लाल कृष्ण आडवाणी के जिम्मे होता था। आडवाणी उन दिनों अक्सर दो दलीय प्रजातंत्र की बात करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि गैर-कांग्रेसी वोटों का बंटवारा ही भाजपा और बहुमत के बीच का रोड़ा था। इसके ठीक उलट, अब यह आलम है कि भाजपा लगातार दो बार पूर्ण बहुमत से चुनाव जीत कर सत्ता में है और विस्तार के लिए गठबंधन से भी उसे परहेज नहीं है। जबकि, गैर-भाजपानीत दल सोचने लगे हैं कि भाजपा को हराना तभी संभव होगा जब वह गोलबंद हो जाएं। सैद्धांतिक मतभेदों, निजी स्वार्थों के बीच, ईडी-सीबीआई की गाज से बचने का भी एकमात्र यही उपाय है। वरना, अब तक कम से कम 125 प्रमुख नेताओं को ईडी-सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा है जिनमें से 119 विपक्ष से हैं, अर्थात् 95 प्रतिशत।
प्रधानमंत्री मोदी के विपक्ष पर लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों को बल इस बात से मिलता है कि विपक्षी नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के ज्यादातर मामलों में अदालत ने कोई राहत नहीं दी है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का कहना है, “क्या उन्हें सिर्फ इसलिए छोड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि वे बड़े राजनेता हैं? उनके खिलाफ आरोप तथ्यों और सबूतों पर आधारित हैं, न कि बयानबाजी पर। विपक्ष को भ्रष्टाचार का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।” विपक्ष ने मोदी सरकार पर संघीय एजेंसियों, विशेषकर ईडी का “दुरुपयोग” करके अपने नेताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया है।
यद्यपि, भारत की अनूठी संघीय संरचना अधिक से अधिक राज्य और क्षेत्रीय दलों के गठन को प्रोत्साहन देती है। परिणामस्वरूप, आज देश में 1,800 से अधिक पंजीकृत पार्टियां हैं। लेकिन, दो-दलीय प्रणाली सरकारों को अधिक जिम्मेदार बनाती है, क्योंकि यह सत्ता हथियाने के लिए पार्टियों के बीच होने वाली राजनीतिक सौदेबाजी को ख़त्म करता है। जैसे कि, महागठबंधन में शामिल होने के लिए आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के आगे शर्त रख दी। अभी सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों गठबंधनों में सौदेबाजी का नजारा भी सामने आएगा।
जरूरी है कि गठबंधन राजनीति की तेजी से गिरती साख को बचाने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ-साथ नीति और सिद्धांत के आधार पर भी एकजुटता की जमीन तैयार की जाए ताकि मौकापरस्तों की मनमानी से बचते हुए स्थिर सरकार और सुशासन के साथ ही मजबूत विपक्ष का आधार मजबूत हो। वर्तमान द्विध्रुवीय दलीय एकजुटता ही द्विदलीय प्रणाली के रास्ते पर ले जाएगी। कुछ-एक दल फिर भी अपना अलग अस्तित्व बनाए रखेंगे। जैसे, बसपा, बीजू जनता दल, एआईएआईएम इत्यादि जो फिलहाल किसी गठबंधन में नहीं हैं।
बोले तो, स्वस्थ राजनीति के निर्माण के लिए द्विदलीय प्रणाली आवश्यक है। किसी भी मुद्दे पर बहुमत का दृष्टिकोण जानने की लोगों की बुनियादी लोकतांत्रिक इच्छा को संतुष्ट करने का यही एकमात्र तरीका है। इससे लोग चुनावी और विधायी निर्णयों को अधिक स्वीकार करते हैं और एक निर्णायक और सहभागी लोकतंत्र का निर्माण होता है। दो चरम विचारों को जानने से मध्यमार्गी नीतियां भी सामने आती हैं, जिन पर और भी व्यापक सहमति हो सकती है।
और ये भी गजबः
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव देश भर में आयोजित किया जाता है, जो विभिन्न दलों को मध्यमार्गी मंच पर एक साथ आने के लिए मजबूर करता है, ताकि दो दल उभर कर सामने आएं। ऐसा नहीं है कि अमेरिका में अन्य दलों का अस्तित्व नहीं हैं, लेकिन यह देश हमेशा शीर्ष दो के पीछे एकजुट रहता है। भारत ने भी द्विदलीय प्रणाली की उपयोगिता देखी है। दो व्यापक बहुदलीय गठबंधनों, एनडीए और यूपीए ने देश को अस्थिरता के दौर से बहुत राहत दी है। लेकिन, ये गठबंधन केवल राजनीतिक सुविधा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यही कारण है कि राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने 2007 में राष्ट्र से “एक स्थिर, दो-दलीय प्रणाली के रूप में तेजी से विकसित होने” का आग्रह किया। वोट-बैंक की राजनीति से छुटकारा भी तभी मिलेगा।