झूठ बोले कौआ काटे! नहीं रूकने वाला मोदी का अश्वमेध रथ
गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड-ऐतिहासिक जीत और हिमाचल हारने के बावजूद जनसमर्थन पर बरकरार पकड़ से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा कायम है। राहुल गांधी हों, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी या शरद पवार हों, 2024 के लोकसभा चुनाव में तो फिलहाल मोदी को चुनौती देने वाला कोई सर्वमान्य विपक्षी चेहरा सामने दिखता नहीं है।
गुजरात में नरेंद्र मोदी के करिश्माई चेहरे के सहारे भाजपा ने 27 साल की एंटी इनकम्बेंसी, मोरबी में पुल गिरने से 134 लोगों की मौत से उपजे गुस्से, छात्रों का विरोध और बेराजगारी जैसे मुद्दों को धता बताते हुए एक तरह से विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। प्रचार अभियान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा में कहा भी था कि ‘भूपेंद्र की जीत नरेंद्र की जीत से बड़ी होनी चाहिए…’। गुजरात की जनता ने इतना प्यार उड़ेल दिया कि 1985 में कांग्रेस को मिली रिकॉर्ड 149 सीटों की संख्या भी कहीं पीछे छूट गई। भाजपा 156 पर पहुंच गई तो कांग्रेस 17 और तमाम मुफ्त की योजनाओं की घोषणा के बावजूद आम आदमी पार्टी (आप) मात्र 5 सीटें ही पा सकी। यही नहीं, भाजपा ने मुस्लिम बहुल 10 सीटों में से 8 पर कब्जा भी जमाया।
उधर, हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया और इस तरह राज्य में हर पांच साल पर सत्ता बदलने का रिवाज कायम रहा। 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 40 सीट पर जीत दर्ज की, वहीं भाजपा को 25 सीटें मिली। तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। आप के हिस्से में कोई सीट नहीं आई। आम आदमी पार्टी ने 67 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वर्ष 2017 के चुनावों में भाजपा को 44, कांग्रेस को 21 सीटें मिलीं थीं। दो सीटों पर निर्दलीय और एक सीट पर माकपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी।
झूठ बोले कौआ काटेः
गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की मात्र 99 सीटें आई थी। किसी तरह भाजपा सरकार बना पाई थी। इस बार, विपक्ष पीएम नरेंद्र मोदी की हवा निकालने की पूरी कोशिश में था। चर्चा तो यह भी है कि कांग्रेस और आप में अंदरखाने समझौता हो गया था कि गुजरात में कांग्रेस दमखम से नहीं लड़ेगी तो हिमाचल में आप।
यही कारण था कि 2017 गुजरात विधानसभा के लिए आक्रामक चुनाव अभियान के विपरीत इस बार कांग्रेस पार्टी का अभियान कमजोर था। तब राहुल गांधी ने गुजरात में एक महीने से अधिक का समय बिताया था और राज्य भर में एक-एक मंदिर की चौखट पर मत्था टेका था। इस बार कांग्रेस का फीका चुनाव प्रचार और दिग्गज नेताओं के गायब होने से कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं ने भी मान लिया था कि लड़ाई शुरू होने से पहले ही कांग्रेस ने हथियार डाल दिए थे। बोले तो, राहुल गांधी सिर्फ एक दिन दो रैलियों के लिए गुजरात आए. चुनाव प्रचार जब चरम पर था, राहुल गांधी पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ करते रहे।
दूसरी ओर, पीएम मोदी ने गुजरात की कमान अपने हाथ में ले ली। भाजपा ने उन तमाम नेताओं को अपने पक्ष में किया जिनसे भाजपा को खतरा था। इसी क्रम में हार्दिक पटेल, ओबीसी चेहरे अल्पेश ठाकोर समेत कई कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया। फिर, एंटी इन्कमबैंसी की हवा निकालने के लिए रातोंरात राज्य के मुख्यमंत्री और कैबिनेट को बदल दिया गया।
अहमदाबाद-सूरत में 31 रैलियों और दो प्रमुख रोड शो के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार अपने गृह राज्य गुजरात में एक मौका नहीं छोड़ा। प्रचार के आखिरी चरण में अहमदाबाद में पीएम मोदी द्वारा किया गया 50 किलोमीटर का रोड शो बता रहा था कि जनता का मूड क्या है। दूसरी ओर, मधुसूदन मिस्त्री ने प्रधानमंत्री के खिलाफ ‘औकात’ शब्द का इस्तेमाल किया, तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ‘रावण’ बोल बैठे। अपनी रैलियों में मोदी ने कांग्रेस के खिलाफ उनकी इस शब्दावली को ‘गुजराती अस्मिता’ से जोड़ दिया और राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा दी।
ऐसे में, सवाल तो बनता है कि हिमाचल में प्रधानमंत्री मोदी का जादू क्यों नहीं चला? तो जवाब है कि 1990 के बाद हर पांच साल में यहां की जनता सरकार को बदल देती है। वैसे भी, एग्जिट पोल में भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर की संभावना जताई गई थी। जबकि, टिकट कटने से नाराज भाजपा के 21 और कांग्रेस के छह बागियों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। इसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा। वोट पाने में कांग्रेस से एक प्रतिशत से भी कम का अंतर होने के बावजूद सीटों का अंतर 15 में बदल गया। इसलिए, जानकारों का मानना है कि 2024 के चुनाव में भाजपा राज्य की चार लोकसभा सीट कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर और शिमला सुरेश में जीत दर्ज करेगी।
यह जरूर है कि गुजरात की जनता ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिये जाने की कोशिश पर मुहर लगा दी है। दिल्ली नगर निगम में भी आप का बहुमत बन गया है। तो क्या अरविंद केजरीवाल 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देने वाला विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा बन सकते हैं? राजनीतिक विश्लेषक फिलहाल ऐसा नहीं मानते। हालांकि, अगस्त में दो सर्वे के नतीजे सामने आए थे जिनके अनुसार आम आदमी पार्टी जो कि पहले एक से डेढ़ फीसद की दर से आगे बढ़ रही थी, वो अब राष्ट्रीय स्तर पर साढ़े छह से आठ फीसद की दर से आगे बढ़ रही है।
कुछ माह पूर्व, एबीपी न्यूज के लिए सी-वोटर के सर्वे में 65 फीसदी लोगों का मानना था कि केजरीवाल पीएम मोदी के लिए चुनौती बनेंगे। जबकि, 35 फीसदी लोगों का मानना था कि नीतीश कुमार पीएम मोदी के लिए चुनौती बनेंगे। इस सर्वे के ठीक पहले, एक निजी न्यूज चैनल इंडिया टीवी- मैटराइज के सर्वे में प्रधानमंत्री पद के लिए जब लोगों से उनकी पहली पसंद के बारे में पूछा गया तो 48 फीसदी लोगों ने कहा कि वे नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहेंगे। मोदी के बाद राहुल गांधी को 11 फीसदी लोगों ने पंसद किया। ममता बनर्जी को 8 फीसदी, सोनिया गांधी को 7, मायावती को 6 और अरविंद केजरीवाल को 5 फीसदी लोगों ने पीएम के तौर पर अपनी पहली पसंद बताया।
दूसरी ओर, भारत जोड़ो यात्रा के बहाने कांग्रेस राहुल गांधी को प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में लांच करने में लगी हुई है तो, उसकी मंशा साफ है कि आने वाले चुनावों में विपक्ष के बड़े नेता के तौर पर उनकी पार्टी का चेहरा ही सामने रहे। इसके पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी विपक्षी दलों के नेताओं को जोड़ने की कवायद कर चुके हैं। आप का अकेले चलना उसकी राजनीतिक मजबूरी और रणनीति भी है। सवाल तो ये है कि दलीय आग्रह, अस्तित्व का संकट और अहं विपक्ष को कभी एकजुट कर भी पाएगा?
2014 से मोदी मैजिक के सहारे प्रांत दर प्रांत बढ़ता हुआ भाजपा का कद कांग्रेस और विपक्ष की बेचैनी का कारण बना हुआ है। मोदी मैजिक के आगे जातियों की राजनीति का तिलिस्म टूट गया, बड़े-बड़े मुद्दे चुनाव में अपना असर छोड़ने में नाकाम रहे। कुछ माह पूर्व एनबीटी के एक सर्वे में भी 52 प्रतिशत लोगों ने पक्के तौर पर माना था कि मोदी ही 2024 में फिर प्रधानमंत्री बनेंगे। राहुल गांधी 42, अरविंद केजरीवाल 35, ममता बनर्जी 13 और नीतीश कुमार 10 फीसदी लोगों की पसंद थे।
ऐसे में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन यदि ये कहते हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए ‘कोई खाली जगह नहीं है’ क्योंकि विपक्ष ‘दौड़ से बाहर’ है और नरेंद्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनावों में फिर से पीएम बनेंगे, तो बात में दम है।
और ये भी गजबः
गुजरात में पहले चरण के मतदान के दौरान सूरत के कामरेज में रहने वाले सोलंकी परिवार में कुल 81 लोग हैं, जिसमें 60 वोटर हैं। सभी लोगों का भोजन इकट्ठे तैयार होता है। दिलचस्प बात यह है कि चुनाव में यह परिवार एकसाथ मतदान करने बूथ पर पहुंचता है।
गुजरात चुनाव के पहले चरण में भी जब 81 लोगों का परिवार मतदान केंद्र पहुंचा, तो सब देखते रह गये। एक और दिलचस्प मामले में, शेरवानी पहने व्यक्ति ने मतदान के लिए अपनी शादी का समय बदल दिया। प्रफुल्लभाई मोरे शादी की शादी महाराष्ट्र में होनी थी। शादी सुबह होनी थी, लेकिन वोट डालने के लिए उसने समय बदलकर शाम का करा लिया।