झूठ बोले कौआ काटे! शीशमहल की आंच, सुलगे सवाल?

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झूठ बोले कौआ काटे! शीशमहल की आंच, सुलगे सवाल?

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के आलीशान बंगले को लेकर चलाए गए टीवी शो ‘आपरेशन शीशमहल’ की गाज ‘आप’ की सरकार ने जिस तरह चैनल की निरीह रिपोर्टर, कैमरामैन और ड्राइवर पर लुधियाना में गिराई उसने शासन-प्रशासन, पुलिस और अधीनस्थ न्यायपालिका की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न तो उठाए ही हैं, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी ऐसे अप्रत्याशित खतरों से सावधान किया है। ऐसी चुनौतियों के लिए मीडियाकर्मियों के प्रशिक्षण-संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है।

झूठ बोले कौआ काटे! शीशमहल की आंच, सुलगे सवाल?

अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद टाइम्स नाउ की महिला पत्रकार भावना किशोर और उनके साथ बंद सहकर्मियों ने 5 मई, 2023 के घटनाक्रम और हिरासत में 4 रातें बिताने के दौरान पंजाब पुलिस की प्रताड़ना का जो मंजर मीडिया को बताया वह स्तब्ध करने वाला है।

भावना ने बताया कि हिरासत के दौरान उनसे दरवाजा खोलकर वॉशरूम जाने को कहा गया। उनकी जाति को लेकर सवाल पूछा गया। उन्होंने बताया, “पुलिस ने बोला रात के एक बजे आपका मेडिकल होगा। आपको मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना है। मुझे कानून का इतना दांवपेंच नहीं पता था। मेरी तबीयत खराब हो रही थी। घबराहट हो रही थी। जो उन्होंने दिया मैंने खाया। ड्राइवर और कैमरापर्सन ने भी थोड़ा सा खाया। मैं बहुत पानी पी रही थी, क्योंकि मैं नर्वस महसूस कर रही थी। जब मैं वॉशरूम गई तो मेरे साथ 2-3 महिला कॉन्स्टेबल भी थीं। पुलिस स्टेशन में बिजली या पानी नहीं था।”

अपनी प्रताड़ना की कहानी बताते हुए भावना रोने लगीं। उन्होंने बताया, “मैंने दरवाजा खोलकर वॉशरूम किया। मुझे नहीं आई शर्म, क्योंकि उस वक्त मैं इतने प्रेशर में थी…”

भावना ने यह भी बताया कि उन्हें नहीं बताया गया था कि वह गिरफ्तार हो चुकीं हैं। इसलिए वह एक पुलिस अफसर से बार-बार विनती कर रहीं थीं कि उन्हें घर जाने दिया जाए। इस पर पुलिस अफसर ने कहा, “भावना मैं हाथ जोड़कर तुमसे माफी मांगता हूं। तुमने अब तक बहुत हिम्मत दिखाई है। मेरी दो बेटियां हैं। मैं घर जाकर उनसे क्या बोलूंगा मुझे यह नहीं पता। लेकिन मुझे पता है कि मैं अपनी ड्यूटी के साथ ईमानदारी नहीं कर रहा हूं। भावना तुमने जो खबर चलाई है उसे हटाओ बात करके। ये सरकार है, तुम कभी जीत नहीं पाओगी।”

भावना का दावा है कि पुलिस अफसर ने उनसे कहा था कि उनके ऊपर बहुत प्रेशर है। साथ ही उनसे दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल के बंगले को लेकर किए गए खुलासे ‘ऑपरेशन शीशमहल’ को हटाने के लिए कहा था। भावना का यह भी दावा है कि पुलिस ने उनसे और उनके दोनों सहयोगियों से उनकी जाति भी पूछी थी। जब भावना ने उन्हें बताया कि वह ओबीसी वर्ग से हैं तो पुलिस ने उनसे कहा कि नहीं तुम सामान्य वर्ग से हो।


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उन्होंने आगे कहा है कि इसके बाद वहां मौजूद लोगों में से एक व्यक्ति ने कहा कि उन पर एससी/ एसटी एक्ट लगाने की तैयारी हो रही है। भावना किशोर का यह भी कहना है कि उन्हें पहले कहा गया था कि चाय-पानी के लिए (थाने) ले जाया जा रहा है। सीएम भगवंत मान के जाने के बाद छोड़ दिया जाएगा। लेकिन, फिर सारी चीजें बदल गईं।

कैमरामैन मृत्युंजय ने बताया, उन्हें और उनके साथी ड्राइवर परमिंदर को टॉयलेट के पास सुलाया गया। इतना ही नहीं, उनसे एफआईआर पर जबरन साइन भी करवाए गए। मृत्युंजय ने बताया कि जब उन्हें मेडिकल के लिए ले जाया गया तो उन्हें डर लग रहा था। उन्होंने बताया, पुलिस का उन दोनों के साथ व्यवहार अच्छा नहीं था। उन्होंने बताया, हम लोगों ने पहले दिन सूखी रोटी खाई। 9-साढ़े नौ बजे पुलिस वालों ने हमसे पूछा कि हम लोगों की कास्ट क्या है। एफआईआर पर हम लोग साइन नहीं कर रहे थे, कहा गया था अगर नहीं करोगे तब भी तुम लोग फंसोगे। सोने के लिए हमें बाथरूम के पास जगह दी गई, जहां हमारा कंबल तक पूरी तरह से भीग गया था। मृत्युंजय ने बताया कि हम लोगों को जहां पर रखा गया था, वहां काफी गंदगी थी। हम लोगों को पानी दिया गया। उसी पानी को पीना और नहाना था और टॉयलेट भी उसी से जाना था।

झूठ बोले कौआ काटेः

‘ऑपरेशन शीश महल’ में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण में किए गए अति-भव्य और आय से अधिक खर्च के खुलासे दनादन रोज हो रहे थे। मामला तूल पकड़ रहा था। इसी दौरान, 5 मई को केजरीवाल और पंजाब के सीएम भागवत मान द्वारा लुधियाना में आयोजित ‘आप’ के आयोजन को कवर करने के लिए टाइम्स नाउ नवभारत चैनल को भी आमंत्रित किया गया। फिर, दिल्ली से कवरेज के लिए गई टीम को लुधियाना पुलिस ने “तेज गति से गाड़ी चलाने और दलितों का अपमान करने” के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

2 शीशमहल

इस पूरे घटनाक्रम से भारत में राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों, प्रशासन-पुलिस तथा अधीनस्थ न्यायपालिका की कार्यशैली-नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगा है। एक महिला रिपोर्टर को कार में महिला पुलिसकर्मियों की उपस्थिति के बिना अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था। भावना के साथ गए पुरुष पुलिस ने नाम का बिल्ला नहीं पहना था, जो ड्यूटी पर एक अनिवार्य आवश्यकता है। जबकि परिवार के सदस्यों को एक व्यक्ति के हिरासत के बारे में तुरंत सूचित किया जाना है, इस नियम की भी धज्जियां उड़ाई गईं और भावना के परिवार को केवल 10:41 बजे सूचित किया गया।

यही नहीं, सूर्यास्त के बाद किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। लेकिन, भावना को न केवल रात 8:55 बजे गिरफ्तार किया गया, बल्कि उसे रात से लेकर अगले दिन दोपहर तक थाने में भी रखा गया। उन्हें किसी भी कानूनी या टेलीफोन सुविधा से भी वंचित कर दिया गया था। उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध और भाषा के ज्ञान के बिना गुरुमुखी में लिखे कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया।

जिक्र जरूरी है कि गिरफ्तारी मामले में अंतरिम जमानत पर सुनवाई करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि उसने भावना के अलावा ड्राइवर और कैमरामैन को गिरफ्तार क्यों किया?

जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मैसिस ने सबसे पहले गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी पर और बाद में मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए रिमांड आदेश पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी और रिमांडिंग मजिस्ट्रेट द्वारा कानून के प्रावधानों को ध्यान में नहीं रखा गया। जीने के अधिकार को छीना गया।

पंजाब की मान सरकार ने न एससी-एसटी एक्ट का मान रखा न स्वयं का। यहां तक कि शुरूआती सुनवाई में एडवोकेट जनरल तक को लगा दिया कि किसी तरह इन निरीह मीडिया कर्मियों की जमानत न हो।

झूठ बोले कौआ काटे! शीशमहल की आंच, सुलगे सवाल?

ऐसा नहीं है कि भारत में पत्रकारों के उत्पीड़न की यह कोई पहली घटना है। लेकिन, राजनीति-सिस्टम, समाज में इतनी गिरावट, नैतिकता का इतना पतन दो दशक पहले तक नहीं था। वीर बहादुर सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, इस स्तंभ लेखक ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर दिल्ली की एक नई उभरती हुई पत्रिका में स्टोरी की थी। विधान परिषद में हंगामे के बाद मेरे सहित संपादक, प्रकाशक सभी के विरूद्ध विशेषाधिकार हनन का नोटिस जारी हुआ। हमने कानूनी तरीके से सामना भी किया लेकिन कभी परोक्ष-अपरोक्ष धमकी-साजिश या किसी उत्पीड़न का शिकार नहीं होना पड़ा। वीर बहादुर सिंह चतुर राजनीतिज्ञ थे, उतने ही सहज भी कि मुख्यमंत्री बनने के बावजूद लखनऊ के काफी हाउस में आम आदमी की तरह ही पत्रकारों के साथ बैठकी करते थे। तब और अब में यही फर्क है।

इसी प्रकार, देवरिया के धार्मिक स्थलों पर तीन दशक पहले सीरीज में छप रही मेरी रपटों में से एक को लेकर एक समुदाय विशेष ने स्वतंत्र चेतना अखबार के बंडल फूंक दिए और गोरखपुर में मालिक-संपादक पर खूब दबाव बनाया कि खंडन प्रकाशित हो। परंतु, रामचंद्र गुप्ता जैसे जीवट व्यक्तित्व ने मेरे स्टैंड का समर्थन किया कि खंडन यदि मैं भेजूंगा, तभी छपेगा। न कोई आया न मैंने खंडन भेजा। कहने का तात्पर्य मात्र ये है कि दो-तीन दशक पहले तक राजनीति और समाज में इतनी नैतिकता बची हुई थी कि सच लिखने पर आपके जीने के अधिकार पर डाका डालने में लोग डरते थे। लेकिन, आज भ्रष्टाचार और सच को उजागर करने का मतलब स्थानीय अफसरशाही, राजनीतिक नेताओं और गुंडों से दुश्मनी मोल लेना है।

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ऐसे में मीडिया कर्मियों की सुरक्षा-सरंक्षण और उनका पेशागत प्रशिक्षण मौजूदा समय की मांग है। पहले ये यह काम पत्रकारो के संग़ठन करते थे। लेकिन ठेकेदारी की प्रथा के विकसित होने के बाद पत्रकारिता की दुनिया मे यूनियन नाम मात्र की ही रह गई है। पत्रकारों, उनके परिजनों की सुरक्षा एवं उनके बाद उनके परिवार को हर संभव मदद करने का कानून प्रवधान बनाया जाना चाहिए।

बहुतेरे पत्रकारों के पास कानूनी मदद हासिल करने के लिए धन और साधन नहीं होते और वे अकेले पड़ जाते हैं। बहुत से मामलों में उनके संस्थान भी अनका साथ नहीं देते और अभिव्यक्ति की आजादी के इस उल्लंघन की कीमत पत्रकारों के परिवारों को भुगतना पड़ता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कोई ऐसा प्लेटफार्म होना चाहिए जो विधिक और युक्तिसंगत आर्थिक सहायता भी प्रदान कर सके। अनेक विकसित देशों में गिरफ्तारी-उत्पीड़न से बचने-निपटने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, मीडिया कर्मियों को इसकी भी ट्रेनिंग दी जाती है, डूज-डोंट्स बताए जाते हैं। ऐसी ही व्यवस्था भारत में भी बनाए जाने की आवश्यकता है।

और ये भी गजबः

बीजिंग (चीन) के एक अखबार में कुछ साल पहले एक रोबोट पत्रकार का 300 शब्दों का एक लेख छपा, जिसे उसने महज 1 सेकेंड में लिखा था। गुआंगझोऊ के अखबार ‘सदर्न मेट्रोपोलिस डेली’ में प्रकाशित इस रोबोट का विकास करने वाली टीम के नेतृत्वकर्ता और पेकिंग विश्वविद्यालय के प्रो. वान शियाओजुन के अनुसार रोबोट शियाओ नान छोटी और लंबी खबर, दोनों लिख सकता है। इस रोबोट पत्रकार का नाम रखा गया है जिआओ नॉन।

इसके पहले अमेरिकी अखबार ‘दि लॉस एंजलिस टाइम्स’ किसी रोबोट पत्रकार-लेखक की लिखी खबर प्रकाशित करने वाला पहला अखबार था। इस रोबोट ने नौ साल पहले भूकंप के बारे में खबर लिखी।

झूठ बोले कौआ काटे! शीशमहल की आंच, सुलगे सवाल?

और, इधर आईआईटी बॉम्बे की टीम ने एक महिला रोबोट बनाया है जो पिछले 5 सालों से केंद्रीय विद्यालय के परिसरों में बच्चों को पढ़ा रही है। वहीं आपको बता दें ये रोबोट 47 भाषाएं जानती है, और किसी भी तरीक़े के सवाल का जवाब देने में सक्षम है। ये रोबोट तरह तरह के इंटरव्यू भी कंडक्ट करा सकती है और हर तरीके का परीक्षा भी ले सकती है।