झूठ बोले कौआ काटे! जात-पांत को लगा पलीता, इसलिए इतनी सियासत
एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने जाति आधारित सर्वे पर हाईकोर्ट के स्थगन आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया तो बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने पटना में कथा के दौरान हिंदू राष्ट्र की ऐसी अलख जगाई कि जात-पांत और वोट बैंक की राजनीति के सहारे राज करने का सपना देखने वाले नेताओं के हाथ के तोते उड़ गए। सत्तापक्ष और सेक्यूलर-वामपंथियों ने निमंत्रण के बावजूद समूचे कार्यक्रम से किनारा ही नहीं किया अपितु तंज भी कसा तो, भाजपा ने अपनी भागीदारी दर्शा कर विरोधियों को खूब चिढ़ाया, अपनी जड़ों को खाद-पानी दिया।
बाबा बागेश्वर धाम ने कहा कि ‘भारत के हिंदू राष्ट्र बनने का सपना बिहार से ही पूरा होगा। उन्होंने कहा कि ‘जिस दिन बिहार के 13 में से 5 करोड़ हिन्दू भी नियमित रामचरित मानस का पाठ करने लगेंगे, अपने घर के आगे धर्म ध्वज और माथे पर तिलक लगाने लगेंगे, उसी दिन देश हिंदू राष्ट्र की तरफ आगे बढ़ जाएगा। साथ ही अगर आपके घर के बाहर धर्म ध्वज रहेगा तो हनुमान जी स्वंय आपकी रक्षा करेंगे।’ कथा के दौरान उन्होंने एक वाकया सुनाया। उन्होंने कहा कि ‘हमें एक महात्मा जी मिले उनने पूछा कि महाराज आप हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं क्या भारत हिंदू राष्ट्र बन सकेगा? हमने मुस्कुरा कर कहा कि हिंदू राष्ट्र तो बना बनाया है। बस घोषणा होना बाकी है भारत में जल्द ही हिंदू राष्ट्र की घोषणा हो जाएगी।‘
बाबा बागेश्वर धाम के पांच दिवसीय प्रवचन के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की अभूतपूर्व भीड़ रोज उमड़ी। ऐसी भीड़ कि बागेश्वर बाबा को लोगों से अपील करनी पड़ी कि जो जहां हैं वहीं से कथा सुने, टीवी, यूट्यूब के माध्यम से कथा सुने। तब, बागेश्वर धाम सरकार (ऑफिसियल) से ट्वीट किया गया- ‘बिहार पटना में का बा, बागेश्वर सरकार बाबा बा।‘ आगे लिखा, ‘हमारे सरकार ने पटना में गर्दा उड़ाकर रखा है।‘ आगे और लिखा, ‘जितनी भीड़ नेताओं या सीएम की सभा में पैसे देकर बस बुक कराने के बाद नहीं जुटती है उससे दोगुनी भीड़ बाबा को देखने के लिए जुटी। बाबा को देखने के लिए लोग यहां पागल हुए हैं। सनातन की ऐसी अलख बिरले ही मिलती है।‘
उधर, बाबा के हिंदू राष्ट्र वाले बयान से विचलित बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “किसी को देश के संविधान का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। किसी को भी अधिकार है कि वह पूजा पाठ करे, लेकिन देश की नीति तय नहीं कर सकता। किसी को दूसरे धर्म में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं। अगर कोई कुछ बोल रहा है, तो उस पर क्या कहें। सभी को अपना धर्म मानने की आजादी है।”
दूसरी ओर, नीतीश-तेजस्वी सरकार को 18 मई, 2023 को एक और झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें बिहार में जाति आधारित सर्वे पर रोक लगा दी गई थी। जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की डिवीजन बेंच ने कहा, ‘हमें ये देखना है कि ये सर्वे है या फिर जनगणना। कहीं राज्य सरकार सर्वे के नाम पर जातिगत जनगणना कराने की कोशिश तो नहीं कर रही है। सुनवाई के दौरान जस्टिस बिंदल ने टिप्पणी की, “काफी सारे दस्तावेज़ दिखाते हैं कि ये केवल जनगणना है।‘
बिहार सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा कि सर्वे के लिए संसाधन पहले ही जुटा लिए गए थे। हाईकोर्ट को इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी। राज्य की नीतियों के लिए डेटा इकट्ठा करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील से कहा कि पटना हाई कोर्ट में मामला लंबित है, जहां 3 जुलाई को सुनवाई होनी है। अगर वहां से राहत नहीं मिलती तो यहां आ सकते हैं।
झूठ बोले कौआ काटेः
बिहार में राजनीतिक दलों की वोटों की खेती ही जाति आधारित है। चुनाव अगड़े-पिछड़े-अति पिछड़े, दलित-महादलित आदि-इत्यादि के साथ ही धर्म का तड़का देकर जीते जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश व हरियाणा जैसे राज्यों में भी क्षेत्रीय दल काफी मजबूत स्थिति में हैं और उनकी राजनीति ही जाति पर आधारित है। वैसे भी देश की राजनीति में पिछड़े वर्ग का दखल बढ़ा है।
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को अति पिछड़ी वर्ग की जातियों के अतिरिक्त ओबीसी में यादव को छोड़ अन्य जातियों का साथ मिलता रहा है, हालांकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह तीसरे नंबर पर चली गई। इधर, राजद भी 2020 में मिले वोट को एकजुट रखना चाहता है, इसलिए अपने जनाधार में जदयू की सेंध से बचने के लिए ओबीसी का सच्चा हितैषी बनने की जुगत में है। इसलिए, जातिगत सर्वे जदयू-राजद दोनों के एजेंडे में है।
भारतीय जनता पार्टी जो कभी सवर्णों तथा बनियों की पार्टी समझी जाती थी, अन्य जातियों में अपना जनाधार बढ़ा चुकी है। इसलिए वह अब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के साथ ओबीसी को लामबंद करना चाहती है। साथ ही भाजपा गरीब सवर्णों को आरक्षण व जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून के सहारे हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश भी कर रही है। जातीय जनगणना का मुद्दा भी उसके गले की हड्डी है। ऐसे में कर्नाटक गंवाने के बाद बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का हिंदू राष्ट्र का अभियान, जो जात-पांत के बंधनों को तोड़ता हुआ दिखाई देता है, भाजपा के लिए संजीवनी बूटी से कम नहीं है। अब, जातीय सर्वे पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा रूख और पटना हाईकोर्ट की प्रथमदृष्टया टिप्पणी ने भी ऑक्सीजन देने का काम किया है।
पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित सर्वे पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा था कि जाति आधारित सर्वे जनगणना के समान है जिसे कराने का राज्य सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है। आगे कहा था कि ‘सरकार की अधिसूचना को देखने से लगता है कि सरकार राज्य विधानसभा के विभिन्न दलों, सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल के नेताओं के साथ डेटा साझा करने का इरादा रखती है जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है।‘ कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस मामले में निजता का अधिकार भी एक मुद्दा है।
बता दें, बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री हिंदुओं की घरवापसी के लिए भी विख्यात हैं। उन्होंने पिछले दिनों मध्य प्रदेश के दमोह में कथा के दौरान 200 से अधिक लोगों की घर वापसी कराई थी। रामकथा में शामिल होने आए इन लोगों ने तब बताया था कि वे किस तरह धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने थे। इसी तरह, छत्तीसगढ़ में कथा के दौरान स्थानीय महिला सुलताना जब बाबा के दरबार में पहुंची तो उसने हिंदू धर्म अपनाने की अनुमति मांगी। मंच से सुलताना ने बताया कि वह क्यों हिंदू धर्म में आना चाहती है और उसे इस्लाम धर्म की कौन-सी बातें खराब लगती हैं। इसके बाद बाबा ने उसका हिंदू धर्म में स्वागत किया।
इधर, भाजपा सांसद मनोज तिवारी जहां बाबा के पटना प्रवास के पहले दिन उनके सारथी बने, वहीं केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी और रामकृपाल यादव आदि के साथ बाबा की आरती में भी शामिल हुए। दूसरी ओर, महागठबंधन ने जिस तरह बागेश्वर बाबा के बिहार आने से पहले उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, बाबा को बिहार में घुसने नहीं देने, जेल भेजने, ‘कैसे- कैसे लोग बाबा बन जाते हैं’ और तड़ीपार करने का तंज कसा फिर आयोजन से दूरी बनाई।
लालू यादव ने तो बागेश्वर बाबा को बाबा मानने से इनकार कर दिया, यही नहीं इस बीच मजार पर चादर चढ़ा कर राजनीतिक संदेश दिया। राजद के नेता और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कथा में जाने से साफ इनकार कर दिया। जबकि, उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने बाबा को दंगाई और मदारी बता दिया। इस दौरान, बाबा के राजधानी में लगे पोस्टरों पर कालिख पुता, अपशब्द भी लिखे गए। इस सब से हाल-फिलहाल गठबंधन को ही राजनीतिक नुकसान होता दिखता है।
जबकि, बाबा बागेश्वर धाम ने स्पष्ट कहा कि वो हिंदू-मुस्लिम करने नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ हिंदू की बात करने आए हैं। उन्होंने कहा कि हमें उन परमात्मा का ध्यान करते हुए उन पर अटूट भरोसा रखना पड़ेगा। जब हम उनपर अटूट भरोसा रखेंगे तो रामजी अपने आप ऐसे संयोग जोड़ देंगे, जैसे लंका जाने के लिये पुल के लिये पत्थर जोड़ देते हैं, वैसे ही हमें भरोसा है कि हिंदू राष्ट्र के लिये हनुमान जी अपनी सेना को जोड़ देंगे।
गठबंधन नेताओं को शायद विश्वास है कि कर्नाटक की तर्ज पर मुस्लिम वोट बैंक और हिंदू वोटों में जातिगत विभाजन के सहारे 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनावों में बिहार में उनका ही परचम लहराएगा। सीएम नीतीश कुमार को तो यहां तक विश्वास है कि संविधान के खिलाफ कोई भी देश में माहौल नहीं बना सकता यदि इस तरह का लोग माहौल बनाएंगे तो जनता उन्हें जवाब जरूर देगी। लेकिन, चुनाव के समय कांग्रेस साथ देगी तब न!
उधर, बागेश्वर धाम ने गया में अगले कार्यक्रम की तिथि घोषित कर दी है जबकि, मुजफ्फरपुर में भी आयोजन की संभावना जता दी है। राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ में भी कथा का सिलसिला क्या गुल खिलाएगा, कौन जाने! कर्नाटक के बाद इस साल विधानसभा चुनाव तेलंगाना सहित यहां भी होने हैं।
और ये भी गजबः
छत्तीसगढ़ में बाबा के मंच से सुलताना ने कहा था कि मेरा मन बोलता है कि हिंदू धर्म से अच्छा कोई धर्म हो ही नहीं सकता है। वायरल वीडियो के अनुसार उसने कहा था कि हिंदू धर्म सभ्यता और संस्कार वाला धर्म है क्योंकि इसमें भाई बहनों में शादियां नहीं होतीं। साथ ही हिंदू धर्म में महिलाओं की जिंदगी तलाक-तलाक-तलाक बोल कर बर्बाद नहीं होती।
उसने कहा था कि हिंदू धर्म में एक बार शादी होती है वो भी सात फेरों के साथ, सिंदूर का मांग भरा जाता है और मंगलसूत्र पहनाया जाता है और सोलह श्रृंगार होता है। इसके बाद बाबा ने उसका हिंदू धर्म में स्वागत किया और उसको बहन मानते हुए उससे राखी बंधवाई। सुलताना से सुरभि बनी महिला ने विधिवत तरीके से भाई की आरती कर उन्हें राखी बांधी।