झूठ बोले कौआ काटे! प्रेमविवाह में पैरेंट्स की सहमति का सवाल!
– रामेन्द्र सिन्हा
गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने कहा है कि उनकी सरकार संविधान के दायरे में प्रेम विवाह में माता-पिता की सहमति को अनिवार्य बनाने की संभावना पर विचार करेगी। कांग्रेस के दो विधायकों ने पार्टी लाइन के विपरीत इसका समर्थन किया है। अब बहस का मुद्दा है कि ऑनर किलिंग और महिलाओं को उनके परिवारों और समुदाय द्वारा बहिष्कृत किए जाने की अनेक घटनाओं को देखते हुए, माता-पिता को यह अधिकार देना कितना उचित होगा कि वे यह तय करें कि उनकी बेटियों की शादी किससे होनी चाहिए?
एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम भूपेन्द्र पटेल ने कहा कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रुशिकेश पटेल ने उनसे लड़कियों के भागने की घटनाओं पर नए सिरे से विचार करने और अध्ययन करने के लिए कहा ताकि यह देखा जा सके कि (प्रेम विवाह में) माता-पिता की (अनिवार्य) सहमति की संभावना है या नहीं। यदि संविधान इसका समर्थन करता है, तो फिर हम इस संबंध में एक अध्ययन करेंगे और इसके लिए सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।
विपक्षी कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला का कहना है कि उनके पास कई माता-पिता ऐसी शिकायतें लेकर आते हैं, जहां लड़कियां भाग जाती हैं और बाद में पता चलता है कि उन्होंने शादी कर ली है। उन्होंने कहा, ‘सीएम ने प्रेम विवाह में माता-पिता की अनिवार्य मंजूरी पर एक अध्ययन कराने का आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री ने इस बारे में बात की है। अगर सरकार विधानसभा सत्र में ऐसा कानून लाती है, तो मेरा समर्थन सरकार के साथ है।‘ गुजरात विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 में संशोधन की मांग के पीछे उनका तर्क सरल है, ‘माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, इसलिए उनकी सहमति अनिवार्य बनाई जानी चाहिए।‘
मीडिया से बातचीत में खेड़ावाला ने कहा कि उन्हें इस मामले में भाजपा का लव जिहाद का एजेंडा नहीं दिखता। लड़की चाहे हिंदू हो या मुस्लिम, हर माता-पिता अपने बच्चे का भला चाहते हैं, इसलिए शादी के लिए माता-पिता की अनुमति जरूरी कर दी जानी चाहिए और यह कैसे संभव होगा, यह संविधान में देखा जाना चाहिए।
दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी के अनुसार, गैर मुद्दे को मुद्दा बनाना भाजपा की फितरत है। उनका कहना है कि कांग्रेस पार्टी संविधान में विश्वास रखती है और व्यवस्था में विश्वास रखती है। उनके अनुसार, ‘’भाजपा खुद को राष्ट्रवादी पार्टी मानती है, लेकिन प्यार की जगह लोगों के मन में फूट डालकर राजनीति करती है। चुनाव के आसपास उसे राम की याद आती है, वह हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण की राजनीति करती है।‘
इसके पूर्व, मार्च में गुजरात विधानसभा में एक चर्चा के दौरान, भाजपा विधायक फतेहसिंह चौहान ने प्रेम विवाह को अपराधों से जोड़ा और दावा किया कि माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य करने से राज्य में अपराध दर कम हो जाएगी।
‘माता-पिता की सहमति के बिना की गई शादियां राज्य में अपराध दर में योगदान करती हैं। यदि ऐसे विवाहों को माता-पिता की सहमति से पंजीकृत किया जाता है, तो अपराध दर में संभावित रूप से 50 प्रतिशत की कमी आ सकती है। जोड़े के अपने जिले के अतिरिक्त अन्य जिलों में कोर्ट मैरिज को पंजीकृत करने की मौजूदा प्रथा अक्सर दस्तावेजों को छुपाने की ओर ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा होती है जहां लड़की पीड़ित होती है, या माता-पिता आत्महत्या जैसे चरम कदम उठाने के लिए प्रेरित होते हैं। इसके अतिरिक्त, अपने काम में व्यस्त माता-पिता को अपनी बेटियों की देखभाल करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है, जिससे वे असामाजिक तत्वों द्वारा शोषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं जो उन्हें भागने का लालच देते हैं।‘
विधानसभा में इसी चर्चा के दौरान, कांग्रेस विधायक गेनी ठाकोर ने इस मुद्दे से निपटने के लिए इसी तरह की मांग दोहराई। उन्होंने लड़कियों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लड़कों या विवाह के लिए साथी ढूंढने में असमर्थ लड़कों से होने वाले संभावित नुकसान से बचाने के महत्व पर जोर दिया।
झूठ बोले कौआ काटेः
पार्टी लाइन जो भी हो, प्रेम विवाह में माता-पिता की सहमति को अनिवार्य बनाने के मुद्दे पर विपक्ष के अंदर ही एक राय नहीं है। एक पक्ष का मानना है कि शादी जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले माता-पिता से अनुमति और आशीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि वे ही बच्चे का पालन-पोषण करते हैं। वहीं, दूसरे पक्ष का तर्क है कि जब लड़के-लड़कियां वयस्क होते हैं तो वे अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
यह प्रस्ताव पितृसत्तात्मक धारणा को कायम रखता है कि एक परिवार का सम्मान एक महिला के आचरण पर निर्भर है और महिलाओं के जीवन विकल्पों और शारीरिक स्वायत्तता पर नियंत्रण थोपना चाहता है। किस समझदार व्यक्ति को पता नहीं होता कि भागने के बाद किस तरह की चुनौतियों का उसे सामना करना पड़ेगा, इसलिए यह अक्सर अंतिम उपाय होता है। आखिर कौन सी बात लड़कियों को यह फैसला लेने के लिए प्रेरित कर रही है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि लड़कियों के माता-पिता विवाह में बाधा के रूप में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक असमानताओं को समझने और उन्हें स्वीकार करने में असफल हों?
ऐसी स्थिति में, क्या प्रेम विवाह के लिए माता-पिता की सहमति को अनिवार्य करने वाला विधेयक माता-पिता को अपनी बेटियों को अपने प्रेमी से विवाह करने से रोकने और इसकी जगह उनकी शादी किसी और से जबरदस्ती करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगा? अगर चिंता वास्तव में महिलाओं द्वारा भाग जाने और गलत व्यक्ति से शादी करने पर पछताने को लेकर है, तो क्या हमें महिलाओं को सही विकल्प चुनने के लिए सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए?
मेरे एक मित्र परिवार में तो ऐसा भी हुआ कि बेटे को जो लड़की पसंद थी, उसकी मंगनी तक हो गई। बाद में, किसी के कहने में आकर लड़के की मां ने रिश्ता तोड़ दिया और दूसरी लड़की से बेटे का विवाह कर दिया। पहली वाली लड़की का आगे क्या हुआ नहीं मालूम, पर उसकी आह जरूर लगी और आज ये नौबत है कि बहू ससुराल आना नहीं चाहती। बेटा दो परिवारों के बीच बैलेंस करने की कोशिश करता रहता। लड़कियों के साथ ऐसा होता है तो या तो वे प्रेमी के साथ भाग जाती हैं, बिना किसी ऑनर किलिंग-समाज के डर के, या आत्महत्या कर लेती हैं। ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां लड़कियां गलत व्यक्ति से प्यार कर बैठती हैं, भाग जाती हैं और फिर बाद में पछताती हैं।
इसीलिए, गुजरात सरकार ने 2021 में गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन किया जो जबरन विवाह द्वारा या धोखाधड़ी से धार्मिक रूपांतरण को दंडित करता है। संशोधित कानून के तहत किसी व्यक्ति के दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। हालांकि, गुजरात उच्च न्यायालय ने अधिनियम की कुछ विवादास्पद धाराओं पर रोक लगा दी और उसके आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जहां यह लंबित है।
बोले तो, संविधान हमें स्वेच्छा से विवाह करने का अधिकार देता है। लड़की अगर 18 साल की है और लड़का 21 का, तो उनके लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है कि वो पहले से विवाहित हैं, अर्थात उनका स्पाउस लिविंग है या डायवोर्स नहीं हुआ है, या कुछ नहीं हुआ।
तो क्या, प्रेम विवाह के लिए माता-पिता की सहमति को अनिवार्य बनाने के बजाय, हमें ऐसी पहल नहीं करनी चाहिए जो महिलाओं को सही साथी चुनने सहित जीवन के प्रमुख निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाए?
और ये भी गजबः
प्रेम विवाह के बढ़ते मामलों और उसके दुष्परिणामों को लेकर पाली बार एसोसिएशन ने फैसला लिया है कि घर से भागी हुई लड़कियों को कानूनी सलाह देंगे न ही लव मैरिज करवाएंगे। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरज राजपुरोहित के अनुसार जिला बार एसोसिएशन ने फैसला लिया है कि ऐसे मामलों में कानूनी तरीके से किसी प्रकार का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग नहीं करेंगे और ना ही किसी प्रकार का दस्तावेज तैयार करेंगे। माता-पिता की सहमति के बिना प्रेम विवाह नहीं करवाने की मांग को लेकर अखिल भारतीय देवांशी मालवीय लोहार संघ पाली ने बार एसोसिएशन को ज्ञापन सौंपा था।
समाज के मुकेश मालवीय ने बताया कि पिछले दिनों पाली के हाउसिंग बोर्ड में अपनी पुत्री के प्रेम विवाह करने के चलते लड़की के माता पिता ने आत्महत्या कर ली थी। और पूरा परिवार तबाह हो गया। ऐसे मामले जिले भर में और भी हैं। हमारी बार एसोसिएशन से मांग है कि वह मिला माता-पिता की बिना सहमति के प्रेम विवाह नहीं कराया जाए।