झूठ बोले कौआ काटे! शोभा यात्राओं पर मुस्लिम भावनाएं ही क्यों भड़कती हैं – बहस जारी

झूठ बोले कौआ काटे! शोभा यात्राओं पर मुस्लिम भावनाएं ही क्यों भड़कती हैं – बहस जारी

जब समूचे देश में रामनवमी पर्व पर उल्लास का माहौल हो, ऐसे में गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में शोभा यात्राओं पर हमले व भड़के दंगों तथा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो समुदायों के बीच झड़प की खबरों से यह बहस तेज हो गई है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में ही ये हिंसा क्यों होती है? मुस्लिमों की भावनाएं ही क्यों भड़कती हैं? पिछले वर्ष हुई व्यापक हिंसा को लोग अभी भूले नहीं हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 30 मार्च को हावड़ा में शोभायात्रा पर पथराव हुआ। सड़कों पर खड़े वाहनों को फूंक दिया गया। उधर, बांकुरा में जुलूस रोकने पर हंगामा हुआ। दूसरी ओर, गुजरात के वडोदरा में शोभायात्रा पर दो अलग-अलग जगहों पर हमला किया गया। सबसे पहले फतेहपुरा, इसके बाद कुंभारवाडा में पत्थरबाजी की घटना सामने आई। सड़क पर खड़े वाहनों में तोड़फोड़ की गई। उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।

हिंसा

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (पुराना नाम औरंगाबाद) के किराडपुरा इलाके में राम मंदिर पर कट्टरपंथी उपद्रवियों द्वारा पथराव किया गया और मंदिर के बाहर आगजनी की गई। उपद्रवियों ने पुलिस की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया। क्षेत्रीय लोगों के अनुसार दंगाइयों ने आसपास के हिन्दू इलाके में मौजूद घरों में भी जमकर पथराव किया। मामले की शुरुआत दोनों पक्षों के दो युवकों में हुई बहस के बाद हुई। वहीं, उप्र की राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम में शोभायात्रा के दौरान दो समुदाय आमने-सामने आ गए। पुलिस ने घटना को हल्का बल प्रयोग कर शांत करा लिया।

शोभा यात्राओं पर मुस्लिम भावनाएं ही क्यों भड़कती हैं

बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने हावड़ा में हुई हिंसा का ठीकरा शोभा यात्रा के आयोजकों पर ही फोड़ दिया। उन्होंने गुरुवार शाम को कहा कि आयोजकों को मुस्लिम बहुल इलाके में शोभा यात्रा नहीं ले जाने की चेतावनी दी गई थी। फिर भी यात्रा वहां लेकर जाएंगे तो और क्या होगा। उन्होंने हावड़ा हिंसा को दंगा बताया और भाजपा पर जानबूझकर इसके लिए माहौल बनाने का आरोप लगाया। ममता के इन आरोपों के बाद भाजपा ने भी पलटवार करते हुए कहा कि बंगाल की मुख्यमंत्री होने के साथ ही आप ही गृहमंत्री भी हैं। इस कारण आप इस हिंसा के लिए सीधे जिम्मेदार हैं।

ममता बनर्जी ने ये भी कहा कि सुना है हावड़ा में दंगा हो गया। मेरी आंख और कान खुले हैं। रोजा के समय मुस्लिम कोई गलत काम नहीं करते हैं। उधर, वड़ोदरा हिंसा पर बजरंग दल की वड़ोदरा इकाई के अध्यक्ष केतन त्रिवेदी ने आरोप लगाया कि पथराव साजिश के तहत किया गया।

संभाजीनगर के सांसद इम्तियाज जलील ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यहां झड़प शराबियों के दो गुटों में हुई। इन्होंने ही पत्थरबाजी की। राम मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। मंदिर में कोई नहीं गया। इसलिए नागरिकों को अफवाहों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। संभाजीनगर में भीड़ को काबू करने के लिए कुछ धर्मगुरुओं को बुलाया गया। लेकिन भीड़ उनकी बात मानने को तैयार नहीं थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, भीड़ काबू से बाहर होते देख पुलिस ने दो-तीन बार हवा में फायरिंग की।

झूठ बोले कौआ काटेः

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत जहां भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और आदर्श माना गया है, वहां उनके जन्मदिन के पर्व पर इस वर्ष फिर कई जगह साम्प्रदायिक हिंसा हुई। शोभायात्राओं पर हमले हुए। अब ममता बनर्जी सहित अनेक लोग इन हमलों को ये कह कर सही ठहरा रहे हैं कि रामनवमी की शोभा-यात्राएं मुस्लिम इलाकों से नहीं निकाली जानी चाहिए थीं। कितनी अजीब सी बात है कि हिंदू शोभा यात्राओं के मुस्लिम क्षेत्र से गुजरने पर मुस्लिमों की भावनाएं भड़क जाती हैं, लेकिन ईद मिलाद-उन-नबी, जुलूस ए मोहम्मदी या मोहर्रम के जुलूस हिंदू बहुल क्षेत्रों से निकलने पर कोई फसाद नहीं होता। हिंदुओं की भावनाएं नहीं भड़कतीं।

एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में कोई भी स्थान, हिन्दू या मुस्लिम इलाका कैसे हो सकता है? न तो हमारे संविधान में और न ही प्रशासनिक दृष्टि से किसी स्थान को इस तरह से चिन्हित किया गया है। भारतीय संविधान के तीसरे भाग में भगवान राम की तस्वीर छापी गई है। ये भाग, भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के बारे में बताता है। अर्थात्, देश का संविधान भी मौलिक अधिकारों को भगवान राम से जोड़ कर देखता है। इन अधिकारों के लिए उन्हें अपना आदर्श मानता है, लेकिन इसी देश में उनकी शोभायात्रा पर पत्थर बरसाए जाते हैं।

शोभा यात्राओं पर मुस्लिम भावनाएं ही क्यों भड़कती हैं

पिछले साल एक टीवी चैनल से बातचीत में मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ठीक ही कहा था, ‘सिर्फ हमारे त्योहारों के दौरान ही हिंसा क्यों की जाती है?’ मिश्रा ने कहा, ‘रामनवमी साल में एक बार आती है लेकिन इस दिन देश भर में 12 जगहों पर दंगा हो जाता है। रामनवमी पर मांसाहारी खाने को लेकर जेएनयू में बवाल होता है। ये सब हमारे त्योहारों के दिनों में ही क्यों होता है?’ नरोत्तम मिश्रा ने सवाल उठाया था कि ये सब मुस्लिमों के त्योहारों के दौरान क्यों नहीं होता है। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था।

पूर्व आईएएस अफ़सर और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने एक इंटरव्यू में कहा था, दंगे कभी अपने आप नहीं होते। उन्होंने कहा था, “मैं सामाजिक हिंसा का अध्ययन पिछले कई सालों से कर रहा हूं और यह बात पक्के तौर से कह सकता हूं कि दंगे होते नहीं पर करवाए जाते हैं। मैंने बतौर आईएएस कई दंगे देखे हैं। अगर दंगा कुछ घंटों से ज़्यादा चले तो मान लें कि वह प्रशासन की सहमति से चल रहा है।”

उनका कहना था, “दंगे करवाने के लिए तीन चीज़ें बहुत जरूरी है। नफ़रत पैदा करना, बिल्कुल वैसे जैसे किसी फैक्टरी में कोई वस्तु बनती हो। दूसरा, दंगों में इस्तेमाल होने वाले हथियारों को बांटना। ईंट-पत्थर फेंक कर तनाव पैदा करना। तीसरी बात ये भी है कि इसमें कहीं ना कहीं पुलिस भी जिम्मेदार होती है।

जाने-माने पूर्व आईपीएस अफ़सर जुलियो रिबेरो और विभूति नारायण राय ने भी दंगों में पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठाए हैं। राय ने दंगों पर ही आधारित एक उपन्यास ‘शहर में कर्फ्यू’ भी लिखा। जिसमें उन्होंने ये दिखाने की कोशिश की किस तरह से सियासत के जरिए देश के दो बड़े धार्मिक तबकों में अविश्वास पैदा किया जाता है।

पूर्व आईपीएस अफ़सर सुरेश खोपड़े ने दंगों से ही संबंधित एक किताब ‘मुंबई जल रहा था, पर भिवंडी क्यों नहीं’ लिखी है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, “इतने दंगों के बावजूद किसी भी सरकार ने पुलिस बल को ऐसे मामले रोकने के लिए सशक्त नहीं किया। भिवंडी में दंगे आम बात हो गई थी। जब मेरी वहां पोस्टिंग हुई तो मैंने मोहल्ला कमेटी बनाई और पुलिस कॉन्स्टेबल को उनका अध्यक्ष रखा।”

इतिहास के पन्ने पलटिए। क्या यह सच नहीं है कि मुस्लिम इलाके ही वह वजह हैं जिसके चलते देश का विभाजन हुआ। मुस्लिम इलाके हैं जिसके कारण कश्मीर में रालिव-गलिव-चलिव नारा गूंजा। जिसका अर्थ है या तो इस्लाम अपना के हमारे साथ मिल जाओ, या मरो या फिर भाग जाओ। मुस्लिम इलाके हैं कि क्यों श्रीनगर में बिहारी लोग मारे गए, मुस्लिम इलाके हैं वजह जिसके कारण पूर्वी बंगाल में लाखों बंगाली हिंदू मारे गए, बलात्कार के शिकार हुए। आखिर कब तक ये देश ऐसे मुस्लिम इलाकों की भरपाई करता रहेगा जहां देश के कानून लागू नहीं होते? वरना, वोट के सौदागर नेताओं को ये कहने की जरूरत क्या है कि मुस्लिम बहुल इलाके में शोभा यात्रा न निकाली जाएं।

और ये भी गजबः

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ इंटरव्यू में गुजरात दंगों को लेकर खुलकर बातचीत की थी। शाह से विपक्ष के सवाल भी पूछे गए। केंद्रीय गृह मंत्री से सवाल किया गया कि विपक्ष कहता है कि आप (भाजपा) राज्यों में दंगे करने देते हैं, क्योंकि इससे पॉलिटिकल फायदा होता है। इस पर शाह ने विपक्ष को चुनौती दी और कहा कि किसी भी राज्य के शासन काल में दंगों की तुलना कर सकते हैं। अन्य पार्टियों की सरकारों में ज्यादा दंगे हुए हैं और लोगों की जान गई है।

अमित शाह

गुजरात दंगों पर जकिया जाफरी की याचिका खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने अहम टिप्‍पणियां की थीं। सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ कहा, अमित शाह उसका इस्‍तेमाल इंटरव्‍यू में करते नजर आए। शाह ने कहा कि मोदी और भाजपा नेताओं पर ‘झूठे आरोप लगाने वालों में अंतरात्‍मा हो तो उन्हें माफी मांगनी चाहिए।’

मोदी को सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट पर शाह बोले कि 18 साल तक शिव की तरह विषपान करते मोदी। मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने क्लीन चिट नहीं दिया बल्कि आरोपों को खारिज किया और आरोप क्यों गढ़े गए, इसके बारे में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा।

जब शाह से पूछा गया कि दंगों में मुसलमान भी तो मारे गए तो उन्‍होंने कहा कि गोधरा की ट्रेन में हिंदुओं को जला देने का समाज में ‘आक्रोश’ था। पुलिस की लापरवाही के सवाल पर शाह ने कहा कि दूसरे दिन से ही दंगाइयों पर फायरिंग शुरू कर दी गई थी।

गुजरात में दंगा होने की मुख्‍य वजह क्‍या थी, यह पूछने पर अमित शाह ने कहा कि दंगा होने का मूल कारण गोधरा की ट्रेन को जला देना था। 60 लोगों को… 16 दिन की बच्‍ची को मां की गोद में बैठे जिंदा जलते हुए मैंने देखा है। मेरे हाथ से अग्नि संस्‍कार किया है मैंने गोता गांव में… इसके कारण दंगे हुए… और आगे जो दंगे हुए हैं वो पॉलिटिकली मोटिवेटेड था। रिजर्वेशन का आंदोलन हुआ, दंगों में कन्‍वर्ट कर दिया गया। कोई परेड नहीं कराई गई, यह झूठ है। उन्हें सिविल अस्पताल ले जाया गया और शवों को परिवारों द्वारा बंद एंबुलेंस में उनके घर ले जाया गया।

*(लेख में दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। ‘मीडियावाला’ का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)*

 

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रामेन्द्र सिन्हा
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