झूठ बोले कौआ काटे! जातिगत जनगणना से क्या टूटेगा मोदी-तिलस्म
2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तिलस्म को तोड़ने के लिए अब उप्र में समाजवादी पार्टी ने भी जातिगत जनगणना का दांव चल दिया है। आज 24 फरवरी को पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सपा 10 दिवसीय अभियान शुरू कर रही है। बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को अपने पाले में लाने की ये कवायद पहले ही प्रारंभ कर दी थी। दोनों राज्यों में कुल मिलाकर 120 में से 83 सांसद अकेले भाजपा के हैं। भाजपा विरोधी खेमे के समक्ष यही सबसे बड़ी चुनौती है।
पिछले साल अर्थात् 2022 के दौरान जुलाई महीने में इसके बाद बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन ने केंद्र सरकार के फैसले के उलट जाकर जातिगण जनगणना शुरू करा दी।
समाजवादी पार्टी अपने 10 दिवसीय अभियान में उप्र के 822 ब्लॉकों में सार्वजनिक सेमिनार आयोजित करेगी। इस अभियान का सीधा उद्देश्य जातिगत जनगणना के लिए समर्थन जुटाना है। सपा नेतृत्व ने इस अभियान की जिम्मेदारी पार्टी के ओबीसी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप को सौंपी है। वाराणसी से अभियान शुरू करने के फैसले पर राजपाल कश्यप ने कहा कि पीएम मोदी के पास जातिगत जनगणना का आदेश देने की पावर है। इसीलिए, इस अभियान की शुरुआत उनके निर्वाचन क्षेत्र से की जा रही है। अभियान के दौरान पार्टी राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारों पर जातिगत जनगणना कराने से बचने का आरोप लगाएगी और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी उप्र के सभी 75 जिलों का दौरा कर सकते हैं।
बीते साल जब केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया था कि जातिगत जनगणना कराने को लेकर केंद्र सरकार की कोई योजना नहीं है तो, बिहार की नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना कराने के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दिला दी थी। ठीक उसी समय सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी राज्य में जातिगत जनगणना कराने की अपनी पुरानी मांग को दोहराया था। अखिलेश के अनुसार, दलितों और पिछड़ों को बरगला कर सत्ता तक पहुंची भाजपा वास्तव में संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बताए रास्ते पर दीवार बन कर खड़ी हो गई है। दलित वंचित व शोषित वर्ग के हितों की रक्षा के लिए जातिगत जनगणना अत्यन्त आवश्यक है और उनकी पार्टी सत्ता में आने के बाद यह काम प्राथमिकता के आधार पर कराएगी। अखिलेश के अनुसार, ‘सबका साथ, सबका विकास’ तभी संभव है जब उत्तर प्रदेश में जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी।बसपा और कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने भी यूपी में जातिगत जनगणना की आवाज उठाई है।
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘जातिगत जनगणना की बात करना सिर्फ ड्रामा है. वे (सपा नेता) जब सत्ता में थे, तब इस मसले पर खामोश थे। अब जब वे सत्ता से बाहर हैं तो 2024 लोकसभा चुनाव में फायदा पाने के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं, जो उन्हें नहीं मिलने वाला है।’ प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि हर चीज का एक तरीका होता है। नियम के तहत चीजें होती हैं। ऐसे ही जाति जनगणना की मांग करने से जाति जनगणना नहीं होगी, उनको जो करना है वो करते रहें। कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा कि अखिलेश यादव की जब सरकार थी तो उन्होंने जातियों के लिए क्या किया, पिछड़ों के लिए क्या किया जवाब दें? माना जा रहा है कि जब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे तब तक मौयर्य का बयान सरकार या पार्टी का फैसला नहीं माना जाएगा।
झूठ बोले कौआ काटेः
बिहार, उप्र व हरियाणा जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दल काफी मजबूत स्थिति में हैं और उनकी राजनीति ही जाति केंद्रित है। वैसे भी देश की राजनीति में पिछड़े वर्ग का दखल बढ़ा है। एक अनुमान के अनुसार, बिहार में ओबीसी की आबादी 26 प्रतिशत है। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को अति पिछड़े वर्ग की जातियों के अतिरिक्त ओबीसी में यादव को छोड़ अन्य जातियों का साथ मिलता रहा है। हालांकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में वह तीसरे नंबर पर पहुंच गई। उधर, राजद भी 2020 में मिले वोट को एकजुट रखना चाहता है, इसलिए अपने जनाधार में जदयू की सेंध से बचने के लिए ओबीसी का सच्चा हितैषी बनने की कोशिश में है।
2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सपा की रणनीति भी पूरी तरह जातिगत जनगणना पर केंद्रित है, क्योंकि पार्टी का मानना है कि इससे काफी फायदा हो सकता है और पार्टी को ‘बहुजन’ (पिछड़ा वर्ग) एकता की छतरी के नीचे मुस्लिमों और दलितों के साथ ओबीसी का गठबंधन बनाने में मदद मिल सकती है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का फोकस पिछड़ा वर्ग पर था। इसकी मदद से पार्टी को 32 फीसदी वोट शेयर के साथ 111 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी। इस दांव की मदद से 2017 विधानसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी ने प्रदेश में अपनी सीटों की संख्या दोगुनी से ज्यादा कर ली थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का लक्ष्य 50 सीटों पर जीत हासिल करना है। 2019 लोकसभा चुनाव में सपा ने बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर 37 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी।
भाजपा जो कभी सवर्णों तथा बनियों की पार्टी समझी जाती थी, अन्य जातियों में अपना जनाधार बढ़ा चुकी है। इसलिए वह अब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के साथ ओबीसी को लामबंद करना चाहती है। साथ ही भाजपा गरीब सवर्णों को आरक्षण व जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून के सहारे हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश भी कर रही है।
बोले तो, भारत में आखिरी बार 1931 में जातिगत आधार पर जनगणना की गई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ जाने के कारण 1941 में आंकड़ों को संकलित नहीं किया जा सका था। आजादी के बाद 1951 में इस आशय का प्रस्ताव तत्कालीन केंद्र सरकार के पास आया था, लेकिन उस समय गृह मंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यह कहते हुए प्रस्ताव खारिज कर दिया था कि इससे समाज का ताना-बाना बिगड़ सकता है। 1951 के बाद से लेकर 2011 तक की जनगणना में केवल अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति से जुड़े आंकड़े प्रकाशित किए जाते रहे। 2011 में इसी आधार पर जनगणना हुई, किंतु अपरिहार्य कारणों का हवाला देकर इसकी रिपोर्ट जारी नहीं की गई। कहा जाता है कि करीब 34 करोड़ लोगों के बारे में जानकारी गलत थी।
2010 में जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी तब भी लालू, शरद यादव व मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने जातीय जनगणना की मांग की थी और उस समय पी. चिदंबरम सरीखे नेताओं ने इसका जोरदार विरोध किया था। आशंका है कि जाति आधारित जनगणना के बाद तमाम ऐसे मुद्दे उठेंगे, जिससे देश में आपसी भाईचारा व सौहार्द बिगड़ेगा तथा शांति व्यवस्था भंग होगी। जिस जाति की संख्या कम होगी, वे अधिक से अधिक बच्चे की वकालत करेंगे. इससे समाज में विषम स्थिति पैदा होगी। संविधान सभा में 11 दिसंबर, 1946 को बतौर सभापति अपने पहले भाषण में डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि संविधान सभा ऐसा संविधान बनाएगी, जो किसी भी नागरिक से उसकी जाति, मजहब या प्रांत के नाम पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
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झूठ बोले कौआ काटे, पीएम नरेंद्र मोदी की दिनोंदिन मजबूत होती वैश्विक छवि और दलित-पिछड़ा वर्ग में भी समान लोकप्रियता के बाद मुस्लिम समाज में घुसपैठ ने विपक्षी दलों की चिंता बढ़ा रखी है। और तो और, कट्टर दुश्मन देश पाकिस्तान में पीएम नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व के जयकारे लग रहे। ऐसे में, लोकसभा चुनाव से पहले भव्य राम मंदिर के लोकार्पण की तैयारी से चिंतित विपक्ष खास कर क्षेत्रीय दलों को ओबीसी की आबादी का सही आंकड़ा मिलने से राजनीति का नया आधार मिल सकता है। हिंदुओं को एकजुट करने की भाजपा की रणनीति को पलीता लगाने का मौका मिल सकता है। रामचरित मानस विवाद से लेकर जातिगत जनगणना तक यही कहानी है। हालांकि, जनता का मिजाज तो चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा।
और ये भी गजबः
प्रधानमंत्री मोदी और भारत की तरक्की से प्रभावित एक पाकिस्तानी ने अपने देश की मीडिया से बात करते हुए कहा कि 1947 में भारत का विभाजन नहीं हुआ होता, सारा पाक और हिन्द एक होता तो टमाटर आज 20 रुपये किलो होता। चिकन 150 रुपये किलो और पेट्रोल 150 रुपये लीटर मिलता। उनकी बदकिस्मती है कि पाकिस्तान में मुसलमानों का कोई अच्छा लीडर ही नहीं है। इससे अच्छे तो प्रधानमंत्री मोदी है, जिन्हें वहां की जनता काफी सम्मान देती है। प्रधानमंत्री मोदी अपने लोगों के लिए शमशेर हैं। काश, हमें मोदी मिल जाए। हमें न नवाज शरीफ चाहिए, न बेनजीर चाहिए, न हमें इमरान खान चाहिए। कोई भी नहीं, हमें मुसर्रफ भी नहीं चाहिए। हमें सिर्फ प्राइम मिनिस्टर मोदी चाहिए, जो इस मुल्क के टेढ़ों को सीधा करें। इस मुल्क को ऊपर लेकर जाए।
प्रधानमंत्री मोदी के पाकिस्तानी प्रशंसक ने आगे कहा कि दुनिया में पांचवें नंबर आ चुके हैं इंडिया वाले। अब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मोदी की हुकूम्मत में भी रहने को तैयार है। मोदी साहब ग्रेट मैंन हैं। बुरा इंसान थोड़ी है। इंडिया के मुसलमान 150 रुपये लीटर पेट्रोल ले रहे हैं। 150 रुपये किलों का चिकन ले रहे हैं। अभी दिल से दुआ है या अल्लाह हमें मोदी दे दो। जो आठ साल हमारे मुल्क पर शासन करें और हमारे देश को सीधा कर दें। पहले हम इंडिया के साथ तुलना करते थे। लेकिन अब इंडिया के साथ कोई तुलना ही नहीं है। पाकिस्तान मीडिया भीखुलकर कहने लगा है कि अब भारत से प्रतिस्पर्धा भूल जानी चाहिए। वह बहुत आगे निकल चुका है। तुर्की से दुश्मनी भुलाकर जिस तरह भारत ने मदद भेजी, उसे भी बहुत सराहा गया है। अलबत्ता, पाकिस्तान सरकर ने भूकंप के वक्त जिस बेशर्मी से इस मदद को तुर्की तक पहुंचने में अड़ंगा लगाया, उसकी आलोचना वहां भी हुई है।