Life saving story of Mrignayni: मृगनयनी की प्राण रक्षा
सारी दुनिया में मृत्यु का तांडव था तब का प्रसंग है ये .कोरोना का भयावह दौर दुनिया भर में भय आशंका तबाही क्रंदन का समय था .लॉक डाउन में दुनिया भर के बाज़ार बंद याने धंधा चौपट ,वित्तीय विनाश और बेरोज़गारी. अस्पतालों और श्मशानों में अंतहीन भीड़ हम सबने देखी .उसी भीषण भयानक दौर में सरकारों की राजस्व प्राप्तियाँ शून्यवत हो जाने से वित्तीय कड़ाई का कोई विकल्प न था .
निगमों मण्डलों की दशा और दयनीय थी .निर्देश मिला कि अपनी आय से जितनों को वेतन दे सकें उन्हें छोड़कर शेष को विदा करें .MPT सहित अन्य निगमों के आउट सोर्स स्टाफ़ की छँटनी शुरू भी हो गई .मप्र हस्त शिल्प विकास निगम जो मृगनयनी के नाम से विख्यात है, के प्रबंध संचालक के तौर पर मेरे सामने भी छँटनी के सिवा कोई विकल्प न था .जब व्यवसाय ठप्प हो तो वेतन कहाँ से देंगे .शो रूम का किराया ,बिजली आदि खर्चे ?
नगरीय प्रशासन जैसे महत्वपूर्ण विभाग में अपर सचिव और सचिव के रूप में तीन साल बिताकर अपनी इच्छा से मैं मृगनयनी में आया था .
मृगनयनी में नये प्राण फूँकने की इच्छा लेकर मैं वरिष्ठ
अधिकारियों ,विशेषज्ञों ,बुनकरों , शिल्पियों और साथी कर्मचारियों के तालमेल से व्यवसाय और लाभ दूना करने और फ़िज़ूलख़र्ची रोकने में सफल रहा.
हैदराबाद ,नागपुर ,केवड़िया ,मुंबई सहित एक दर्जन नए शो रूम खोलकर हम लंदन में नया शो रूम खोलने की तैयारी कर रहे थे तभी प्रलय की तरह कोरोना आया और अब छँटनी की तैयारी करनी थी .मुझे घुटने टेक देने थे तभी मैंने आख़िरी दाँव खेला .मेरा मन छँटनी के लिए तैयार नहीं था .निगम के नवनिर्मित सभा कक्ष में आपात बैठक की सूचना कर्मचारियों के चेहरों पर चिंता और भय ले आई .आशंका सबको थी ही उन्हें लगा विदा की बात होगी .मैंने अपना फ़ार्मूला रखा बिना व्यवसाय निगम जी नहीं सकता .शोरूम लॉक डाउन में खुल नहीं सकते इसलिये मंत्रालय ,पी एच क्यू,सतपुड़ा,विंध्याचल में जाइये, उन्हीं से कुर्सी टेबल माँगिये .हम मास्क बनायेंगे उन्हें वहाँ बेचिये .बाज़ार में मास्क उपलब्ध नहीं है इसलिए हमारे मास्क बिकेंगे .कर्मचारी अधिकारी सब स्तब्ध थे .
पाँच हज़ार से पचास हज़ार की साड़ी बेचने वालों को मैं पचास रुपये का मास्क बेचने की अक्ल दे रहा था .उनके चेहरे उनकी अनिच्छा बता रहे थे .ख़ैर फटाफट अनुमतियाँ प्राप्त की गईं और अगले दिन मंत्रालय सहित अनेक स्थानों पर हमारी टीम मास्क बेच रही थी .निराशा छँटने लगी .हमने एक करोड़ रुपये के मास्क बेच डाले. किसी को नौकरी से नहीं निकलना पड़ा .हफ़्ते भर बाद हमारी टीम ने मास्क के साथ साड़ी, सूट, सलवार, बेड शीट भी वहीं से बेचना शुरू कर दिया .मृगनयनी आसन्न संकट में विजेता बनकर उभरी जब सारे बाज़ार बंद थे तब भी मृगनयनी व्यवसाय कर रही थी .