सुनो सरकार ये कैसा प्रजातंत्र

इन दिनों सरकार या उससे जुड़े लोग अपनी आलोचना सुनने को क़तई तैयार नही है। छोटी सी आलोचना से सरकार या उसके नौकरशाह न सिर्फ तुरंत बचाव की मुद्रा में आ खडे होते हैं बल्कि उन्हे कुर्सी खिसकने का ज़बर्दस्त डर भी सताने लगता है। स्वस्थ आलोचना सरकार या सिस्टम को आईना दिखाती है उसकी गवर्नेंस को मज़बूती देती है। लेकिन बीते कुछ सालों से यह चलन में आ गया है कि जो सरकार या उसके नुमाइंदों के ख़िलाफ़ बोलेगा उसे कुचल दिया जाएगा। चाहे साम, दाम या दंड ही क्यों ना अपनाना पड़े।इसमें कांग्रेस हो या बीजेपी या फिर अन्य सत्ताधारी पार्टी कोई पीछे नहीं है। इस मामले में अपनाया जा रहा ज़ीरो टॉलरेंस डेमोक्रेसी के लिए घातक है। सीधी का मामला हो या फिर व्हिसिल ब्लोअर डॉ आंनद राय को हिरासत मे लिया जाना। दोनो ही हालिया मामले इसी तरह की कार्रवाई का नतीजा है।

*मीडिया के लिए भी आत्मघाती साबित हो रहा कट्टरवाद*

सीधी की घटना सोशल मीडिया में जंगल में आग की तरह फैली हुई है। जितने मुँह उतनी बातें। सब अपनी- अपनी ताल ठोक रहे हैं। सीधी में पत्रकार साथियों पर पुलिस की बर्बरता ने कहीं भीतर तक हिला दिया। इस घटनाक्रम के पीछे विधायक, सत्ता का पॉवर, पुसिसिया डंडा या फिर कोई और वजह हो, पत्रकारिता का पतन साफ़ दिखाई देता है। ज़्यादातर मीडिया संस्थानों पर आज पार्टियों की छाप है। टीवी चैनलों पर सत्ता और राजनीतिक दलों का कट्टरवाद इस क़दर छाया हुआ है कि चैनलों पर एक दूसरे पत्रकारों की छीछीलेदार की जाना आम बात हो गई है। पत्रकारों के खास दो धड़ हो गए हैं। सत्ताधारी दल के साथ या उसके ख़िलाफ़। पत्रकारिता की पहली पाठशाला में पढ़ा और पढ़ाया जाता है पत्रकारिता स्थायी विपक्ष की भूमिका में होता है। निष्पक्ष। सरकार को आईना दिखाना और जनहित को मुद्दों को उठाना। मगर आज  दोनो ही लगभग नदारद हैं। जब बडे-बडे मीडिया संस्थान ही अपनी पगड़ी उतार चुके हैं तो बाक़ी की क्या बिसात। सबसे ज्यादा मरण उन ज़मीनी पत्रकार साथियों का है जो दिन रात कोल्हू के बैल की तरह जुते रहते हैं। ज़ाहिर है उनकी हालत न घर की है न घाट की। जरुरत है मीडिया में कट्टरवाद को छोड़ने की। सत्ता और राजनीतिक पार्टियों से अपना गहरा नाता तोड तटस्थता अपनाने की। नहीं तो हर शहर से सीधी की तरह की तस्वीरें हर दिन निकल कर आएँगी और हम इसी तरह हाथ मलते रह जाएँगे।

*एडीजी सही या सीएम का  फैसला*
सीधी मामले में एडीजी रीवा के एडीजी केपी वेंकटेश्वर राव ने मीडिया के सामने जो सफ़ाई दी उसमें उन्हें पुलिस की कोई ग़लती नज़र नहीं आई। अपनी पुलिस को लेकर वे बचाव की मुद्रा में नज़र आए। अपने बयान में उन्होंने सरकार और मुख्यमंत्री को भी यह जता दिया कि आपके ख़िलाफ़ लग रहे नारों पर उनकी पुलिस ने कार्रवाई की। एडीजी साहब ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। साहब किसी को नंगा करना यदि आपकी कार्यप्रणाली का हिस्सा है तो यह भी बता दीजिए कि क्या किसी को नंगा कर उसकी फोटो को पब्लिक डोमेन में डालना भी आपकी पुलिस की ज़िम्मेदारी है..लॉकअप में तस्वीर लेना मना है तो थाने के भीतर आकर किसने तस्वीर ली….क्या आपका थाना इतना असुरक्षित है कि कोई भी घुसकर उनकी तस्वीरें क्लिक करेगा.. जनाब जब आपकी पुलिस इतनी ही क़ानून सम्मत और दूध की धुली है तो फिर सूबे के मुखिया ने घटना को संज्ञान में लेते हुए ११ पुलिसकर्मियों को लाइन हाज़िर क्यों किया। एडीजी  साहब क्या माने आप सही या सीएम साहब सही।

Author profile
pupendra Vaidya
पुष्पेन्द्र वैद्य

पुष्पेन्द्र वैद्य मध्यप्रदेश में टीवी पत्रकार के नाम से जाने जाते हैं। 13 वर्षों तक इंडिया टीवी में टीवी और 3 वर्षों तक आजतक में टीवी पत्रकारिता की। इससे पहले नवभारत समाचार पत्र में कार्यरत रहे। फ़िलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं।