Local Bodies Elections: क्या ये विन्ध्य में बदलाव के बयार की आहट है..!
BHOPAL/ विधानसभा चुनाव में विन्ध्य में एक तरफा जीत हाँसिल कर चुकी भाजपा को स्थानीय चुनाव में दांतों पसीना आ रहा है। महापौर के चुनाव में रीवा नगरनिगम इस बार भाजपा-कांग्रेस के बैटलफील्ड में बदल चुका है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 11 जुलाई को चार दिन में दूसरी बार यहां आकर रोड शो करना पड़ा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह राहुल शहर में बाजार और गली-गली पैदल मार्च कर रहे हैं। दोनों ही पार्टियों ने अपने बुजुर्ग वरिष्ठ नेताओं की वार्ड ड्यूटी लगा रखी है जो बूथ प्रबंधन से लेकर पर्चियां बाँटने तक का काम देख रहे हैं। 20 साल बाद बीजेपी को कांटे की टक्कर मिल रही है।
*भाजपा की पेशानी में बल इसलिए*
अब तक एकतरफा मुकाबले का लुत्फ उठा रही भाजपा को जिला पंचायत के नतीजों के रुझान ने पेशानी में बल ला दिया है। पूरे जिले में जिला पंचायत, जनपद के भाजपा समर्थित प्रत्याशियों को मतदाताओं ने चुन-चुन कर हराया। सबसे ज्यादा दुर्गति भाजपा के उन नेताओं की हुई जिन्होंने अपने परिजनों को मैदान पर उतारा था, इनमें स्पीकर गिरीश गौतम और वरिष्ठ विधायक पंचूलाल प्रजापति भी शामिल हैं। रीवा शहर की प्रकृति ग्रामीण है, आधी से ज्यादा आबादी का जीवंत गांव कनेक्शन है सो गांव की लहर शहर तक पहुँचने में देर कैसी यह महसूस करके भाजपा सशंकित है।
*पहली बार इतनी एकजुट नजर आई कांग्रेस*
कांग्रेस पहली बार एकजुट है। कहीं कोई विरोध-विद्रोह के स्वर नहीं। प्रभारी प्रतापभानु शर्मा को कमलनाथ ने अधिकार संपन्न करके भेजा है। उनका समन्वय काम कर रहा है। बेरोजगार नौजवान, मध्यवर्ग का रुझान भाजपा के खिलाफ दिख रहा है वहीं परंपरागत बनिया वर्ग ने कमलनाथ के सम्मुख कांग्रेस के पक्ष में संकल्प लिया है। संगठन प्रभारी प्रतापभानु मुखर हैं। रोज प्रेस ब्रीफ कर रहे हैं उन्होंने कांग्रेस को आक्रामक बना दिया है। पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि भाजपा हार के अनुमान से डरी हुई है इसीलिए कभी कमलनाथ को आतंकी कहती है तो कभी कर्मचारियों पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाती है।
*देसी और बाहरी ब्राह्मण बना मुद्दा*
इस बीच एक मुद्दा देसी और बाहरी ब्राह्मण का भी उठ गया है। भाजपा प्रत्याशी प्रबोध व्यास को राजस्थानी ब्राह्मण प्रचारित किया जा रहा है तो अजय मिश्र बाबा को देशज। रीवा में ब्राह्मणों के गोलबंदी की राजनीति श्रीनिवास तिवारी ने शुरू की थी तब से आज तक तीन-तेरा-सवालख्खी की बात हर चुनाव में उठ जाती है। इस चुनाव में भी उठ चुकी है। भाजपा के प्लस में राजेन्द्र शुक्ल का शालीन और विकासशील चेहरा है। शहर के फ्लाईओवर और अधोसंरचनात्मक विकास के लिए उनकी हर कोई तारीफ करता है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान राजेन्द्र शर्मा के मुरीद तो हैं ही जब प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें समूचे विन्ध्य का बेजोड़ नेता और विकासपुरुष कहा तो श्रोता हैरत में आ गए। प्रदेश अध्यक्ष शर्मा को राजेन्द्र शुक्ल से अदावत करने वाला नेता माना जाता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता राम सिंह कहते हैं कि “यह चुनाव कोई अस्वाभाविक नहीं भाजपा के लिए पहले जैसा ही आसान है। कांग्रेस कितनी भी एक जुट हो जाए उसके पास कार्यकर्ता नहीं”।
*कारगर नहीं रहा त्रिदेव मॉडल*
काम के कार्यकर्ता तो बीजेपी के पास भी नहीं। घर-घर पर्ची पहुँचवाने के लिए भाजपा के नेता कलेक्टर को फोन घनघना रहे हैं। मतदान केन्द्रों की अफरा-तफरी पहले चरण के चुनाव जैसी ही है। वोटर को आज पता नहीं कि उसे किस मतदान केंद्र पर जाकर वोट डालना है। भाजपा के नेता स्वीकार करते हैं कि पन्ना प्रभारी और त्रिदेव मॉडल उतना कारगर नहीं हो पा रहा। वोट प्रतिशत घटा तो नुकसान भाजपा का होगा।
*नाथ के दस्तखत से वार्ड प्रभारी*
इधर कांग्रेस ने पहली बार बड़े नेताओं की ड्यूटी वार्ड तक सीमित कर दी है। कमलनाथ की दस्तखत से वार्ड प्रभारी तय किये गए हैं। हर वार्ड प्रभारी की जवाबदेही तय की गई है। उसकी सतत् मॉनिटरिंग भी की जा रही है। वार्ड के पार्षद प्रत्याशियों में ज्यादा विद्रोह भाजपा से निकल कर आया है। उसका असर महापौर के वोट पर पड़े ऐसा हो नहीं सकता। बहरहाल मुद्दतों बाद रीवा शहर के लोगों को मुकाबले का चुनावी मैच देखने को मिल रहा है।