Loksabha Elections Bhind: फूल सिंह बरैया के कई बयान आत्मघाती, संध्या की निष्क्रियता से लोगों में नाराजगी!
दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट
चंबल-ग्वालियर अंचल की भिंड लोकसभा सीट में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले के आसार हैं। भाजपा की और से सांसद संध्या राय फिर मैदान में हैं तो कांग्रेस ने भांडेर से विधानसभा का चुनाव जीते फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है।
भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में चल रही लहर के साथ पार्टी प्रत्याशी के महिला होने का लाभ मिल सकता है जबकि फूल सिंह बरैया पहले बसपा में रहे हैं। उनकी दलित वर्ग में अच्छी पकड़ है। अलबत्ता, बरैया के कई विवादित बयान उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकते हैं, वहीं भाजपा प्रत्याशी संध्या राय की निष्क्रियता के कारण क्षेत्र के लोग नाराज हैं। लिहाजा, चंबल-ग्वालियर अंचल में विधानसभा चुनावों की तरह लोकसभा के चुनाव भी भाजपा के लिए आसान नहीं हैं।
मोदी लहर के बावजूद अंचल की अन्य सीटों की तरह भिंड में भी उसे कांग्रेस से कड़ा मुकाबला करना पड़ सकता है। बसपा की मौजूदगी यहां दोनों दलों का खेल बिगाड़ती है।
*भाजपा-कांग्रेस को फायदा, नुकसान भी कम नहीं*
भाजपा की संध्या राय ने 2019 के चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की थी। उन्होंने कांग्रेस के देवाशीष को लगभग दो लाख वोटों के अंतर से हराया था। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी भाजपा के पक्ष में माहौल है। 2019 में पाक अधिकृत कश्मीर में एयर स्ट्राइक के कारण राष्ट्रीयता बड़ा मुद्दा था जबकि इस बार भाजपा अयोध्या में राम मंदिर और कश्मीर में धारा 370 को भुनाने की तैयारी में है। पिछली बार भाजपा ने डॉ भागीरथ प्रसाद का टिकट काट कर संध्या राय को टिकट दिया था। पहले वे विधायक थीं। पार्टी ने इस बार फिर उन पर भरोसा किया है। प्रत्याशी घोषित होने के बाद उनका लोगों से बात करते हुए एक वीडियाे वायरल हो चुका है। इसमें लोग उन पर निष्क्रियता और क्षेत्र के लिए कुछ न करने का आरोप लगा रहे हैं। प्रत्याशी की यह स्थिति चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने पिछले प्रत्याशी देवाशीष की जगह विधायक फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है। बरैया एक समय बसपा के सर्वेसर्वा हुआ करते थे, अब कांग्रेस में हैं। इस नाते दलितों में उनकी अच्छी पकड़ है। भांडेर से वे लगभग 30 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते हैं, लेकिन अपने कई बयानों के कारण वे सामान्य वर्ग की आंखों को खटकते हैं। कांग्रेस को चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
*भिंड और दतिया जिले को मिलाकर बनी सीट*
– भिंड लोकसभा सीट अनुसूचित जाित वर्ग के लिए आरक्षित है। इसके अंतर्गत भिंड जिले की पांच और दतिया जिले की तीन सीटें आती हैं। भिंड जिले की सीटों में अटेर, भिंड, लहार, मेहगांव, गोहद और दतिया जिले की सेवढ़ा, भाण्डेर तथा दतिया शामिल हैं। वर्ष 2008 से पहले तक भिंड लोकसभा सीट सामान्य थी लेकिन इसके बाद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। जब सीट सामान्य थी तब 1996 से 2004 तक लगातार डॉ राम लखन सिंह भाजपा से सांसद रहे हैं। 1991 में भी भिंड से योगानंद सरस्वती जीते थे। आरक्षित होने के बाद 2009 में अशोक अर्गल, 2014 में डॉ भागीरथ प्रसाद और 2019 में भाजपा की संध्या राय चुनाव जीते हैं। संध्या को एक बार फिर मौका मिला है। 1989 से लगातार यहां भाजपा ही काबिज है।
– *विधानसभा चुनाव में मिलीं 4-4 सीटें*
– विधानसभा चुनाव के लिहाज से भिंड लोकसभा क्षेत्र में भाजपा- कांग्रेस की ताकत लगभग बराबर है। दोनों दलों ने क्षेत्र की चार-चार सीटें जीती हैं। हालांकि माहौल कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा था लेकिन पार्टी के दो दिग्गज चौधरी राकेश सिंह भिंड और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह लहार से चुनाव हार गए। इस चुनाव में भाजपा के एक दिग्गज नरोत्तम मिश्रा को दतिया में पराजय का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चार सीटें भिंड, लहार, मेहगांव और सेवढ़ा जीतीं जबकि कांग्रेस ने अटेर, गोहद, भांडेर और दतिया में कब्जा किया।
*भाजपा- कांग्रेस के अपने-अपने मुद्दे*
– लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के अपने-अपने मुद्दे हैं। भाजपा का मुख्य मुद्दा अयोध्या में राम मंदिर और कश्मीर से धारा 370 हटाना है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा पार्टी की सबसे बड़ी ताकत है। मोदी देश भर में दौरा कर विकास कार्यों के लोकार्पण और भूमिपूजन कर रहे हैं। अर्थात पार्टी मोदी लहर पर सवार है। दूसरी तरफ कांग्रेस हर वर्ग को न्याय की बात कर रही है। जांच एजेंसियों का दुरुपयोग पार्टी का बड़ा मुद्दा है। दो मुख्यमंत्रियों पहले हेमंत सोरेन और अब अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से कांग्रेस के इस आरोप को ताकत मिली है। राहुल गांधी की न्याय यात्रा से भी पार्टी को फायदे की उम्मीद है।