सर्वस्व त्याग और सर्वस्व विजय के प्रतीक भगवान महावीर…

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सर्वस्व त्याग और सर्वस्व विजय के प्रतीक भगवान महावीर…

आज 3 अप्रैल 2023 को भगवान महावीर की जयंती है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था। इसी दिन उनकी जयंती का उत्सव जैन धर्म के अनुयायी मनाते हैं। भगवान महावीर ने राजघराने और परिवार सहित सर्वस्व त्याग कर तप का मार्ग चुना था। बारह वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्होंने इंद्रियों को जीत कर सर्वस्व विजय हासिल की थी। सर्वस्व त्याग और सर्वस्व विजय पाने वाले महायोद्धा ही भगवान महावीर हैं। और भगवान महावीर ने जो पांच सिद्धांत दिए, उनका पालन यदि कोई भी पूरी तरह से करने में सफल हो जाए तो इस बात में कोई संशय नहीं है कि वह व्यक्ति भी सर्वस्व विजय पा सकता है।
भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बिहार के कुंडलपुर के राजघराने में हुआ था। 30 वर्ष की युवा आयु में उन्होंने राजसी ठाट-बाट को त्यागकर सन्यास को अपना संसार बना लिया था और अंत तक इसी मार्ग पर चलते हुए मनुष्य को सद्मार्ग दिखाने का काम किया था। वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ जन्मे बालक का नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में उनके वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है। इन सब नामों के साथ कोई कथा जुडी है। जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था। इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ हुआ था और प्रियदर्शिनी उनकी बेटी थी, जिसका राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ था। भगवान महावीर ने मनुष्य के उत्थान के लिए पांच प्रमुख सिद्धांतो को बताया था, जिन्हें पंचशील सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। वह सिद्धांत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। सत्य और अहिंसा मनुष्य का पहला कर्तव्य है। वहीं अस्तेय यानि चोरी नहीं करने से आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अपरिग्रह अर्थात विषय या वस्तु के प्रति लगाव न रखने से व्यक्ति सांसारिक मोह को त्यागकर अध्यात्म के मार्ग पर निरंतर चलता रहता है और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर आसानी से नियन्त्रण प्राप्त कर लेता है।
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। आज इनका अभाव समाज में बहुतायत से देखा जाता है और यही समाज में दु:खों का मूल कारण है। भगवान महावीर का चिंतन और उपदेश ही सभी धर्मग्रंथों का सार है। भगवान महावीर के सिद्धांत संपूर्ण मानव समाज के लिए हैं। पर चिंता की बात यह है कि मानव इनसे दूर भाग रहा है। भगवान महावीर ने राजपाठ त्यागा था और आज मनुष्य बहुतायत में राजा बनने को आतुर है। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार जैसे शब्दों से कोसों दूर भाग रहा है। और धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा जैसे शब्द अंतर्मन से दूर और बाहरी दिखावे के स्रोत बन गए हैं। यही वजह वर्तमान में विश्व में अशांति की मूल वजह है। तो आइए भगवान महावीर की राह पर आगे बढ़ने का संकल्प लें, तब ही लोककल्याण की कल्पना चरितार्थ हो पाएगी।सर्वस्व त्याग और सर्वस्व विजय के प्रतीक भगवान महावीर को शत शत नमन…।