
Lumpy Virus Impact: बीमार मवेशियों से फीका पड़ा Govardhan उत्सव
राजेश जयंत✒️
ALIRAJPUR: जनजातीय बहुल अलीराजपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों मवेशियों की बिगड़ती तबीयत ने पशुपालकों को चिंता में डाल दिया है। मवेशियों पैरों में सूजन, घाव, फफोले और शरीर पर गुमड़े जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं, कई पशुओं की जान जा चुकी है। यह संक्रमण झुंड दर झुंड मवेशियों को चपेट में ले रहा है, जो ग्रामीण आजीविका को तो प्रभावित कर ही रहा है, साथ ही इस बीमारी ने गोवर्धन और गोहरी पूजा जैसे पारंपरिक पर्वों का रंग भी फीका कर दिया है। पशुपालक गाय-बैल को सजाकर, नहलाकर और टीका लगाकर उत्सव के रंग में सराबोर होते है, किंतु इस बार कई गांवों में पूजा-अर्चना सीमित रह गई। जिले के उदयगढ़ क्षेत्र में मवेशियों की बीमारी के चलते गाय गोहरी गोवर्धन पूजा उत्सव प्रभावित हुआ है। जिले के अन्य अंचल से भी ऐसी खबरें मिली है।

ग्रामीणों में भ्रम और चिंता का माहौल
उदयगढ़ अंचल के खंडाला, जामली बड़ी, कानाकाकड़ और बयड़ा खेड़ा जैसे गांवों से लगातार पशुओं की बीमारी की खबरें आ रही हैं।
“खंडाला गांव” में महेश कनेश ने बताया, “मेरी एक गाय लंपी वायरस से मर गई। उसके शरीर पर बड़े-बड़े गुमड़े उभर आए थे। डॉक्टर को बुलाया, लेकिन बचा नहीं पाए। अब बैलों में भी लक्षण दिख रहे हैं, जिनका टीकाकरण कराया गया है। “इसी गांव के नानू देवड़ा और प्रकाश चौहान के पशु भी संक्रमित हैं। उन्होंने कहा, “इलाज चल रहा है, लेकिन त्योहार मनाने का उत्साह ही नहीं बचा।”
“जांबूखेड़ा बड़वा फलिया” के करणसिंह जमरा ने शिकायत की, “हमारे बैल खाना-पीना छोड़ चुके हैं, शरीर पर गांठें पड़ गई हैं। मेडिकल से गोलियां लाकर दे रहे हैं।” कई ग्रामीणों ने माना कि वे अभी तक पशु चिकित्सक से संपर्क नहीं कर पाए।
“जामली बड़ी” में मेहता पिता मुकाम का एक वर्षीय बछड़ा मर चुका है, जबकि भंगड़ा पिता धनसिंह अजनार की गाय बीमार है। यहां कई लोग इसे “माताजी का प्रकोप” मानकर चिकित्सकीय इलाज के बजाय पूजा-पाठ और घरेलू नुस्खों पर भरोसा कर रहे हैं।
“कानाकाकड़” के सुमरसिंह रावत और “बयड़ा खेड़ा धपाड़ा फलिया” के जितिया बुधिया अजनार ने बताया, “हमारी दो गायें प्रभावित हैं, इलाज जारी है। लेकिन देवी का क्रोध समझकर कई ग्रामीण वैज्ञानिक उपचार से कतरा रहे हैं।” नतीजा? इन गांवों में गोहरी पर्व की धूम नहीं हुई्।
*बीमारी का रूप और फैलाव के कारण*
पशु चिकित्सक डॉ. राजेंद्र डामोर के मुताबिक लक्षण मुख्यतः खुरपका-मुंहपका (FMD) और लंपी स्किन डिजीज से मिलते जुलते हैं।
“खुरपका-मुंहपका”: खुरों और मुंह के आसपास फफोले, चलने-फिरने में दिक्कत।
“लंपी वायरस”: शरीर पर गांठें, सूजन, घाव, बुखार और कमजोरी।
“कारण”: बरसात की नमी, कीटाणु संक्रमण (मच्छर-मक्खियां) और संक्रमित पशुओं के संपर्क से तेजी से फैलाव।
**उपचार और रोकथाम के उपाय**
डॉ. डामोर ने सलाह दी:
-संक्रमित पशुओं को झुंड से अलग रखें, साफ-सूखी जगह पर रखें।
-पैरों की सूजन को पोटेशियम परमैंगनेट या फिनाइल वाले पानी से धोएं।
-घावों पर एंटीसेप्टिक मरहम और डॉक्टर की सलाह से एंटीबायोटिक दें।
-पशुओं को हरा चारा व पानी उपलब्ध कराएं, ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बने।
**रोकथाम के मुख्य कदम**
1. नियमित टीकाकरण अनिवार्य करें।
2. बीमार पशु को तत्काल अलग करें।
3. गोठान की सफाई रखें, कीटनाशक छिड़कें।
4. मच्छर-मक्खियों से बचाव के लिए धुआं या कीटरोधी द्रव्य इस्तेमाल करें।
**पर्वों पर गहरा असर: फीकी गोवर्धन-गोहरी पूजा**
जनजातीय संस्कृति में गोहरी पर्व (गोवर्धन पूजा) का खास स्थान है- पशुओं को नहलाना, सिंगों पर रंग चढ़ाना, मेहंदी लगाना, माथे पर टीका और गांव की परिक्रमा। लेकिन इस बार बीमारी ने सब बदल दिया। कई पशुपालकों ने पशुओं को सजाने से परहेज किया। बुजुर्गों का कहना, “बीमार मवेशी को रंगना ठीक नहीं। पहले इलाज, फिर पूजा।”

**जागरूकता की सख्त जरूरत**
यह बीमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रही है और सदियों की परंपराओं को प्रभावित कर रही। विशेषज्ञों का कहना है कि गांवों में स्वास्थ्य जागरूकता और टीकाकरण ड्राइव तेज करने होंगे, ताकि भविष्य में गोवर्धन-गोहरी जैसे पर्व पूरे उत्साह से मनाए जा सकें।
“चिकित्सक ने कहा-
“कुछ गांवों में पैरों में सूजन-घाव के लक्षण है पाए गए हैं। विभाग की टीमें निगरानी कर रही हैं। ग्रामीणों से अपील: लापरवाही न बरतें, समय पर इलाज और टीकाकरण कराएं।”
-डॉ. राजेंद्र डामोर, पशु चिकित्सा अधिकारी




