माल ए मुफ्त, दिल बेरहम (Maal e free dil merciless)

993

माल ए मुफ्त, दिल बेरहम (Maal e free dil merciless);

मुल्क में बेरोजगारी नहीं, मुफ्तखोरी बढ़ रही है | मुफ्त का माल हो तो हर कोई बेरहमी पर आमादा हो जाता है | लूटने के लिए भी और लुटाने के लिए भी | फिलहाल लूटने वाले तो मजे में लूट रहे हैं, लेकिन लुटाने वाली लुटेरी सरकार से मुल्क की सबसे बड़ी अदालत ने इस मामले में हलफनामा माँगा है | मुल्क में जैसे माल मुफ्त में देने और लेने की रिवायत है उसी तरह हलफनामा मांगने और देने की रिवायत है |

लोकतंत्र में ये लेन-देन आज का नहीं है | सरकारी खजाने को अपना बताकर जनता यानि मतदाता को मुफ्त में बांटने का इल्म दरअसल कांग्रेस का ईजाद है | कांग्रेस ने मुल्क में लम्बे वक्त तक राज ही नहीं किया बल्कि उनके आविष्कार भी किये ,मुफ्तखोरी भी इन्हीं में से एक है | सरकार जनता को मुफ्त में देती है और जनता लेती है | मुफ्त के माल के एवज में जनता को अपना कीमती वोट मुफ्त में देना होता है |’ जनादेश ‘ के विनिमय का ये नायाब तरीका हर राजनीतिक दल को मुफीद लगता है ,लेकिन हमारे,आपके जैसे कुछ सिरफिरे लोगों को ये मुफ्तखोरी रास नहीं आती |

मुझे लगता है कि मुफ्तखोरी लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है | मुफ्तखोरी एक सामंती सलीका भी है | सामंती क्या मुगलिया और ब्रितानी भी कह सकते हैं आप | सिंहासन पर जो बैठता है वो रियाया पर अपना खजाना लुटाता है | लूटने से पहले लुटाने की जरूरत पड़ती ही है | एक मंजे-मँजाये वकील अश्वनी उपाध्याय ने मुफ्तखोरी का मामला मुल्क के सबसे बड़े इजलास के सामने रखते हुए दलील दी और मांग की कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे वादे नहीं किए जाए, जिसमें चुनाव जीतने के बाद जनता को मुफ्त सुविधा या चीजें बांटने की बात कही जाती है |

मुफ्तखोरी हर सियासी पार्टी की जरूरत है .सब जानते हैं कि ‘ मुफ्त का चंदन हो तो नंदन उसे ज्यादा ही घिसता है | ‘माल ए मुफ्त हो तो ,दिल बेरहम ‘हो ही जाता है | देने में भी और लेने में भी | गरीब हो या अमीर सबको मुफ्तखोरी अच्छी लगती है | इसी तरह सरकार चाहे किसी दल की हो उसे मुफ्त में बांटना पुण्य कार्य लगता है | इस मुफ्तखोरी पर किसी एक दल का पेटेंट नहीं है | कांग्रेस के बाद ढोल बजाकर सत्ता में आयी भाजपा हो या अन्ना हजारे के आंदोलन के गर्भ से निकली आप | वामपंथी हों या दक्षिण पंथी,समाजवादी हों या जातिवादी बसपा सपा या जदयू,या बीजद ,सबको मुफ्त का देने और लेने में सुखानुभूति होती है |

मामला जब बड़ी इजलास में गया तो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन वी रमना ने कहा क‍ि यह बहुत ही संजीदा मसला है | यह वोटर को घूस देने जैसा है | जब मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार के वकील के एम नटराज से उनकी राय मांगी तो उन्होंने कहा क‍ि ये चुनाव आयोग को तय करना है | इसमें केंद्र सरकार का कोई दखल नहीं है | लेकिन जस्टिस रमना ने इस बात पर नाराज़गी जताई और कहा क‍ि केंद्र सरकार इससे अपने आपको अलग नहीं कर सकती | अदालत ने फिर केंद्र सरकार को एक हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष साफ करने को कहा है | अदालत जानती है कि केंद्रीय चुनाव आयोग केंचुआ बन चुका है,उसके बस का कुछ नहीं है |

अदालत का काम था सो उसने कर दिया |अब सरकार को अपना काम करना है |सरकार को हलफनामा देना है सो वो दे देगी |जब मुफ्त में राशन,बिजली,बस और रेल यात्रा और न जाने क्या-क्या दिया जा सकता है तो हलफनामा देना कौन सी बड़ी बात है ? सरकार के पास हलफ उठाने के लिए संविधान है ,सरकारें इसी संविधान का हलफ उठातीं हैं | क्योंकि हलफ उठाने की रिवायत है और फिर उसे भूल जाती हैं | ‘ सबका साथ,सबका विकास ‘ का हलफ ,’अच्छे दिन’ लाने लाने का हलफ सरकार ने उठाया कि नहीं ? कांग्रेस ने ‘गरीबी हटाने’ का हलफ उठाया था कि नहीं ? इसलिए मुफ्तखोरी पर हलफ उठाना और अदालत में देना कोई मुश्किल काम नहीं है .मामला 80 करोड़ से ज्यादा आबादी से जुड़ा है |


Read More… गडकरी का मन बेचैन क्यों है? 


मुफ्तखोरी के मसले पर कोई वकील भी खुलकर बोलने को राजी नहीं होता | हाल ही में कांग्रेस छोड़ अर्ध समाजवादी हुए वकील कपिल सिब्बल तक इस मामले पर हकलाते नजर आ रहे हैं | जस्टिस रमना ने कोर्ट में मौजूद वकील और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल से कहा कि वो भी अपनी अनुभव से इस मामले में अपनी राय दे सकते है | तो सिब्बल ने कहा क‍ि इसमें केंद्र सरकार का बहुत रोल नहीं है | ये काम वित्त आयोग को देखना चाहिए | सिब्बल के मुताबिक, वित्त आयोग एक निष्पक्ष एजेंसी है जो राज्यों को फंड देती है | ऐसे में वित्त आयोग राज्य सरकारों को फंड देने से पहले ये कह सकती है क‍ि आप को मुफ्त सुविधा देने की लिए फंड आवंटित नहीं किया जाएगा | सिब्बल ने कहा क‍ि सीधे सरकारों पर इसे नियंत्रित करने की जिम्मेदारी डालने से कोई हल नहीं निकलेगा |

मुफ्तखोरी के इस मुद्दे पर हमारी अपनी राय ये है कि इस पर पूरी तरह रोक लगना चाहिए | सरकार मुल्क के बूढ़ों को रेल टिकट में मिलें वाली आधी मुफ्तखोरी को पूरी तरह बंद कर ही चुकी है ,लेकिन उसे पार्षदों से लेकर विधायकों और सांसदों की मुफ्तखोरी पर भी रोक लगाना होगी | मुफ्त का खाना बंद करना होगा | लोकतंत्र में सरकारों का दायित्व लोककल्याण का है ,मुफ्त में खाना देने का नहीं | सबसे टैक्स लो और सबको सब सुविधाएं दो | खाना दो,मकान दो ,रोजगार दो ,सामाजिक सुरक्षा दो ,शिक्षा दो,स्वास्थ्य दो |न मुफ्त में कुछ दो और न मुफ्त में वोट लो | मुफ्त में देना ,लेना घूस के समान है | इसे रोके बिना बात नहीं बनने वाली |हमारे मध्य्प्रदेश में तो मुफ्त का माल दे-देकर मुख्यमंत्री जगत मामा बन चुके हैं |

मुफ्तखोरी से चिंतित पंडित अश्विनी उपाध्याय ने कहा क‍ि हर राज्य पर लाखों का कर्जा है | जैसे पंजाब पर तीन लाख करोड़ रुपये, यूपी पर छह लाख करोड़ और पूरे देश पर 70 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है | ऐसे में अगर सरकार मुफ्त सुविधा देती है तो ये कर्ज और बढ़ जाएगा | अश्विनी उपाध्याय ने बताया क‍ि श्रीलंका में भी इसी तरह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हुई है और भारत भी उसी रास्ते पर जा रहा है |

पंडित जी की दलीलें ऐसी हैं कि बड़ी इजलास उनकी याचिका को नूपुर शर्मा की याचिका कि तरह एक झटके में खारिज नहीं कर पायी | इजलास में इसे अगले हफ्ते सुना जाएगा | तब तक सरकार का हलफनामा भी सामने होगा | देखते हैं कि सरकार क्या कहती है ,इस मुफ्तखोरी को लेकर ?