मध्य प्रदेश काडर… एक दृष्टिक्षेप.

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मध्य प्रदेश काडर… एक दृष्टिक्षेप.
कुछ दिन पूर्व केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस जाने वाले एक अन्य काडर के अधिकारी मुझसे मिलने के लिए आये थे । बातों-बातों में मुझे ऐसा आभास हुआ कि अपने काडर वापिस जाते समय, राज्य के विभिन्न दबावों के सम्बन्ध मे व अधिकारियों के संभवित व्यवहार के सम्बन्ध मे उनके मन में काफी आशंकाएँ थी।

उनकी इन आशंकाओं को देखते हुए मेरे मन में विचार आया कि प्रतिनियुक्ति से मध्य प्रदेश काडर वापिस जाने के समय मेरे काडर के अधिकारियों के मन मे क्या विचार होगें ? क्या वह इसी तरह से आशंकित होगें ? निश्चित रूप से यह उनके स्वयं के अनुभव पर निर्भर होगा परन्तु किसी भी राज्य के सांस्कृतिक ढ़ाचें के आधार पर व उसकी संस्कृति मे विकसित हुए प्रशासनिक प्रक्रियाओं के आधार पर कुछ सूत्र सभी अधिकारियों के अनुभवों में समान रूप से देखे जा सकते हैं ।

जैसे-जैसे समय बितता है विगत काल की हर स्मृति सुखद लगती है । अतीत के अत्याधिक तनाव के अनुभव के क्षण जैसे किसी पर्दें के पीछे चले जाते है । मैं जब स्वयं पीछे मुड़कर देखता हूॅं तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों के स्नेहपूर्ण व्यवहार तथा उनके निष्पक्ष निर्णय आदि के बारे मे कई सुखद स्मृतियां मेरे मन मे अभी भी ताजा हैं ।

परन्तु ऐसी स्मृतियां व ऐसे अनुभव तो निश्चित रूप से हर राज्य में अधिकारियों के पास होती ही हैं । अतः केवल इस आधार पर किसी काडर का मूल्यांकन नहीं होता है ।

कोई भी अधिकारी विशेषकर जो उस राज्य का निवासी नहीं हैं वह उस काडर मे नियुक्ति होने के पश्चात् दो पहलू उसके ऊपर निरंतर प्रभाव डालते हैं और उन्हीं के आधार पर संभवत् उसकी धारणायें बन जाती है। एक पहलू है कि यहाॅं का जनजीवन तथा विभिन्न महत्वूपर्ण अंग जैसे कि न्यायिक प्रणाली, प्रशासनिक व्यवस्था, मीडिया व आम जनता से उस अधिकारी को क्या अनुभव प्राप्त होता है । क्या इन अनुभवों से वह आत्मविश्वास की तरफ बढ़ता है या आशंकाओं से ग्रसित होता हैं ?

बाहर के राज्य से आने वाले अधिकारी के नाते मैंने यह अनुभव किया कि मध्य प्रदेश की संस्कृति ही बाहर से आने वाले अधिकारियों के प्रति अत्यंन्त सह्रदय व उसके अपने व्यक्तित्व को या स्वतंत्र विचारों को आदरपूर्वक स्थान देने वाली हैं । ‘‘हमारी संस्कृति को ही सर्वोत्तम मानों नहीं तो मध्य प्रदेश के विरोधी माने जाओगें‘‘ इस प्रकार के चेतावनीनुमा रवैये से यहां कि संस्कृति अधिकारियों के ऊपर अधिरोपित अथवा आक्रमित नहीं होती है।

मध्य प्रदेश की जनता व यहां विकसित संस्कृति बाहर से आये अधिकारियों की संस्कृति का उचित सम्मान रखते हुए सौहार्द व अपनत्व के व्यवहार से अधिकारियों व उनके परिजनों को अपने अंदर सम्मलित कर लेती हैं । मेरे शुरूआत के एस.डी.ओ.पी. जावरा जिसे अभी 30 से भी ज्यादा साल हो गये हैं वहां कि पदस्थापना के दौरान के रिश्ते आज तक जागृत है व उतने ही मजबूत हैं व करीब-करीब सभी जिलों में बालाघाट, बैतूल, मंदसौर व विशेषकर

इन्दौर में भी यही अनुभव रहें हैं। इस प्रकार की आत्मीयता का यहाॅं के अन्य अधिकारी भी निरंतर अनुभव करते हैं तथा इसकी वजह से अत्यंत खुले दिल से कार्य कर पाते हैं।

सम्भवत्
यही कारण है कि बाहर से आये हुए कई अधिकारी मध्य प्रदेश को सेवा निवृति के पश्चात् निवास भी बना लेते हैं ।
वैसे देखा जाए तो मैं स्वयं करीब 10 से भी ज्यादा वर्षों से केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर रह चुका हूॅं इसलिए कोई मुझसे यह प्रश्न कर सकता है कि काडर के बारे में इतना भावूक अगर मैं हूूॅं या मेरे मन में इतना प्रेम है तो स्वयं प्रतिनियुक्ति में क्यों रहा ?

इस सम्बन्ध में मैं तो
यह कहूॅंगा कि मेरे विचार में प्रतिनियुक्ति पर जाना अपने आप में एक आवश्यक बदलाव हैं क्योंकि उससें आपको विभिन्न संगठनों में एक दूसरे से पूर्णत् भिन्न कार्य का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त होता है व आपकी व्यवसायिक क्षमताओं में व आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है । और यह भी है कि मध्य प्रदेश से दूर रहने से जहां एक ओर मुझे विभिन्न संगठनों का अनुभव प्राप्त हुआ वही दूसरी ओर कुछ समय दूर रहने से मैं एक अलिप्त नज़रिये से मेरे काडर को देख सका और अन्य राज्यों के अधिकारियों के अनुभव के आधार पर तुलनात्मक आंकलन भी कर सका । यही कारण है कि इस आंकलन के पश्चात् यहां की संस्कृति के व प्रशासनिक प्रक्रियाओं के व जन जीवन के उपरोक्त पहलू मुझे ओर भी स्पष्ट रूप से प्रभावित व आकर्षित कर गयें ।

पुलिस का कार्य करते-करते कोई भी रिजल्ट ओरिएंटेड अधिकारी या उसके अधिनस्थ अधिकारियों के द्वारा कार्य के प्रवाह मे ही अचानक कुछ त्रुटि अथवा समस्या निर्मित हो जाती है, यह किसी भी जमीनी स्तर पर कार्य का स्वाभाविक अभिन्न पहलू है । इस संबंध में यहाॅं की संस्कृति का बहुत ज्यादा आक्रामक न होकर दूसरो का सम्मान कर अपनाने वाला यह स्वभाव अन्य सामाजिक प्रक्रियाओं में भी प्रतिबिंबित होता है और इसीलिए अधिकारियों की त्रुटियों को या गलतियों को भी यहाॅं के लोग माफ करने की या सहानुभूति के साथ विचार करते हैं बशर्तें की उस अधिकारी का कार्य निष्पक्ष, पारदर्शी व किसी भी दुर्भावना के बिना हो तथा जमीनी स्तर पर निर्णय देने वाला हो । मेरे यहाॅं के सब डिविजन अथवा जिला व रेंज के स्तर पर कार्य के दौरान तनाव के क्षण आये जिससे बहुत ही ज्यादा जटिल स्थितियां उत्पन्न हुई और जब आप ऐसी समस्याओं से ग्रस्त हो तब आपको यहा के लोगों को मदद के लिए अथवा कोई रास्ता सुझाने के लिए निवेदन नहीं करना पड़ता है या मदद करने वाले लोगों की खोज नहीं करनी पड़ती है । यहाॅं की जनता के विभिन्न स्तरों में से कई व्यक्ति स्वयं ऐसे अधिकारी की सहायता करतें हैं व कई बार तो इसका उल्लेख भी नहीं करते हैं । अतः अधिकारी के कार्य प्रणाली को देखते हुए उसकी सहायता करने की यहाॅं की संस्कृति का स्वभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण बन जाता है ।

यहाॅं की प्रशासनिक व्यवस्था मे तो इसका अनुभव आता ही हैं परन्तु यहां की न्यायिक व्यवस्था मे, जिला स्तर के न्यायालयों मे तथा उच्च न्यायालयों के स्तर पर भी मुझे यह अनुभव आया है कि कठिन समस्याओं से ग्रसित अधिकारी अगर कार्य प्रणाली से प्रमाणिक है तथा किसी दुर्भावना के बगैर कार्य करते हुए कोई त्रुटि हुई हो तो यहाॅं की न्यायिक व्यवस्था भी उसको स्वयं सहा-अनुभूति के साथ विचार कर सहायता की दृष्टि रखती है ।

यहाॅं की मीडिया, विशेषकर जब मैं जमीनी स्तर पर कार्यरत था तब प्रिंट मीडिया बहुत ज्यादा प्रभावी थी तब भी मैनें यह अनुभव किया कि प्रैस के व मीडिया के दिग्गज पत्रकार भी इसी भावना को रखते हुए सज्जनता से कार्य करने वाले अधिकारियों को हमेशा अपनी ओर से मदद का रवैया रखते हैं । मैं प्रैस से आये ऐसे कई अनुभवों का उल्लेख कर सकता हूॅं जिसमे केवल हमारे उद्देश्य की पवित्रता को ध्यान मे रखते हुए प्रैस के सदस्यों ने हमको आगे आकर अपना सहयोग दिया हो ।

इस प्रकार एक सुलझे हुए रवैये व परिपक्व दृष्टिकोण यहां के स्वस्थ स्वभाव का एक गुण है और यही कारण है कि राजनीतिक बदलाव के बावजूद यहाॅं के अधिकारियों में जमीन आसमान का पदस्थापनाओं में परिवर्तन नहीं हुआ है जो पारदर्शी अधिकारी 1997-98 में जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे थे । वे सम्भवत् आज भी अपने-अपने शाखाओं में अथवा विभागों में उतने ही महत्वूपर्ण जिम्मेदारियों के पद पर स्थापित हैं और दूर से देखते वक्त या अन्य कुछ काडर की तुलना करते वक्त तुलनात्मक रूप से व्यवसायिक कर्मठता को दिये जाने वाले महत्व को इंगित करता हैं ।
निश्चित रूप से किसी भी राज्य की सामान्य संस्कृति व व्यवहार का तरीका वहाॅं के पुलिस संगठन की संस्कृति को भी तथा अधिकारियों के व्यवहार को भी प्रभावित करता है। इस काडर का अत्यन्त गौरवशाली इतिहास है ।

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो कर्नल स्लीमन द्वारा ठगी का प्रभावी रूप से निर्मूलन करने के पश्चात् अभी पिछले कुछ दशकों में डकैती तथा वामपंथी उग्रवाद व सांप्रदायिक उन्माद तथा महानगरों के पुलिसिंग के विभिन्न पहलू ऐसे विभिन्न स्तरों पर मध्य प्रदेश का कार्य व ठोस योगदान प्रभावी व अन्य के लिए मार्गदर्शक रहा है । स्व. श्री के.एफ. रूस्तमजी जैसे किवंदती बन चुके अधिकारियों ने अपने सेवा का महत्वपूर्ण समय यहाॅं बिताया है । श्री पी.डी. मालवीय व श्री सुभाषचंद्र त्रिपाठी जैसे अधिकारियों ने यहाॅं के पुलिस मुखिया के पद की शान बढ़ाई है । ऐसी इस काडर की अत्यंत समृद्व व अभिवादनास्पद अधिकारियों की परंपरा है । मेरे करियर में भी ऐसे कई अधिकारियों के साथ कार्य करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ । स्वर्गीय श्री ए.एन. सिंह अपने आप में एक बेहतरीन पुलिस अधिकारी होने के साथ-साथ एक विचारक तथा अन्य अधिकारियों को प्रेरणा देने वाले अधिकारी व व्यक्ति थें । श्री अनिल कुमार धस्माना, श्री जी.एस.माथूर, श्री एस.के. दास, श्री एन.के. त्रिपाठी, श्री नंदन दूबे, श्री सुरेंन्द्र सिंह, श्री पी.एल. पाडेय, श्री सरबजित सिंह, डाॅ. श्रीमती आशा माथुर ऐसे कई अधिकारियों से मुझे निरंतर शक्ति व मार्गदर्शन मिला और इनके श्रेष्ठतम अधिकारी होने के कई उदाहरण मैं दे सकता हूॅं तथा यह भी कह सकता हूॅं कि दूसरों को समझने की या दूसरों के ऊपर अनावश्यक दबाव न डालने की व हर व्यक्ति के स्वभाव की स्वतंत्रता को सम्मानित करने वाली यहाॅं की संस्कृति का प्रभाव यहाॅं के अधिकारियों के व्यवहार में भी रहा है और यही कारण है कि आपसी व्यवसायिक मतभेद या असहमति होने के बावजूद तथा कई बार स्पष्ट विचार व्यक्त करने के बावजूद यहाॅं किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा सरल व निष्पक्ष रूप से कार्य करने वाले किसी अधिकारी को क्षति पहुचाने वाला कार्य नहीं किया हैं ‘‘यही असहमत होने के लिए सहमत होने की क्षमता‘‘ मेरे विचार मे यहाॅं के पुलिस संगठन की एक बहुत बड़ी शक्ति है जिसकी वजह से यहा बाहर से

आये अधिकारी अपने-अपने आत्मविश्वास को तथा अन्य क्षमताओं का विकास भय के बिना कर पायें हैं ।
यहाॅं मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि तनाव तथा कुछ आशंकाएँ किसी भी विभाग में रहेगी ही व पुलिस विभाग में तो निश्चित रूप से बहुत ज्यादा रहेंगी । इसीलिए जब मैं तनाव के बिना अथवा भय के बिना कहता हूॅं उसका अर्थ यह नहीं है कि यहां के पुलिस अधिकारियों का जीवन फूलों की पंखुड़ियों के चलने जैसा सुखद व समस्याओं के बिना रहा है। हम सब अपनी सेवा के दौरान अत्यन्त कठिन, तनावपूर्ण और कलिष्ट समस्याओं का निरन्तर अनुभव कर चुके हैं , लेकिन फिर भी इतने वर्षो के बाद जब मैं पीछे मूड़कर देखता हूॅं तो इन अनुभवों में भी मुझे यह दिखता है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने यहाॅं कनिष्ट अधिकारियों को खोखला करने का या अत्यधिक हानि पहॅुचाने का प्रयास नहीं किया है जो अपने आप में एक अत्यधिक शक्ति बन जाती है । मुझे लगता है कि दूसरों के रवैये या दृष्टिकोण को भी स्वीकार करने की क्षमता या ‘‘अहम् ब्रम्हास्मि’’ इस प्रकार के दृष्टिकोण का न होना यह इस काडर की एक मुख्य शक्ति है ।

मुझें मालूम है कि जो अनुभव या जिस प्रकार के अनुभवों का मैं वर्णन कर रहा हूॅं इनसे पूर्णतयः भिन्न अनुभव भी अन्य किसी को आये होंगें तथा यह बात भी सहीं है कि मैं जिन अनुभवों का वर्णन कर रहा हूॅं वह 2006 के पूर्व के हैं । संभव है कि कुछ बदलाव उसके पश्चात् आये होंगें । परन्तु फिर भी मेरा मानना है कि ऐसे संभवित बदलावों के बावजूद भी किसी व्यवस्था में जमीन-आसमान का फर्क नज़र नहीं आता होगा तथा आज भी ऐसी ही परिपक्व व्यवस्था का अनुभव यहाॅं के अधिकारी करते होंगें ।

आज जब मैं 33 साल से भी ज्यादा कार्यकाल के पश्चात् पीछे मुड़कर देखता हूॅं तो मेरे मन में केवल कृतज्ञ भावना है । मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति को जो इस राज्य के बाहर का हो, उसे पूर्णतः विकसित होने का तथा आत्मविश्वास से कार्य करने का मौका मिला जो केवल यहाॅ की संस्कृति, परंपराओं तथा व्यवस्थाओं की परिपक्वता की वजह से ही मिला है और इसलिए सेवा निवृत होते हुए मैं कृतज्ञ भाव से मेरे राज्य को वंदन करता हूॅं ।