Shradh and in Mahabodhi temple? श्राद्ध और महाबोधि मंदिर में?

1790
Mahabodhi temple

Shradh and in Mahabodhi temple?

यात्रा में सहयात्रियों से बातें करना मुझे पसन्द है क्योंकि इससे अनेक दिलचस्प बातें पता चलती हैं ।कुछ बरस पहले जब मैं पितृमोक्ष अमावश्या पर “गया” जा रहा था तो कुछ ऐसी ही रोचक बातें हुईं । हवाई जहाज में मेरी बाजू वाली कुर्सी पर एक विदेशी अधेड़ भद्र महिला विराजित थीं “मार्गरिटा” ।

औपचारिक मुस्कान के आदान प्रदान के बाद उसने मुझसे पूछा कि क्या आप गया से ही हैं ? मैंने कहा नहीं जी , मैं तो पहली बार जा रहा हूँ । वो बोली मैं तो दसवीं बार जा रही हूँ लेकिन इस बार पता नहीं क्या बात है कि बड़ी मुश्किल से मुझे रहने की जगह मिल पायी है । मैंने आश्चर्य से पूछा दसवीं बार !

ऐसा क्या हैं यहाँ ? तो वो बोली मैं बौद्ध धर्मावलम्बी हूँ और ये तो हमारा सबसे बड़ा तीर्थ है | मैंने आगे पूछा आप कहाँ से हैं उसने कहा मेक्सिको से । मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ , क्योंकि मेक्सिको में भी बौद्ध धर्मावलम्बी हैं मुझे ये पता नहीं था | सामान्यतः बौद्ध धर्मावलम्बी उन स्थानों में जाते हैं जहाँ भगवान बुद्ध का कोई सम्बन्ध हो यानि लुंबनी ,कुशीनगर , सारनाथ और बोध-गया जहाँ वे सिद्धार्थ से बुद्ध हुए ।

Mahabodhi temple

मैंने मार्गरीटा को बताया की इन दिनों पितृपक्ष के चलने के कारण पुरे हिंदुस्तान से हिन्दू धर्मावलम्बी अपने पूर्वजों के श्राद्ध कर्म के लिए यहाँ आते हैं , इसलिए आपको रहने के स्थान ढूंढने में असुविधा हुई है , तो उसने हिन्दुओं के इस कर्मकांड के विवरण को ध्यानपूर्वक सुना और इस सलाह को भी गाँठ में बांधा कि भविष्य में गया आने पर पितृपक्ष के दिनों को ना चुनेगी ।

बोध गया , “गया” से कुछ दस किलोमीटर की दुरी पर है और एक नगर पंचायत बना दी गयी है , इस कारण गया शहर की तुलना में बोधगया ज्यादा साफ़ सुथरा स्थान है और चूँकि बौद्ध धर्मावलम्बियों का यह बड़ा पवित्र स्थल है इसलिए यहाँ विश्व के अनेक देशों के बौद्ध मठ व मंदिर हैं जिनमे श्रीलंका , कोरिया , जापान और बांग्लादेश आदि प्रमुख हैं ।

जापानियों की दाइजोक्यो संस्था के सौजन्य से सन 1989 में यहाँ 80 फीट ऊँची सुन्दर और विशाल बुद्ध प्रतिमा स्थापित की गई है जो अब धीमे धीमे एक आकर्षक पर्यटन स्थल में बदलती जा रही है ।

जब मैं शाम को इसे देखने गया तो जूते रखने के दौरान एक ग्रामीण दंपत्ति का वार्तालाप सुन बड़ी मुश्किल से हँसी रोक पाया । महिला अपने पति से पूछ रही थी कि ये कौन से भगवान हैं ? पति ने धीमे से उसे बताया ये कोई जापानी भगवान हैं ।

Mahabodhi temple

बोध गया में ही अशोक महान द्वारा निर्मित महाबोधि मंदिर है जो विश्व धरोहर में गिना जाता है । यह वही स्थल है जहाँ ज्ञान प्राप्त होने के बाद बुद्ध सात सप्ताह तक रहे थे | सम्राट अशोक ने ईशा पूर्व तीसरी शताब्दी में यहाँ स्तूप का निर्माण किया था , छटी शताब्दी में गुप्त राजाओं ने इस स्तूप पर मंदिर बना दिया और पाली राजाओं के समय यहाँ बुद्ध की मूर्ति भी स्थापित हो गयी।

महाबोधि मंदिर में वे पवित्र सात स्थल अलग अलग हैं जहाँ बुद्ध ने सारनाथ जाने के पूर्व सात सप्ताह गुजारे थे । प्रारम्भ से अंतिम क्रम अनुसार ये हैं “महाबोधि वृक्ष , अनिमिष लोकना कनकमण” ,रतनधार , अजपाला , मुकलिन्द झील , राज्यतना |

इनमें से दो स्थलों ने मुझे विशेष रूप से आकर्षित किया , प्रथम बोधि वृक्ष जहाँ बुद्ध को ज्ञान मिला , हालाँकि आज जो वृक्ष है वह श्रीलंका के अनुराधापुरम से लाये वृक्ष की टहनी से पल्ल्वित है जहाँ उसे अशोक की पुत्री संघमित्रा ही यहाँ से ले गयी थी , और दूसरा कनकमण जहाँ वे सातों दिन अहर्निश घूमते ही रहे ।

कहते हैं जब वे घूम रहे थे तो जहाँ पाँव रखते वहां कमल खिल जाते थे , प्रतीक स्वरुप उस स्थल पर प्रस्तर शिल्प के सुन्दर नमूने से सजे कमल रखे हैं |

Mahabodhi temple

गया में ही अति प्राचीन विष्णुपद मंदिर भी है , और हिंदुस्तान के अनेक मंदिरों की तरह इसका भी पुनुरुद्धार इंदौर की महारानी देवी अहिल्या ने सन 1787 में कराया था । फल्गु नदी ( जिसे नीरांजना भी कहते हैं ) के तट पर स्थित इस मंदिर और इसके प्रांगण में स्थापित वट वृक्ष के समीप ही लाखों लाख लोग सर मुंडाए अपने पूर्वजों के मोक्ष हेतु श्राद्ध और पिंडदान करते आप को दिख जायेंगे ।

लेकिन महाबोधि मंदिर में घूमते हुए जब मैंने देखा कि इस मंदिर के प्रांगण में भी मुकलिन्द झील के समीप ढेरों हिन्दू धर्मावलम्बी घुटमुंडे होकर बैठे पुरखों का तर्पण करते हुए श्राद्ध कर रहे हैं तो मैंने आश्चर्य में भर कर अपने गाइड से पूछा ये क्या है ? गाइड ने कहा ये श्राद्ध कर रहे हैं क्योंकि इन दोनों पितृ पक्ष चल रहा है ।

मैंने कहा भाई ये तो मैं जानता हूँ की ये श्राद्ध कर रहे हैं , पर यहाँ महाबोधि मंदिर में , ? गाइड ने कहा जी हाँ बुद्ध भी तो आखिर विष्णु के अवतारों में शामिल हैं । मैंने विस्मय से इस नज़ारे को देखा और मन ही मन इस विशाल ह्रदय संस्कृति को प्रणाम किया जो अपने परम प्रतिद्वंदियों को भी अपने में शामिल कर लेती है |