महाकाल लोक: शिव राज की महती उपलब्धि
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीब 16 साल के मुख्यमंत्रित्व काल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों का जब भी जिक्र आयेगा, तब नि:संदेह तौर पर उज्जैन में बने महाकाल लोक का दर्जा सबसे ऊपर रहेगा। यह भी कह सकते हैं कि शेष उल्लेखनीय काम एक तरफ और महाकाल लोक एक तरफ। पलड़ा फिर भी महाकाल लोक तरफ का भारी रहेगा। सीधे तौर पर इसे किसी विकास कार्य के साथ नहीं रख सकते, किंतु यह उनसे ऊपर रहेगा। चूंकि भारत में धार्मिक,आध्यात्मिक कामों की महत्ता निर्विवादित मानी जाती है और भारतीय जनता पार्टी के नीति निर्देशक सिद्धांतों में सनातनी मूल्यों की स्थापना और अविरत रखने को प्राथमिकता है। इसलिये महाकाल लोक का स्थान स्वमेव सर्वोपरि ही रहेगा। फिर परोक्ष रूप से इस परिसर के विकास से उज्जैन का विकास व समृद्धि भी होगी ही तो यह दोहरे लाभ और अवसर के मापदंडों पर भी खरा ही उतरेगा।इस नाते यह कहा जा सकता है कि यह एक काम शिवराज सिंह चौहान के समूचे कार्यकाल पर हमेशा भारी साबित होगा। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि एक अरसे से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बदले जाने की खबरों के बीच महाकाल लोक के लोकार्पण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद इस प्रकल्प से प्रभावित होकर भाजपा आलाकमान और बाबा महाकाल शिवराज पर कृपा बरसाते हुए उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का वरदान देते हैं या नहीं ?
वैसे तो इस प्रकल्प को किसी राजनीतिक शुभ-लाभ के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये। लेकिन, सच तो यही है कि आजकल ऐसा होता नहीं है। तो महाकाल लोक को भी समीक्षक,आलोचक और विपक्ष इस नजरिये से भी देखेगा ही । तो सबसे पहले यह जान लेते हैं कि महाकाल लोक की परिकल्पना कैसी है और इस समय इसका क्या महत्व है। यूं देखा जाये तो महाकाल लोक की परिकल्पना तो 2017 में कर ली गई थी, लेकिन वास्तविक कार्य प्रारंभ हो सका 2020 में। उधर काशी कॉरिडोर की आधारशिला 8 मार्च 2019 को रखी गई थी और 13 दिसंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शुभारंभ किया था्। ऐसा तो नहीं कह सकते कि शिवराज सिंह चौहान ने काशी कॉरिडोर को देखकर महाकाल लोक की परिकल्पना की, किंतु इतना जरूर है कि वे इसे देखकर उत्साह में जरूर आये होंगे और तय समय में इसे पूरा करने के लिये पूरी शक्ति झोंक दी। मूल रूप से ये दोनों ही प्रकल्प भारतीय जनता पार्टी की विषय सूची में रहे ही होंगे।
एक तरफ जहां काशी का प्रथम चरण 339 करोड़ रुपये का था् तो महाकाल लोक का पहला चरण 350 करोड़ का है। महाकाल लोक परियोजना की कुल लागत 750 करोड़ रुपये अनुमानित है। काशी का काम डेढ़ साल में पूरा हुआ तो महाकाल लोक का काम तीन बरस से अधिक समय में। वैसे तो 12 ज्योर्तिलिंग हैं और किसी की महत्ता दूसरे से कम नहीं। फिर भी पौराणिक संदर्भों,ऐतिहासिकता और हिंदू धर्म की मान्यताओं की बात करें तो काशी और महाकाल की लीला निराली है। काशी गंगा जैसी पवित्र-पावन नदी के किनारे तो महाकाल क्षिप्रा नदी के किनारे। काशी का महत्व मोक्ष से है तो महाकाल का महत्व सांसारिक क्रियाकलापों के शाश्वत तत्व ज्ञान से है। यूं तो पितरों के तर्पण के लिये गया के बाद महाकाल नगरी उज्जैन का ही क्रम आता है। फिर भी त्रिकालदर्शी महाकाल की यह नगरी महान राजा विक्रमादित्य की नगरी भी रहा है,जो न्याय,पराक्रम के प्रतीक माने जाते हैं। कृष्ण-सुदामा ने इसी नगरी में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की। कालगणना का प्रमुख केंद्र भी यही था,जहां से कर्क रेखा होकर जाती है। काल गणना में कर्क रेखा का खास महत्व है। ये उज्जैन में बने दो पौराणिककालीन सूर्य मंदिरों से होकर गुजरती है, जिन मंदिरों की स्थापना कृष्ण और अजुर्न द्वा्रा की जाना बताई जाती है। दुनिया की प्राचीनतम वैधशाला भी यहीं पर है। आदि काल से यहां प्रति 12 वर्ष में सिंहस्थ होने के भी पौराणिक प्रमाण मिलते रहे हैं।
इस तरह से महाकाल नगरी के महात्म्य के परिप्रेक्ष्य में यहां एक विशिष्ट परिसर का निर्माण बेहद तार्किक,सामयिक और सनातनी परंपरा.मूल्यों की प्रतिस्थापना के तौर पर देखा जाना चाहिये। लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा भी कि इसमें राजनीति भी की जाने से रोका नहीं जा सकता। इसी संदर्भ में यह कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और शिवराज सिंह चौहान महाकाल लोक के जरिये वर्ष 2023में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में इससे लाभ लेने का उपक्रम कर रहे हैं। इसमें कोई बुराई है भी नहीं । जब तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभा कर, प्रलोभन देकर, तात्कालिक फायदा पहुंचाकर अपने पक्ष में करने का अथक प्रया्स करते हैं तो भाजपा ने ऐसा तो कभी नहीं कहा कि वह कोई काम राजनीतिक फायदे के बिना नहीं करती।
इसके राजनीतिक फायदे मिले न मिले, आम जन को आत्मिक सुख अवश्य मिलेगा। यूं भी शिव उपासक और ज्योर्तिलिंग दर्शन के अभिलाषी महाकाल नगरी में आते ही हैं। ऐसे में जब वे अलौकिक सौंदर्य से परिपूर्ण नजारे देखेंगे तो शिवराज सरकार के प्रति कोटिश: कृतज्ञता ज्ञापित अवश्य करेंगे ही। इस परिसर के विकास से धार्मिक नगरी उज्जैन के पर्यटन का बड़ा केंद्र बनने का मार्ग भी प्रशस्त होगा । जिससे पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ेगी तो इससे यहां पर व्यापारिक गतिविधियां भी तेज होंगी, जो प्रकारारंतर से उज्जैन के विकास की गति को नये आयाम देगी। यह चक्र घूमता रहेगा और उज्जैन अधिक बड़े पर्यटन केंद्र और धार्मिक नगर के तौर प्रतिष्ठित होगा ही।
आप यदि गौर करें तो देश में बीते एक दशक में धार्मिक पर्यटन बेहद तेज गति से बढ़ा है। एक निम्न और मध्यम वर्गीय व्यक्ति अपने जीवनकाल में चार धाम की यात्रा और कुछेक ज्योतिर्लिंग के दर्शन की अभिलाषा अवश्य रखता है। वह अपनी आजीविका के जरूरी खर्च निकालकर जब भी मौका मिलता है, अकेले तो परिवार के साथ भी किसी धर्म स्थान की यात्रा पर जाना चाहता है। ऐसे में उज्जैन आने वालों की संख्या एक ही साल में दुगनी से अधिक हो सकती है। अब यह मध्यप्रदेश सरकार को सोचना है कि वह उस निम्न-मध्यम वर्ग के लिये उज्जैन में आवश्यक रैन बसेरे,सस्ते होटल,भोजनालयों,विश्राम गृहों की व्यवस्था भी करे। सिंहस्थ की वजह से यहां मध्यम व उच्च वर्ग के लिये समय-समय पर होटल,रेस्त्रां बनते रहते हैं। फिर इंदौर 50 मिलोमीटर की दूरी पर होने की वजह से वहां भी रुककर यहां आना-जाना कर लेते हैं।
मप्र सरकार जरूर यह प्रयास भी करेगी कि उज्जैन के साथ ही दूसरे ज्योर्तिलिंग औंकारेश्वर,होलकर महारानी अहिल्या देवी की राजधानी रहा महेश्वर,पुरातात्विक महत्व के नगर माण्डव और प्रदेश की व्यावासायिक राजधानी इंदौर को मिलाकर ऐसा पर्यटन चक्र तैयार करे, जहां पर्यटक और धर्मालुजन सुविधाजनक रूप से आ-जा सके। संभवत: महाकाल लोक के बाद औंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा के प्रकल्प पर भाजपा सरकार काम करना चाहेगी। इसे मांधाता पहाड़ी पर स्थापित किया जाना प्रस्तावित है, लेकिन स्थानीय रहवासी इसका विरोध कर रहे हैं। उनकी ओर से उच्च न्यायालय में दायर प्रतिवाद में परियोजना पर स्थगन मिला हुआ है। इस प्रतिमा की स्थापना का दायित्व एल एंड टी कंपनी को दिया गया है और लागत 2 हजार करोड़ रुपये अनुमानित है। यदि इस प्रकल्प ने भी समय पर आकार ले लिया तो मालवा-निमाड़ के विकास में नया पन्ना जुड़ेगा।