महमति श्री प्राणनाथ: चार सौ साल पहले मध्यप्रदेश पहुँचा गुजरात से महात्मा

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महमति श्री प्राणनाथ गुजरात से मध्यप्रदेश में आकर बसे थे।वे ऐसे संत महात्मा थे जिन्होंने सद्भाव, समरसता, एकता और बाहरी आक्रामकों को निरूत्‍साहित करने का महत्वपूण कार्य किया। वे जीवन के आखिरी 11 साल मध्यप्रदेश के पन्ना में रहे। गुजरात के यह संत जो जामनगर के प्रधानमंत्री के पुत्र थे, बचपन से अध्यात्म में झुकाव रखते थे, इनको मध्यप्रदेश की धरती पर एक पंथ प्रणामी शुरू करने का श्रेय है।वे बहुभाषी विद्वान थे। बुन्‍देलखंड केसरी महाराज छत्रसाल के गुरु भी रहे। गुजराती, सिंधी, ब्रज संस्कृत, अरबी, फारसी के ज्ञाता थे। उन्होंने उद्देश्यपूर्ण जीवन जिया। आजीवन सामाजिक सद्भाव का संदेश दिया।

वर्ष 1618 में जन्मे प्राणनाथ जी मध्यप्रदेश 1683 में आए थे। पन्ना की सुरम्य वादियों के मध्य धर्म, अध्यात्म की गंगा प्रवाहित की। यह रत्नगर्भा धरती उन्हें भा गई और यहीं के होकर रह गए। ऐसा माना जाता है, पन्ना में बेशकीमती हीरे की खोज का श्रेय भी महामति प्राणनाथ जी को है। वर्ष 1694 में महामति प्राणनाथ ने आखिरी सांस ली थी।

उनके अवसान पर समूचे बुंदेलखण्ड, गुजरात और देश के अनेक राज्यों में शोक छा गया था। आज चार सदियां बीत गईं हैं लेकिन महामति प्राणनाथ की दी गई सीखें वर्तमान युग में भी प्रासंगिक हैं।

पन्ना में शरद पूर्णिमा पर हो रहे समारोह में महामति का स्मरण किया जा रहा है। उनके लिखे ग्रंथ कुलजन स्वरूप और अन्य पवित्र ग्रंथों की भी आराधना की जाएगी। पन्ना में वर्ष 2019 में पदमावतीपुरी धाम में महामति प्राणनाथ जी के जन्म के चार सौ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में चार सौ पाठ परायण हुआ था। हजारों श्रद्धालुओं को चतुर्थ शताब्दी महोत्सव के साक्षी बनने का अवसर मिला था ।

पन्ना में चतुर्थ शताब्दी समारोह के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में विश्व के अनेक राष्ट्रों से अनुयायी आए ।

परिवार की पृष्ठभूमि और यात्राओं से बहुभाषी बने प्राणनाथ जी

महामति प्राणनाथ के पिता केशवराय जी गुजराती भाषी थे। वे जामनगर के प्रधानमंत्री थे। महामति की माता श्रीमती धनबाई धर्मनिष्ठ स्त्री थीं। वे सिंधी भाषी थीं।इस नाते जन्म से दो भाषाओं के जानकार महामति बहुभाषी प्रतिभा रखते थे। निजानंदाचार्य सदगुरू देवचंद धर्मपीठ की स्थापना जामनगर में हुई थी।

बालक मेहराज कैसे बने महामति

सौराष्ट्र अंचल आध्यात्मिक शिक्षाओं का लाभ ले रहा था। महामति के बचपन का नाम मेहेराज था। इनके बड़े भाई गोवर्धन सदगुरू निजानंदाचार्य के उच्चारित प्रवचन सुनाते थे। उस वक्त 10-12 बरस के मेहेराज इन्हें आत्मसात करते थे। बड़े भाई से निजानंदाचार्य जी के दर्शन करवाने की जिद करने के बाद स्वामी जी ने मेहेराज को दीक्षा दी थी। कुछ साल बाद गुरू के आदेश से मेहेराज पानी के जहाज से अरब यात्रा के लिए रवाना हुए। चालीस दिन का सफर था। अरब में पांच साल रहकर हिन्दुस्तानी व्यापारियों को मेहेराज अर्थात महामति प्राणनाथ ने धर्म दीक्षा दी थी।

अरब सुलतान शेख सल्ला से भी उन्होंने भेंट की। वहाँ के लोगों से और शासकों से संवाद कर भारतीय संस्कृति से परिचित करवाया। अपने राष्ट्र लौटकर महामति को आध्यात्मिक गतिविधियों में ही आनंद आने लगा। तब सौराष्ट्र के धरौल स्टेट के राजा के द्वारा प्रधानमंत्री के पद का आमंत्रण मिला। लेकिन मेहेराज ने गुरू पुत्र बिहारी जी को स्वामी निजानंदाचार्य के अंतर्धान होने के बाद 1645 में आसीन किया।

वे पिता के लिए मंत्री के पद पर कार्य करते हुए धर्म प्रचार में सक्रिय रहे। इस दौर में एक साजिश भी हुई जिसके कारण मेहेराज को कुछ समय कारावास जाना पड़ा था। इस अवधि में आपने श्रीरास, श्री प्रकाश, श्री षटऋतु और श्री कलश ग्रंथ तैयार किया। बाद में वापिस जाम स्टेट में अनेक दायित्व संभाले लेकिन एक दिन कच्छ और सिंध के भ्रमण से लौटने के बाद उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ और राजपाट छोड़कर धर्म यात्रा पर निकल पड़े। उन्होंने सूरत में महामंगलपुर धर्मपीठ की स्थापना की। मथुरा वृन्दावन भी गए।

औरंगजेब को चकित किया

यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य है कि प्राणनाथ जी ने मुगल शासक औरंगजेब को भी ज्ञान देने और सनातन साहित्य से अवगत करवाने का प्रयास किया था। औरंगजेब प्राणनाथ जी के विशेष ज्ञान से चकित हो गए थे। हरिद्वार में ब्रम्ह चबूतरे से दिया गया संबोधन प्राणनाथ जी के जीवन की विशेष घटना मानी जाती है। इस संबोधन के फलस्वरूप उन्होंने गंगा नदी के किनारे कुंभ मेले के अवसर पर श्रोताओं का ह्रदय जीत लिया था ।

तब सभी ने सामूहिक उद्घोष किया था – प्राणनाथ प्यारे की जय। हरिद्वार से लौटते दिल्ली में महामति ने लगभग सवा वर्ष रहकर कुरान का अध्ययन किया। कुरान के अर्थों से काजियों और मुल्लाओं को अवगत करवाया। हिन्दी में 1691 चौपाइयां लिखकर सनंध-सनद की रचना की। उर्दू और फारसी में अनुदित अपना साहित्य मुगल शासकों तक पहुंचाया। यही नहीं मेवाड़, राजस्थान और मध्यप्रदेश के अन्य धर्मरक्षकों तक संदेश भेजकर उन्हें संगठित करने का कार्य किया। उस दौर में औरंगजेब के अनेक हमले असफल हो गए थे।

महामती का पन्ना आगमन

जब वर्ष 1683 में महामति पन्ना आए तो उनकी ओर से दीवान देवकरण बुंदेला महाराजा छत्रसाल तक संदेश लेकर आए थे। यह संदेश सुनकर ही छत्रसाल महामति के दर्शन के लिए बैचेन हो गए थे। बाद में इलाहाबाद के सूबेदार शेर अफगन की फौन को शिकस्त देने का कारनामा महाराज छत्रसाल से कर दिखाया।

उन्होंने महामति को बुंदेलखण्ड की धर्मयात्रा की विनती की। यात्रा चित्रकूट भी पहुँची थी। महामति में पन्ना में छत्रसाल महाराज का राजतिलक किया था। आज भी महामति की योगदान को उनके ग्रंथों के माध्यम से जाना जा सकता है। एक चौपाई में महामति प्राणनाथ कहते है कि — या कुरान, या पुरान, ये कागद दोऊ परवान, या के मगज मायने हम पास, अंदर आय के खोले प्राणनाथ। संसार को मिथ्या बताते हुए प्राणनाथ जी ने मानवता के लिए कार्य किया। मनुष्य को मोह माया से दूर रहकर मानव कल्याण में सक्रिय रहने का संदेश दिया।

छत्रसाल महाराज को दिया हौसला

प्राणनाथ जी ने महाराज छत्रसाल को वहीं हौसला दिया जो शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास जी ने दिया था। महाराजा छत्रसाल ने भी सदैव प्राणनाथ जी को गुरु मानकर उनके आदेशों, निर्देशों का पालन किया। बुंदेलखंड की धरतीको बाहरी आक्रांताओ से बचाने में इस तरह प्राणनाथ जी सहयोगी और मार्गदर्शक बने।

जब छत्रसाल के राज्याभिषेक करने का शुभ कार्य करवाया

उस दौर में स्वतंत्रता के आकांक्षी भारतीय जन को उमंग, आत्मविश्वास से भरने के सभी जतन प्राणनाथ जी ने किए। महामति प्राणनाथ के योगदान को इतिहास में सदैव याद रखा जाएगा। मध्यप्रदेश की धरती उनके प्रति कृतज्ञ रहेगी जो उन्होंने मध्य प्रदेश के मध्य क्षेत्र में,प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में एक महत्वपूर्ण तीर्थ को जन्म दिया।

भोपाल में भी है मंदिर

भोपाल के शिवाजी नगर में महामती प्राणनाथ जी का मंदिर है । श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर में प्रतिवर्ष प्राणनाथ जी की जयंती और शरद पूर्णिमा के साथ ही कृष्ण जन्माष्टमी जैसे अवसर पर श्रद्धालु एकत्र होते हैं । यहां श्रद्धालु धार्मिक भजन और प्राणनाथ जी के प्रवचनो का श्रवण करते हैं।

मुख्यमंत्री श्री चौहान शरद पूर्णिमा पर आज पन्ना में प्राणनाथ मंदिर और अन्य मंदिरों के दर्शन करेगें

(लेखक अशोक मनवानी ने 2016 में प्रकाशित पुस्तक मध्यप्रदेश की काव्य परम्परा में महामति प्राणनाथ के काव्य में योगदान का विस्तार से उल्लेख है)