महाशिवरात्रि महापर्व विशेष : जानिए महत्व पर्व काल ,आध्यात्मिक , ज्योतिषीय , पौराणिक

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महाशिवरात्रि महापर्व विशेष : जानिए महत्व पर्व काल, आध्यात्मिक, ज्योतिषीय, पौराणिक

ज्योतिर्विद पंडित राघवेंद्र रविशराय गौड़ से 

प्रस्तुति- डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर

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महाशिवरात्रि फाल्‍गुन मास की चतुर्दशी को मनाई जाती है. साल 2023 में महाशिवरात्रि का त्योहार 18 फरवरी, शनिवार को मनाया जाएगा. फाल्‍गुन मास की चतुर्दशी तिथि 17 फरवरी की रात 8:02 बजे से शुरू होगी और 18 फरवरी की शाम 4:18 बजे समाप्‍त होगी. महाशिवरात्रि व्रत रखने वाले व्रतियों के लिए पारण का शुभ समय 19 फरवरी की सुबह 06:57 बजे से दोपहर 3:33 बजे तक रहेगा.

 

महाशिवरात्रि : वर्ष 2023 में 18 फरवरी, शनिवार को मनाई जाएगी।

 

विशेष संयोग : 

इस महाशिवरात्रि को इस साल महाशिवरात्रि पर पुत्र प्राप्ति का दुर्लभ संयोग बन रहा है। क्योंकि महाशिवरात्रि शनिवार के दिन पड़ रहा है। ऐसे में इस बार महाशिवरात्रि के साथ शनि प्रदोष व्रत भी है। शिवपुराण के अनुसार, शनि प्रदोष व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शनि प्रदोष व्रत रखने से भोलेनाथ प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं। शनि प्रदोष पर शिवरात्री का यह योग महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर की पूजा करने वाले शिव भक्तों को आयु , विध्या ,यश ,आरोग्य ,धन ओर बल प्रदान करेगा।

 

महाशिवरात्रि तिथि, विशेष पूजन मुहूर्त और चारों पहर की पूजा समय एवं महत्व 

 

सनातन पंचाग के अनुसार हर महीने में शिवरात्रि आती है लेकिन फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि आती है और यह पूजन के लिए अत्यंत विशेष होता है।

शिवरात्रि पर रात्रि की पूजा सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है चार पहर की पूजा। संध्याकाल से प्रदोष काल से शुरू होकर यह पूजा अगले दिन के ब्रह्म मुहूर्त में अगले दिन खत्म होती है। इसमें रात्रि का संपूर्ण प्रयोग किया जाता है अर्थात पूरी रात का उपयोग किया जाता है। महाशिवरात्रि पर हर क्षण भगवान शिव की कृपा बरसती है। मान्यता है कि ये चारों पहर की पूजा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी को सिद्ध करने वाली होती है।

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प्रथम पहर की पूजा-

प्रथम पहर की पूजा संध्या के 6 बजे से लेकर रात 9 बजे तक की जाएगी । यही इस पूजा के लिए उत्तम समय होता है। इस पहर की पूजा में दूध चढ़ने का अधिक महत्व रहता है। इस पहर में रुद्राष्टाध्याय के पाठ के साथ भगवान को दुग्ध धारा से अभिषेक किया जाएगा।

 

द्वितीय पहर की पूजा-

दूसरे पहर की पूजा रात 9 बजे से प्रारंभ होकर मध्यरात्रि 12 बजे तक की जाएगी। द्वितीय पहर की पूजा में इखु रस (गन्ने का रस) का महत्व अधिक होता है । इस पहर में रुद्राष्टाध्याय के पाठ के साथ भगवान को गन्ने के रस की धारा से अभिषेक किया जाएगा ।

 

तृतीय पहर की पूजा-

शिवपुराण में तृतीय पहर की पूजा का समय मध्यरात्रि 12 बजे से लेकर 3 बजे तक बताया गया है। तृतीय पहर की पूजा में विजया (भांग) का महत्व अधिक होता है। इस पहर में रुद्राष्टाध्याय के पाठ के साथ भगवान को भांग मिश्रित जल के रस की धारा से अभिषेक किया जाएगा। तृतीय पहर में शिवशंकर का ध्यान करने और शिव स्तुति का पाठ करने से आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाता है। वहीं इस पहर में शिव पूजन करने से कामेच्छा से मुक्ति मिलती है।

 

चतुर्थ पहर की पूजा-

चौथे यानी अंतिम पहर की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में की जाती है। इस पूजा का समय 3 बजे से सुबह 6 बजे तक बताया गया है। इस ब्रह्ममुहूर्त में भगवान महादेव का अभिषेक करने से आपका भविष्य उज्जवल बनता है और व्यक्ति भवसागर से तर जाता है। चौथे पहर की पूजा में गुलाब जल का महत्व अधिक होता है। इस पहर में रुद्राष्टाध्याय के पाठ के साथ भगवान का गुलाबजल से अभिषेक किया जाएगा।

 

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व:

चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है — अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।

 

शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया। जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।

 

पंच पल्लव , पांच पत्तों से प्रसन्न होते हैं भगवान शिव

1. बेल पत्र ( बिल्वपत्र ) शिवपुराण के अनुसार तीनों लोकों में जितने पुण्य तीर्थ हैं वे सभी इस बेलपत्र के मूलभाग में निवास करते हैं. इसलिए कहा जाता है कि बेलपत्र से शिव जी की पूजा करने वाले भक्तों को विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है.

 

2. भांग के पत्ते भांग भगवान शिव को अतिप्रिय है. मान्यता है कि जब शिवजी समुद्र मंथन से निकले विष को पीया था तो भांग के पत्तों से ही उनका उपचार किया गया था. इसलिए शिव की पूजा में भांग के पत्तों का विशेष महत्व है.

 

3. आक के पत्ते भगवान शिव को आक के पत्ते व फूल दोनों अतिप्रिय हैं. इसलिए मान्यता है कि आक के पत्ते चढ़ाने वाले भक्तों की भोलेबाबा अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं.

 

4. धतूरा का फल व पत्ते धतूरा के फल और पत्ते का भी शिव जी की पूजा में विशेष महत्व है. शिवपुराण में कहा गया है कि शिव की पूजा में धतूरा का फल और फूल अर्पित करने वालों का घर धन और धान्य से भरा रहता है.

 

5. दूर्वा मान्यता है कि दूर्वा में अमृत बसा होता है और इसे शिव जी को चढ़ाने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है.

 

महाशिवरात्रि के दिन शिव जी को ऐसे करें प्रसन्न, राशि अनुसार करें महादेव की पूजा

 

मेष राशि:इस राशि वाले जातक महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की गुलाल से पूजा करें और “ॐ ममलेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें, आपको बहुत अधिक लाभ मिलेगा।

 

वृषभ राशि:महाशिवरात्रि के दिन इस राशि के लोग शिव जी का दूध से अभिषेक करें और “ॐ नागेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें, सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी।

 

मिथुन राशि: महाशिवरात्रि के दिन 

 

मिथुन राशि के जातक शिव जी का गंगा जल से अभिषेक करें और इसके साथ ही “ॐ भूतेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।

 

कर्क राशि:इस राशि के जातकों को महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिये और महादेव के “द्वादश” नाम का स्मरण करना चाहिये।

 

सिंह राशि:इस राशि के जातक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का शहद से अभिषेक करें और “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करें।

 

कन्या राशि:कन्या राशि के जातक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जल में दूध मिलाकर अभिषेक करें और “शिव चालीसा” का पाठ करें।

 

तुला राशि:भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये महादेव का दही से अभिषेक करें और इस दिन “शिवाष्टक” का पाठ करें।

 

वृश्चिक राशि:इस राशि के लोग दूध और घी से शिवजी का अभिषेक करें और “ॐ अंगारेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।

 

धनु राशि:महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का दूध से अभिषेक करें और “ॐ सोमेश्वरायनम:” मंत्र का जाप करें, सभी इच्छाएं जल्द पूरी होंगी।

 

मकर राशि:महाशिवरात्रि के दिन मकर राशि वाले जातक भगवान शिव का गन्ने के रस से अभिषेक करें और साथ ही “शिव सहस्त्रनाम” का पाठ करें।

 

कुंभ राशि:इस राशि वाले जातक महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का दूध, दही, शक्कर, घी, शहद इन सभी चीजों से अभिषेक करें इसके साथ ही “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

 

मीन राशि:भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये महाशिवरात्रि के दिन मौसमी फल के रस से शिव जी का अभिषेक करें, इसके साथ ही “ॐ भामेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।

 

आप हम सभी के जीवन में शिव तत्व का उदय हो हमारा जीवन भगवान पार्वतीवल्लभ के श्री चरणों का सदा के लिए ळालाहित रहे

आपको गोरीशंकर के विवाह महोत्सव की बधाई हो ।

 

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै

चितारजः पुंजविचर्चिताय ।

कृतस्मरायै विकृतस्मराय

नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥