Mahendra Singh Mewar is no More: मेवाड़ राजघराने के महेंद्र सिंह मेवाड़ का अवसान
जीवन संध्या में इकलौते पुत्र को विधायक और पुत्र वधु के सांसद बनने से हुए गौरवांवित, ताउम्र करते रहे संघर्ष!
गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के मेवाड़ राजवंश से जुड़े पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ का रविवार दस नवंबर को दक्षिणी राजस्थान में उदयपुर के निकट एक अस्पताल में देहान्त हो गया। महेंद्र सिंह मेवाड़ राजसमन्द जिले के नाथद्वारा के विधायक विश्वराज सिंह के पिता और राजसमंद की सांसद महिमा कुमारी के ससुर थे। उनके निधन की खबर सुनकर मेवाड़ सहित आसपास के क्षेत्रों में शोक की लहर छा गई है। उनका अन्तिम संस्कार सोमवार को झीलों की नगरी उदयपुर के आयड क्षेत्र में राजघराने के श्मशान गृह महासतियां में होगा। 83 वर्षीय महेंद्र सिंह मेवाड़ पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थे और उदयपुर के निकट अनंता अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था जहां रविवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पूर्व मेवाड़ राजघराने के महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के सबसे बड़े पुत्र थे। उनकी माता बीकानेर की राजकुमारी सुशीला कुमारी थी। उन्होंने उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल की राजकुमारी निरुपमा कुमारी राज से विवाह किया था। उनके ससुर मनबेंद्र शाह टिहरी गढ़वाल से आठ बार संसद सदस्य रहे। साथ ही वे आयरलैंड के राजदूत भी रहे।
महेन्द्र सिंह अपने पीछे पत्नी निरुपमा कुमारी, पुत्र विश्वराज सिंह, पुत्री त्रिविक्रम कुमारी तथा भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए हैं। वे पिछले कई वर्षों से उदयपुर सिटी पैलेस की तलहटी में सुप्रसिद्ध गुलाब बाग के सामने समोर बाग में निवास करते थे। वे महाराणा भूपाल संस्थान (विद्या प्रचारिणी सभा,उदयपुर) के अध्यक्ष भी थे। साथ ही वे मेयो कॉलेज, अजमेर की जनरल काउंसिल और बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के उपाध्यक्ष तथा अखिल भारतीय और मेवाड़ क्षेत्र क्षत्रिय महासभा के संरक्षक भी रहें।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित विभिन्न नेताओं ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
महेन्द्र सिंह मेवाड़ अपने छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ के साथ संपत्ति संबंधी विवादों को लेकर हमेशा चर्चा में रहे। महेंद्र सिंह और उनके छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ दोनों ही अपने आपको मेवाड़ के राजघराने के 76वें संरक्षक होने का दावा करते रहें हैं। हालांकि उदयपुर के महाराणाओं को मेवाड़ की राजगद्दी का शासक नहीं बल्कि श्री एकलिंगजी (भगवान शिव) की ओर से राज्य का दीवान (संरक्षक) माना जाता है। हाल ही राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की उदयपुर यात्रा के दौरान भी महेंद्र सिंह के परिवार ने सम्पत्ति विवादों के चलते राष्ट्रपति महोदया से उदयपुर सिटी पैलेस का अवलोकन नहीं करने के निवेदन के साथ एक पत्र लिखा था। हालांकि राष्ट्रपति सिटी पैलेस गई थी। इसके पूर्व भी उनकी ओर से कई बार ऐसा किया जाता रहा हैं।
महेंद्र सिंह मेवाड़ ने अपने सार्वजनिक जीवन में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से समाज सेवा के कार्यों के साथ ही राजनीति में भी सक्रिय रुप से भाग लिया तथा वे भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर मेवाड़ राजवंश की पुरानी राजधानी चित्तौड़गढ़ से लोकसभा में 1989 से 1994 तक संसद सदस्य भी रहें। तब महेंद्र सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मेवाड़ में एक यात्रा का नेतृत्व किया था और 1989 के लोकसभा आम चुनाव में वे चित्तौड़गढ़ से भाजपा से 1,90,000 से अधिक मतों के रिकॉर्ड अंतर से लोकसभा के लिए चुने गए थे। वे 1990 में संसद की उद्योग मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य थे। बाद में उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में चले गए थे और उन्होंने चित्तौड़गढ़ निर्वाचन क्षेत्र से एक बार पुनः चुनाव लड़ा लेकिन पूर्व केन्द्रीय मंत्री भाजपा प्रत्याशी जसवंत सिंह से वे चुनाव हार गए। इसके बाद एक बार फिर से उन्होंने भीलवाड़ा निर्वाचन क्षेत्र से अपना भाग्य अजमाया लेकिन वे 1996 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के सुभाष चंद्र बहेरिया से एक बार फिर लोकसभा का चुनाव हार गए। कालांतर में उनका परिवार पिछले वर्ष पुनः भाजपा से जुड़ा तथा महेंद्र सिंह मेवाड़ के पुत्र विश्वराज सिंह राजस्थान विधानसभा चुनाव के पिछले चुनाव में राजसमंद जिले की नाथद्वारा विधानसभा सीट से तत्कालीन विधानसाध्यक्ष डॉ सी पी जोशी को हरा कर विधायक बने हैं । इसी प्रकार इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में उनकी पुत्र वधु महिमा कुमारी भी राजसमंद लोकसभा सीट से राजस्थान में सबसे अधिक वोटो के अन्तर से चुनाव जीत कर सांसद बनी हैं।
बताया जाता है कि महेंद्र सिंह ने स्वर्गीय महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के जीवनकाल के दौरान महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन के गठन में उनकी सहायता की थी। साथ ही उन्होंने विश्व प्रसिद्ध लेक पैलेस होटल और गार्डन होटल का प्रबंधन भी किया था। मेवाड़ राजघराने के ज्यादातर पुराने जागीरदार महेन्द्र सिंह मेवाड़ को ही स्वर्गीय भगवत सिंह मेवाड़ का बड़ा पुत्र होने के कारण महाराणा का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते है जबकि देश विदेश में अरविंद सिंह मेवाड़ को उनका उत्तराधिकारी माना जाता रहा है। मेवाड़ के इतिहास में संभवत यह पहला अवसर है जब यहां एक साथ दो महाराणाओं को मानने का प्रचलन देखा गया हैं।
बताते है कि भगवत सिंह मेवाड़ द्वारा लिखी वसीयत में गठित किए गए ट्रस्ट में महेंद्र सिंह मेवाड़ को राजवंश के अधिकारों से वंचित कर भगवत सिंह ने अपने छोटे पुत्र अरविंद सिंह मेवाड़ और पुत्री योगेश्वरी कुमारी को मुख्य ट्रस्टी घोषित किया था। इस ट्रस्ट में मेवाड़ राजवंश के बड़े भाई डूंगरपुर के पूर्व राजघराने के वंशज, राजस्थान विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत महारावल लक्ष्मण सिंह के अनुज और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय हेग के मुख्य न्यायधीश दिवंगत डॉ नागेन्द्र सिंह तथा महारावल के पुत्र भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय राजसिंह डूंगरपुर भी सदस्य बनाए गए थे।
स्वर्गीय महेन्द्र सिंह ने मेयो कॉलेज, अजमेर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। वे एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। उन्होंने सरकारी कॉलेज, अजमेर से अपना बी.ए. का अध्ययन पूरा किया । महेंद्र सिंह का विवाह टिहरी गढ़वाल की राजकुमारी निरुपमा कुमारी से हुआ था। उनके एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनके पुत्र विश्वराज सिंह का विवाह पंचकोट के महाराज जगदीश्वरी प्रसाद सिंह देव की पुत्री महिमा कुमारी से हुआ है और उनके दो बच्चे हैं, एक पुत्री का नाम जयति कुमारी और एक पुत्र का नाम देवजादित्य सिंह है। महेंद्र सिंह की पुत्री त्रिविक्रमा कुमारी जामवाल का विवाह अखनूर के दिव्या आशीष सिंह जामवाल से हुआ है।
बताया जाता है कि महेन्द्र सिंह के पिता महाराणा भगवत सिंह ने 1984 में अपनी पूरी संपत्ति एक ट्रस्ट के माध्यम से छोटे बेटे अरविंद को दे दी। उन्होंने न केवल अरविंद सिंह मेवाड़ को वसीयत का निष्पादक बनाया, बल्कि बेटी योगेश्वरी कुमारी को भी ट्रस्टी के रूप में शामिल किया। बड़े बेटे महेंद्र सिंह जिन्होंने एक साल पहले अपने पिता पर फिजूलखर्ची, बहुविवाह आदि आरोप लगाए थे और विशाल संपत्ति का बंटवारा चाहा था, उनको ट्रस्टी बनाने में छोड़ दिया गया। हालाँकि उदयपुर के स्वर्गीय महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के निधन के बाद, मेवाड़ के पूर्व जागीरदारों ने उनके सबसे बड़े बेटे के रूप में, महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ का 19 नवंबर 1984 को राजतिलक तथा मेवाड़ के महाराणा 76वें संरक्षक के रूप में राज्याभिषेक किया था और इस दौरान सिटी पैलेस, उदयपुर के भीतर धार्मिक अनुष्ठान और सार्वजनिक भागीदारी और उसके बाद कैलाशपुरी में श्री एकलिंगजी के समक्ष जुलूस और दर्शन आदि कार्यक्रम भी हुए थे। इससे पूर्व और बाद में विभिन्न अदालतों में संपति विवाद के मामलों के चलते मेवाड़ राजघराने के इस परिवार की दो शाखाओं के बीच वर्षों से संबंध तनावपूर्ण ही रहे हैं। अभी भी कुछ मामले विभिन्न अदालतों और माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक विचाराधीन चल रहे है। हालांकि महेन्द्र सिंह मेवाड़ के छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ भी अब वयोवृद्ध तथा अस्वस्थ है लेकिन उन्होंने अपने पिता भगवत सिंह मेवाड़ की तरह मेवाड़ वंश की परम्पराओं को आगे बढ़ाने तथा उदयपुर का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर तथा पर्यटन मानचित्र पर रोशन करने के लिए अथक प्रयास किए हैं इसमें कोई सन्देह नहीं हैं। उनकी लोकप्रियता और आभा मंडल भी काफी वृहद हैं।आज भी उनके मार्गदर्शन में उनके पुत्र लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ भी मेवाड़ की ऐतिहासिक विरासत और धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे है।
इस पृष्ठभूमि में देखा जाए तो महेंद्र सिंह ताउम्र मेवाड़ राजघराने के अपने परिवार के सदस्यों से ही संघर्ष करते रहें हालांकि आज भी संपति विवादों में किसी भी पक्ष के हक में कोई निर्णायक स्थिति नहीं बन पाई हैं लेकिन यह यथार्थ है कि इन सभी हालातों के मध्य महेंद्र सिंह मेवाड़ ने अपने जीवन के संध्या काल में अपने इकलौते पुत्र को विधायक और पुत्र वधु को सांसद बनने देख स्वयं को गौरवांवित अवश्य महसूस किया होगा।