
राष्ट्रहित में ममदानी की जीत और ममता का यू-टर्न…!
कौशल किशोर चतुर्वेदी
न्यूयॉर्क का मेयर बनकर जोहरान ममदानी ने यह साबित कर दिया है कि दुनिया भर में तानाशाही फैला रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वास्तव में अमेरिका की जनता ने नकार दिया है। जिस तरह ट्रंप ने न्यूयार्क मेयर चुनाव को ममतानी वर्सेस डोनाल्ड ट्रंप बना दिया था उससे तो यही साबित होता है कि अब ट्रंप अमेरिकी जनता को पसंद नहीं है। वहीं पश्चिम बंगाल में एसआईआर को लेकर ममता बनर्जी का यू टर्न लेना भी यही साबित कर रहा है कि उनके पास अब इसके अलावा कोई चारा नहीं बचा था। इसीलिए अपनी कुर्सी और अपना सम्मान बचाने के लिए ममता को एसआईआर और भारत निर्वाचन आयोग के सामने माथा टेकना पड़ा। वास्तव में इन दोनों फैसलों को राष्ट्रीय हितों में परिभाषित किया जा सकता है। अमेरिका का हित ट्रंप को नकारने में है तो भारत का हित संवैधानिक फैसलों की स्वीकार्यता में है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव में जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया है। वह इस पद पर पहुंचने वाले पहले मुस्लिम और दक्षिण एशियाई बन गए हैं। इस जीत के बाद उन्होंने अपने भाषण में जवाहरलाल नेहरू की कही बात दोहराने के साथ डोनाल्ड ट्रंप को भी लपेट लिया। वास्तव में न्यूयॉर्क सिटी ने इतिहास रच दिया है। भारतीय मूल के डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव में जीत दर्ज कर शहर के सबसे युवा मेयर बनने का गौरव हासिल किया है।
जोहरान ममदानी ने न्यूयॉर्क के मेयर चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद जवाहरलाल नेहरू को याद किया।
अपने समर्थकों के बीच जोहरान ममदानी ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रस्ट विद डेस्टिनी’ का हवाला देते हुए कहा… ‘आपके सामने खड़े होकर मुझे जवाहरलाल नेहरू के शब्द याद आते हैं कि इतिहास में कभी-कभी ऐसा क्षण आता है जब हम पुराने से नए युग में कदम रखते हैं। जब एक युग समाप्त होता है और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दबाई गई आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है। न्यूयॉर्क ने वही किया है। हमने पुराने से नए युग में कदम रख लिया है।’
ममदानी ने कहा कि यह सिर्फ एक चुनावी जीत नहीं, बल्कि ‘नए युग की शुरुआत’ है… एक ऐसा दौर जो ‘स्पष्टता, साहस और विजन’ की मांग करता है, न कि बहानों की। ममदानी ने न्यूयॉर्क सिटी के मेयर चुनाव में 50.4 प्रतिशत वोट हासिल किए। उन्होंने डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी एंड्रयू कुओमो और रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस सिल्वा को मात दी। उन्होंने अपने पूरी चुनावी मुहिम को आम लोगों की आर्थिक तकलीफों और जीवनयापन के संकट पर केंद्रित रखा। उनका वादा था कि वे किराएदारों के लिए रेंट फ्रीज, सस्ती आवास योजनाएं, फ्री चाइल्ड केयर, तेज और मुफ्त बस सेवा, और महंगे खाद्य पदार्थों से निपटने के लिए सरकारी स्वामित्व वाले ग्रॉसरी स्टोर जैसी पहल शुरू करेंगे। अमीरों पर अधिक कर (टैक्स हाइक) लगाना भी उनके एजेंडे में शामिल था। अमेरिकी राजनीति में ममदानी की यह जीत ऐसे वक्त हुई है, जब ट्रंप कैंप की नीतियों और विचारधारा को जनता ने खारिज कर दिया है। अमेरिकी सीनेट के माइनॉरिटी लीडर चक शूमर ने कहा, ‘आज के नतीजे ट्रंप एजेंडा के प्रति जनता का सीधा अस्वीकार हैं। अमेरिका आगे बढ़ चुका है, जो ट्रंप की अराजकता में रहना चाहते हैं, रह सकते हैं।’
जोहरान ममदानी की यह जीत केवल राजनीतिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदेश भी है। भारतीय मां की कोख से जन्में एक मुस्लिम नेता की जीत, जिसने नेहरू के शब्दों को फिर से जिंदा किया और बताया कि ‘पुराने से नए युग में प्रवेश’ की भावना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 1947 में थी।
वहीं पश्चिम बंगाल में एसआईआर का विरोध करते हुए ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के साथ सुलह करते हुए यू टर्न ले लिया है। देश के 12 राज्यों की मतदाता सूची का ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ 4 नवंबर से शुरू हो गया, जो एक महीना यानी 4 दिसंबर तक चलेगा। लेकिन, इस प्रक्रिया को लेकर सबसे ज्यादा बवाल पश्चिम बंगाल में देखने को मिला। जहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने चुनाव आयोग और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया। लेकिन, जिस तीखे रवैये के साथ एसआईआर का विरोध शुरू हुआ था, वह धीरे धीरे धीमा पड़ता जा रहा है।जब चुनाव आयोग ने ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ की घोषणा की थी, तो ममता बनर्जी ने इसे ‘लोकतंत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक’ करार दिया था। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर बूथ लेवल ऑफिसर का विरोध करने का आदेश दिया था। टीएमसी ने आशंका जताई कि बंगाल में एक करोड़ से अधिक वोटरों के नाम काटे जा सकते हैं। खासकर मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे मुस्लिम-बहुल इलाकों में। टीएमसी ने सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दी, सड़क पर उतरने का ऐलान किया। लेकिन सिर्फ एक हफ्ते बाद, ममता ने अचानक यू-टर्न लेते हुए निर्देश दिया कि बीएलओ के साथ सहयोग करें, नए वोटर जोड़ें, गलत कटौती पर आपत्ति दर्ज करें।
आईए मिलकर इन दोनों ही फैसलों का स्वागत करें। बदलाव की बात करने वाले ममदानी का भारत से खास रिश्ता है। उनका न्यूयार्क का मेयर बनना ट्रंप की हार और अमेरिका का मीरामय होना है। तो एसआईआर पर बैनर्जी की ममता ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस के बगावती तेवर संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ थे। वास्तव में ममदानी की जीत और ममता का यू-टर्न राष्ट्रहित में ही हैं…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





