Mandsaur News: मंदसौर जिले में अफ़ीम फ़सल परवान पर, किसान सुरक्षा में जुटे
मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
मंदसौर। मालवा-मेवाड़ अंचल की विशिष्ट उपज अफ़ीम इन दिनों परवान पर है। नवंबर में काश्तकारों को केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग द्वारा जारी लायसेंस पट्टों पर बुआई की गई। हरे पत्तों के बाद अब फूल भी आना शुरू होगये है कोई 120-130 दिनों में तैयार होने वाली फ़सल अफ़ीम फ़रवरी माह में प्राप्त होगी।
शीत प्रकोप, बेमौसम बरसात और नील गायों, पशुओं-पक्षियों से बचाने की चुनौती किसानों के सामने चल रही है और रतजगा करते हुए बचाव के उपाय कर रहे हैं।
जिला अफ़ीम कार्यालय के अनुसार मंदसौर जिले में तीन खंडों में कोई 22 हजार 460 से अधिक पट्टेदार लाइसेंसी काश्तकार हैं जिनमें परंपरागत खेती (लूणी चिरणी) वाले 11 हजार 326 तथा सीपीएस पद्यति वाले 10 हजार से अधिक काश्तकार अफ़ीम फ़सल ले रहे हैं। चालू वर्ष में लगभग 2 हजार नए पट्टे आवंटित हुए हैं। जिले के 530 से भी अधिक गांवों में अफ़ीम की पैदावार की जा रही है।
ज्ञातव्य है कि अफ़ीम उत्पादित इस क्षेत्र में मादक द्रव्यों अफ़ीम और इसके बाईप्रोड्क्टस स्मैक हेरोइन के अलावा डोडाचूरा की अवैध तस्करी का बड़ा बाजार और नेटवर्क है इसके चलते अपराध और नशे का प्रचलन है। इसकी रोकथाम के लिये नारकोटिक्स विभाग, पुलिस विभाग और प्रशासनिक अमला काम कर रहा है।
यह अंचल अफ़ीम उत्पादन के लिए जाना जाता है एक शताब्दी से भी पहले से जलवायु अनुकूल होने से मालवा-मेवाड़ के समीपवर्ती जिलों में अफ़ीम पैदावार हो रही है। रकबे में नीति अनुसार कमी बेशी होती रही है। नकदी फसल होने से अफ़ीम के प्रति विशेष आकर्षण अंचल में बना हुआ है।
जानकारों के अनुसार इस क्षेत्र में पैदा होने वाली अफ़ीम में मार्फिन व अन्य घटकों का प्रतिशत अधिक पाया गया है जो केन्सर व अन्य गंभीर बीमारियों के लिए बहुत उपयोगी है। कैंसर रोधी दवाओं में अफ़ीम की उपयोगिता बहुत है, यह शोधित कर विभिन्न दवाओं में उपयोग की जा रही है।
सारी उपज केंद्र सरकार के अधीन खरीद की जाती है और किसानों को मूल्य चुकाया जाता है। बहुत नाजुक फसल होने से किसानों को पहरेदारी करना पड़ती है वहीं अफ़ीम तैयार होने पर भी उसकी सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है।