Mandu Utsav : एक सांस्कृतिक उत्सव जो इवेंट कंपनी की मनमानी बन गया!
धार के वरिष्ठ पत्रकार छोटू शास्त्री की रिपोर्ट
Mandu (Dhar) : मांडू में हर साल होने वाला ‘मांडू उत्सव’ कभी मालवा की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक रहा है। जब तक जिला प्रशासन ने इस आयोजन को अपने हाथ में रखा इसमें देश-विदेश के एक से बढकर एक कलाकार हिस्सा लेते रहे। इनमें कई ख्याति प्राप्त नाम होते थे। चाहे शास्त्रीय संगीत हो, गायन या भारतीय परम्परागत नृत्य हों। विश्व स्तर के शास्त्रीय कलाकार, पद्मश्री-पद्म भूषण से अलंकृत व्यक्ति इसका हिस्सा बनते रहे हैं। लेकिन, जब से इस आयोजन को भोपाल में बैठे लोगों ने इवेंट कंपनी को सौंपा है, इसका स्वरुप बदल गया। अब इस आयोजन में स्थानीय प्रतिभाओ की उपेक्षा होने लगी। इस बार ये आयोजन 7 से 11 जनवरी तक हो रहा है।
इस आयोजन में होने वाले कवि सम्मेलन की मिसाल पूरे देश में दी जाती थी, जो लोकप्रिय कार्यक्रम था। ये सब तब तक था, जब इसे ज़िला प्रशासन अपने स्तर पर करता था और प्रदेश का संस्कृति विभाग उसका सहयोगी होता था। लेकिन, पिछले कुछ सालों से मांडू उत्सव नोएडा की इफ़ेक्टर इंटरटेनमेंट कंपनी को दिया गया। इस कंपनी का अपना कोई विजन और स्थानीय स्तर पर संपर्क नहीं होने से पूरा ‘मांडू उत्सव’ बिगड़ गया। आश्चर्य है कि जिले में प्रियंक मिश्र जैसे कलेक्टर के होते हुए बाहर की इवेंट कंपनी यह सांस्कृतिक आयोजन कर रही है।
इन्हें मालवा की संस्कृति और परम्परा का कोई ज्ञान नहीं है। इसीलिए इस उत्सव में मूल आदिवासी संस्कृति और कला का स्थान अभद्र पाश्चात्य कार्यक्रमों ने ले लिया। जिन ग़रीब आदिवासी कलाकारों को कभी सिर्फ़ दिखावे के लिए बुलाया भी जाता, पर उन्हें मंच नहीं दिया जाता। दर्शकों में स्थान देकर फ़ोटो खिंचवा दी जाती है। उनको बिना प्रस्तुति के बिना अपमानित करके ही भेज देने की घटनाए भी हुई।
आदिवासियों के ‘होम स्टे’ का झूठ
आदिवासियों के घरों में होम स्टे का जो दिखावा इवेंट कंपनी ने किया था, वास्तविकता में वह भी झूठ है। ज़िले में योग्य एवं सक्षम प्रशासन है। ऐसे अधिकारी हैं, जो यहां की परंपरा को समझते हैं, फिर क्या कारण है कि इस आयोजन पर एक धंधेबाज इवेंट कंपनी को थोप दिया गया। वर्तमान कलेक्टर भी सुलझे हुए और जन सरोकार को समझने वाले व्यक्ति है। फिर क्या कारण है और किसकी पहल पर इसे बाहरी इवेंट कंपनी को सौंप दिया गया। प्रदेश का संस्कृति ‘मांडू उत्सव करने में सक्षम है का ठेका इवेंट कंपनी को देने का क्या औचित्य!
न दर्शक बचे न कोई उत्सुकता
नोएडा की यह इवेंट कंपनी न मालवा की संस्कृति को जानती है न ज़मीनी हक़ीक़त! अपनी मनमानी और ज़िद्द के चलते पूरे उसने पूरे ‘मांडू उत्सव’ को जन उत्सव के बजाय पाश्चात्य डांस वाला कार्यक्रम बना दिया। मालवा की सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करके उसकी विकृत छवि दुनिया में प्रस्तुत की जा रही है। एक सांस्कृतिक उत्सव को इस इवेंट कंपनी ने डांस, डिनर और ड्रिंक का पर्व बना दिया।
इसका आनंद भी अभिजात्य वर्ग के सौ-पचास लोग ही लेते हैं। जबकि, प्रदेश में एक ऐसी सरकार है जो अपने आपको संस्कृति का रक्षक कहती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आदिवासी और मालवी संस्कृति की इस निर्मम हत्या पर क्यों आँखें मूंदे बैठे हैं, यह चर्चा का विषय है। इस उत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जगह रॉक बैंड और पाश्चात्य प्रभाव वाले कार्यक्रम किए जा रहे हैं। ‘मांडू उत्सव का कवि सम्मेलन सुनने दूर-दूर से हज़ारो लोग आते थे और पूरी रात आनंद लेते थे। अब उसे दो घंटे की औपचारिकता बना दिया गया। इस वर्ष इसके संयोजन से कई ख्याति प्राप्त कवियों को भी हटा दिया गया। उनके स्थान पर बाहर से अनजान कवियों की एक टीम थोप दी गई। मांडू के स्थानीय निवासियों और प्रतिष्ठित लोगों की की अवहेलना और अपमान पूरे उत्सव में होता है।
आर्थिक गड़बड़ी का कोई हिसाब नहीं
इवेंट कंपनी की आर्थिक गड़बड़ियों का भी कोई लेखा-जोखा नहीं है। करोड़ों के बजट में वृक्षों पर फटे टायर और नाड़े बांध कर सस्ती सजावट कर दी जाती है। सस्ते कलाकार बुलाकर केवल ख़ाना पूर्ति होती है। कंपनी के अयोग्य कर्मचारियों का पिछलग्गू बनकर सक्षम और योग्य प्रशासन के कर्मचारी निरर्थक घूमने पर विवश क्यों हैं। इस कंपनी में अनुभवहीन और अहंकारी कर्मचारी है। उन्होंने इस उत्सव को अपनी मौज का अड्डा बना लिया। इवेंट कंपनी के अधिकारी और कर्मचारी ज़िले के जन प्रतिनिधियों और आम नागरिकों का निरंतर अपमान भी करते है।
तीन सवाल चर्चा में
इस आयोजन को लेकर तीन सवाल पूरे क्षेत्र में चर्चा में हैं। योग्य एवं जन भावनाओं को समझने वाले कलेक्टर के रहते ये सब क्यों हो रहा है! दूसरा, जब प्रदेश की सांस्कृतिक गतिविधियों को करने के लिए सांस्कृतिक विभाग है, तो फिर करोड़ों रुपए के ठेके इवेंट कंपनी को देने का क्या औचित्य! तीसरा, इवेंट कंपनी की मनमानी के चलते शासन और प्रशासन के प्रति जिले में सुलग रहे जन आक्रोश के लिए कौन जिम्मेदार हैं। चौराहों पर जनता द्वारा इवेंट कंपनी की मनमानी को लेकर ‘मांडू उत्सव’ के बहिष्कार की भी सुगबुगाहट है।