Manipur Mystry: सदियों से नामर्द ढाते रहे हैं औरतों पर जुल्म
मणिपुर में जातिगत आरक्षण मसले से शुरू हुआ राजनीतिक विवाद आज जिस स्थिति में पहुंच चुका है, वह समाज में सदियों से बढ़ती-पनपती पुरुष वर्ग की मानसिक विकृति की चरमतम स्थिति का कुरूप चेहरा है। अब यह सामाजिक संघर्ष,यौन अपराध,नशा कारोबार,अवैध घुसपैठ,विदेशी हस्तक्षेप से लेकर तो राज्य-राष्ट्र के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश तक की लपटों से लपलपा रहा है। इसका हश्र जो भी हो, लेकिन इस दौरान वहां की महिलाओं की यौन प्रताड़ना के जो हिंसक और वीभत्स दृश्य सामने आये हैं, वे विचलित करते हैं। क्या आदिम युग से निकलकर घनघोर आधुनिकतम युग तक आ चुके संसार में आज भी किसी तरह के प्रतिशोध,बाहुबल के प्रदर्शन और वर्चस्व के पैमाने वे ही हैं, जो अशिक्षित,अविकसित मानव सभ्यता के हजारों-सैकड़ों साल पहले हुआ करते थे?
इसे पहेली मानें या जीवन की सबसे बड़ी विंसगति कि पुरुष अपना प्रतिशोध या खीज सबसे ज्यादा महिला पर ही निकालता है। फिर वह वैवाहिक जीवन हो,कार्य स्थल हो या जंग हो। अनंत काल से यही होता आया है। तब, जब युद्ध तलवार,भाले और बाहुबल से लड़े जाते थे और अब, जब मनुष्य चांद पर हो आया, तब भी । मणिपुर की ही बात करें तो कोई इस बात का ठीक-ठीक जवाब नहीं दे सकता कि मैतेयी-कुकी के संघर्ष में किसी भी तरफ की महिलाओं ने किसी का क्या बिगाड़ा ? वे तो मनुष्य की गुलाम की तरह ही रहने को विवश हैं। ऐसे में अपने पौरुष के प्रदर्शन के लिये या प्रतिशोध के चरम से खौफ पैदा करने के लिये महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर जुलूस निकालने के पीछे वह भले ही अपनी बहादुरी समझे, लेकिन हकीकत तो यह है कि औरत को वस्त्रविहीन कर अपनी नग्नता ही उजागर कर रहा है। कोई पुरुष जब भी ऐसी घिनौनी हरकत करता है, तब वह भूल जाता है कि वह स्वयं भी अपनी मां के आंचल से दूध पीने से लेकर तो परायी स्त्री को अर्द्धांगिनी बनाने तक बार-बार औरत को निर्वस्त्र देखता है। तब उसे अपनी किसी कुंठा की तृप्ति के लिये किसी औरत को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाने में कौन-सी बहादुरी या बेमिसाल उपलब्धि लगती है? दुखद तो यह भी है कि वहां एक-दूसरे समूह से पाशविक प्रतिशोध में महिलायें भी शामिल हैं।
इतिहास ऐसी असंख्य दास्तानों से भरा पड़ा है, जिसमें औरत पर पाशविक यौन प्रताड़ना ढायी गई हैं। कभी महिलाओं के लिये युद्ध होते थे तो कभी युद्ध के बाद महिलाओं को शिकार बनाया जाता था। रजबाड़ों के दौर में तो युद्ध में खजाने के साथ कितनी महिलायें भी लूटी गई, ये बहादुरी के पैमाने हुआ करते थे। किस राजा के हरम या महल में कितनी औरतें कैद की जाती थीं, ये राजाओं के वैभव और पराक्रम की निशानियां हुआ करते थे। मुगलों के दौर में तो इन पाशविक घटनाओं की बाढ़-सी आ गई थीं। राणा रतन सिंह के साथ अलाऊद्दीन खिलजी का तो युद्ध ही पद्मिनी जैसी अनन्य रूपवती को पाने की घृणित लालसा के लिये हुआ था, जिसमें 30 हजार सैनिकों की हत्या तो आमने-सामने की लड़ाई में हुई और पद्मिनी ने 16 हजार महिलाओं के साथ जौहर कर अपने प्राणों की आहुति दी, वह अलग।
अतीत में जायें तो द्वापर युग में कौरवों की दुश्मनी रही पाडण्वों से,घ्युत क्रीड़ा में पराजित किया पाण्डवों को,किंतु भरी सभा में इज्जत तार-तार की गई द्रोपदी की। भारत के 1947 में विभाजन की त्रासदी का सर्वाधिक पीड़ित पक्ष महिला रही। पाकिस्तान से भगाये जा रहे हिंदुओं की बहु-बेटियों को जिस तरह की यौन प्रताड़ना दी गई, वे मानव इतिहास का सबसे बड़ा कलंक है। 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय पूर्वी पाकिस्तान छोड़ने से पहले पाकिस्तानी सेना ने बंगाली महिलाओं के साथ जो यौन अत्याचार किया,वह भी बीसवीं सदी की सबसे घृणित वारदात है।भारतीय वीरों का सामना न कर पाने की खीज उन्होंने बंगाली बालिग-नाबालिग महिलाओं से निकालकर अपनी पाशविक मानसिकता को ही उजागर किया।
नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के गोरहा का पुरवा गांव में मल्लाह जाति की फूलन देवी के साथ ठाकुरों ने सामूहिक बलात्कार इसलिये किया था कि फूलन के पिता भूमि विवाद हार गये थे तो ठाकुरों ने अपनी बहादुरी एक अबोध फूलन को दिखाई। हालांकि उसी फूलन ने डकैत बनकर बेहमई में एक पंक्ति में खड़ा कर 20 ठाकुरों को गोलियों से भून कर अपना प्रतिशोध ले लिया । वह घटना उस दौर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई और पहले प्रताड़ित व बाद में डकैत बनी फूलन 1996 में समाजवादी पार्टी की ओर से सासंद भी बन कर इतिहास रच गई। दुखद यह रहा कि उसी फूलन की हत्या उसके कथित पति के तौर पर साथ रह रहे शेरसिंह राणा ने ही उसके दिल्ली आवास के बाहर ही कर दी थी। बहरहाल।
यह पुरुष ही है, जिसने सदियों पहले महिला को अपनी हवस का खिलौना बनाने के लिये कोठे पर बैठाया। आज भी वही पुरुष उसे चकला घरोँ में बिठा रहा है। आधुनिक समाज आज उन्हीं बाई जी को काल गर्ल के उद्बोधन से बुलाता है। दुनिया के अनेक हिस्सों में तो सेक्स पर्यटन प्रारंभ हो चुका है,जिसे सरकार का संरक्षण इस मायने में मिला हुआ है कि वह इसे रोकती नहीं। उन देशों का तो राजस्व ही सेक्स पर्यटन से मिलता है। राजस्थान का भंवरी देवी कांड भी हम नहीं भूले हैं। तत्कालीन मंत्री व उनके साथियों ने अपने इलाके की नर्स भंवरी देवी का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी, क्योंकि उसने मंत्री के साथ अपने रिश्तों को उजागर करने की धौंस दी थी। परसराम मदेरणा व राम सिंह विश्नोई को तब मंत्री पद गंवाने पड़े और गिरफ्तार भी हुए,फिर भी जान से तो भंवरी देवी गई, जो इन राजनेताओं के यौन शोषण की शिकार हो रही थी और एक मंत्री तो उसकी बेटी का जैविक पिता भी था।
तालिबानी और आईएसआईएसआई के कारनामे महिलाओं के यौन प्रताड़ना से लबरेज हैं। इस आतंकवादी संगठन ने तो छल-बल से महिलाओं और खास तौर से किशोरी और युवतियों को अपने जाल में फंसाकर उन्हें कैंद कर अमानवीय तरीके से हवस का शिकार बनाया और किंचित भी विरोध करने पर बर्बर तरीके से खत्म भी कर दिया। किसी व्यक्ति की ही बात क्यों करें, दुनिया में महिला जासूसों के भी अनगिनत उदाहरण हैं, जो रियासतकाल में राजाओं द्वारा और आधुनिक युग में निर्वाचित सरकारों द्वारा नियुक्त की जाती हैं।वे दुश्मनों से जानकारी जुटाने के लिये सबसे पहले और प्रमुख हथियार के तौर पर अपने जिस्म का सौदा करती हैं। नाकाम होने पर इन्हें अपनी जान तक गंवानी पडती हैं और खाली हाथ लौटने पर शंकाओं के घेरे में जीवन यापन के लिये विवश होती हैं। ये तो वह सभ्य समाज करता है, जो महिला सम्मान के प्रति बड़ी-बड़ी बातें करता है।
यदि भारत की ही बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार महिला संबंधी अपराध 2020 में 2 लाख 28 हजार दर्ज हुए थे, जो 2022 में बढ़कर 4 लाख 28 हजार हो गये याने दुगने। क्या हम इसी तरीके से और इस रफ्तार से आधुनिक,सुशिक्षित,सुसभ्य होने का दंभ भरते हैं? जब तक इस दुनिया के पुरुष की सोच नहीं बदलेगी, तब तक कोई कानून,कोई नसीहत महिलाओं के प्रति नजरिये को नहीं बदल सकता। फिर वह मणिपुर हो या दुनिया का कोई भी हिस्सा।