मराठा सेनापति एक बार फिर समझौतों और लड़ाई को तैयार

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मराठा सेनापति एक बार फिर समझौतों और लड़ाई को तैयार

भारतीय राजनीति में करीब 60 वर्षों से तलवार घूमाते रहने वाले मराठा सेनापति शरद पवार एक बार फिर सत्ता की लड़ाई के लिए नए समझौतों के साथ मैदान में उतर रहे हैं। 83 वर्ष की उम्र में भी वह महाराष्ट्र के बल पर देश की सत्ता बदलने और बेटी सुप्रिया के साथ पसंदीदा लोगों की सरकार बनाने की बिसात बिछा रहे हैं।कांग्रेस के गाँधी परिवार से रिश्ते रखने और तोड़ने का उनका रिकॉर्ड सबसे अधिक है। इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी , सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के साथ सम्बन्ध जोड़ने और तोड़ने के कई अध्याय दिलचस्प हैं। कभी सोनिया गांधी के नेतृत्व को ठुकराते हुए कांग्रेस से अलग होने वाले शरद पवार ने इस बार एक मीडिया कार्यक्रम में स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि राहुल गाँधी में देश का नेतृत्व करने की क्षमता है। भाजपा के विरुद्ध प्रतिपक्ष के नए गठबंधन में रिंग मास्टर की तरह विभिन्न प्रदेशों के परस्पर विरोधी नेताओं को भी समझा बुझाकर नए समझौतों के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसी सन्दर्भ में वह आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी को कांग्रेस पर मेहरबानी कर लोक सभा चुनाव में कुछ सीटें देने पर सहमति बना रहे हैं। कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा कभी नहीं रही। राहुल गाँधी को अरविन्द केजरीवाल और अखिलेश यादव ही नहीं भ्रष्टाचार में जेलयाफ्ता लालू प्रसाद यादव तक के सामने समर्पण करवा रहे हैं। पराकाष्ठा यह है कि राहुल के सारे निंदा अभियान के बावजूद अडानी समूह को भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान बताकर उसका समर्थन कर रहे हैं।

सवाल यह है कि मराठा क्षत्रप स्वयं उत्तर भारत में अपनी राष्ट्रवादी नेशनल कांग्रेस या अन्य सहयोगी दलों को कितनी सीटों पर विजय दिला सकते हैं ? दूसरा शरद पवार को कबड्डी के कप्तान की तरह हमेशा दूसरे पाले में जाकर वापस भागने वाले खिलाड़ी के रूप में जाना जाता है । इसलिए राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी के साथ कितने महीने रहने की गारंटी कोई नहीं दे सकता है । अभी तो चुनाव आयोग और अदालत तय करेगी कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरद की है या उनके भतीजे अजीत पवार की । यही नहीं भाजपा से मोह भंग होने पर अजीत को अपना बना लेने के संकेत भी पवार देते रहते हैं । उनका एकमात्र लक्ष्य अपनी बेटी सुप्रिया सुले को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाना है । तभी तो कुछ समय पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी या उनके सहयोगियों से सुप्रिया को केंद्रीय मंत्री बनाने की संभावना पर चर्चा की थी । इस प्रस्ताव पर अब पिता पुत्री बात नहीं करना चाहते । पवार के सबसे करीबी रहे पूर्व मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने तो अब राज बता दिया कि पिछले साल तो सभी 51 विधायक शरद पवार की स्वीकृति से भाजपा गठबंधन में जाने को तैयार थे , सबने प्रस्ताव पर दस्तख़त तक कर डाई थे । लेकिन लोक सभा चुनाव के बाद इस प्रस्ताव पर पुनः रास्ता बनाए जाने का गलियारा खुला हुआ है ।

वास्तव में शरद पवार सदा सत्ता में रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहे हैं । सरकार , पूँजी की शक्ति और किसी भी दल या नेताओं के साथ रिश्ते बनाने में माहिर हैं । तभी तो किसी समय अयोध्या विवाद में वह मुस्लिम पक्ष और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं से मध्यस्थ की भूमिका निभाने के प्रयास करते रहे । कभी बाल ठाकरे के विरोधी और अब उनके बेटे उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी हो गए । 1983 में इंदिरा गांधी के कड़े विरोध के लिए पुणे में विपक्षी नेताओं की बड़ी रैली की और तीन साल बाद राजीव गांधी की शरण में आ गए । प्रधान मंत्री बनने की संभावना न देख नरसिंह राव का दामन थाम लिया । फिर उनका विकल्प बनने के लिए जोड़ तोड़ की । बहरहाल प्रधान मंत्री न सही महाराष्ट्र में उन्होंने किसी बड़े मराठा नेता को विकल्प नहीं बनने दिया ।

मराठा सेनापति के घोड़े और हथियार पड़ोसी गोवा या गुजरात तक में अपनी पार्टी का प्रभाव बड़ा पाने में सफ़ल नहीं हुए । फिर सुदूर बंगाल या केरल में वह अपनी पार्टी या गठबंधन के सहयोगी को क्या मदद कर सकते हैं ? ममता बनर्जी , अखिलेश यादव , लालू यादव , नीतीश कुमार , फारूक अब्दुल्ला आदि शरद पवार की धन शक्ति और मुंबई के बेताज बादशाह के नाते कारपोरेट समूहों से संबंधों के कारण जुड़े रहने का लाभ देखते हैं । टाटा बिरला के बाद अंबानी अडानी के साथ समझौतों में पवार कभी नहीं हिचके । अब आगामी लोक सभा चुनाव में पवार की राजनीतिक शक्ति की अंतिम परीक्षा होगी ।

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।