
MCU के विद्यार्थियों ने उकेरी बांग्लादेश की व्यथा, एक फिल्मी पोस्टर में पूरी कहानी-“एक हसीना, एक तसलीमा’
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि (एमसीयू ) में जनसंचार के विद्यार्थियों की यह एक अनूठी पहल है। बांग्लादेश की मानवीय व्यथा को एक शानदार फिल्मी पोस्टर पर उकेरा गया है, जिसका शीर्षक है-“एक हसीना, एक तसलीमा।’ विद्यार्थियों ने कोई लंबी कहानी कहे बिना बांग्लादेश की हकीकत चंद शब्दों में बयान की है। बांग्लादेश की ये दोनों हाई प्रोफाइल महिलाएँ अपनी जान बचाने के लिए भारत की शरण में हैं। तसलीमा की आधी उम्र अपनी जान बचाते हुए भारत में ही गुजर गई है।

आठ पेज की इस क्रिएटिव और प्रायोगिक “पहल’ के लिए 50 से अधिक विद्यार्थियों ने एक माह तक बांग्लादेश के अतीत और वर्तमान के शोध संदर्भ देखे, दस से अधिक पुस्तकें पढ़ीं, ढाका, कोलकाता, दिल्ली सहित देश भर के 12 विशेषज्ञों से राजनीतिक, आर्थिक और मजहबी मुद्दों पर लंबे इंटरव्यू किए। इस प्रयोग में बीते सौ सालों में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर और अब बांग्लादेश में अपने पूर्वजों की भूमि से लगातार खत्म हो रहे भारतीय समुदाय के लोगों की मानवीय पीड़ा को स्वर दिया गया है।
इसमें कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। जैसे-1946 का “डायरेक्ट एक्शन डे’, जिसे बंगाल के माथे पर मजहबी कलंक कहा गया है। 1971 में भारत की मदद से बांग्लादेश बनाने वाले बंगबंधु मुजीर्बुरहमान के हाथ भी इस कलंक में हजारों निर्दोष हिंदुओं के खून से रंगे थे। अपनी युवा अवस्था में वे “डायरेक्ट एक्शन डे’ के दिन मुस्लिम लीग का झंडा पहराते हुए भारत के टुकड़े करने के लिए कोलकाता की सड़कों पर उस मजहबी उन्मादी भीड़ का हिस्सा थे, जिसने हिंदुओं के कत्लेआम किए।

बांग्ला संस्कृति के नाम पर अलग हुआ यह मुल्क कट्टरपंथियों के हाथ में चला गया है और एक बार फिर वहाँ हिंदूओं पर मौत मंडरा रही। विद्यार्थियों ने सवाल किया है कि विश्व बिरादरी कब तक सभ्यता का यह विनाश मूकदर्शक बनकर देखती रहेगी? पचास साल में बांग्लादेश पाकिस्तान की परछाई बन रहा है। मजहबी कट्टरता का बोलबाला है। अल्पसंख्यकों के नाम पर बचे-खुचे हिंदुओं का अस्तित्व संकट में है।
“पहल’ बांग्लादेश की व्यथा को समर्पित है, जिसका विमोचन बीबीसी के पूर्व पत्रकार सलमान रावी और बंगाली एसोसिएशन के महासचिव सलिल चटर्जी के हाथों हुआ । कुलगुरू विजय मनोहर तिवारी ने विद्यार्थियों की पहल को सराहनीय बताया।
एक महीने पहले भोपाल के पंचर सार्वजनिक परिवहन सिस्टम पर पत्रकारिता विभाग के विकल्प की कवर स्टोरी भी चर्चा का विषय बनी थी, जिसका शीर्षक था-“शर्म करो शहर के स्वामी!’ एमसीयू का यह सेमिस्टर सघन प्रायोगिक गतिविधियों से भरा रहा है।





