![Suresh Tiwari - 2025-01-28T221617.895](https://mediawala.in/wp-content/uploads/2025/01/Suresh-Tiwari-2025-01-28T221617.895.jpg)
चिकित्सा मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
‘जूलिया! क्या जरूरी है कि इंसान भला कहलाए जाने के लिए इतना दब्बू और बोदा बन जाए कि उसके साथ जो अन्याय हो रहा है, उसका विरोध तक न करे? बस चुपचाप सारी ज्यादतियाँ सहता जाए? नहीं जूलिया, यह अच्छी बात नहीं है। इस तरह खामोश रहने से काम नहीं चलेगा। अपने आप को बनाए रखने के लिए तुम्हें इस संसार से लड़ना होगा। मत भूलो कि इस संसार में बिना अपनी बात कहे कुछ नहीं मिलता…।
जूलिया ने यह सबकुछ सुना व फिर चुपचाप चली गई। मैंने उसे जाते हुए देखा और सोचा – ‘इस दुनिया में कमजोर लोगों को डरा लेना कितना आसान है!’
यह कहानी ‘जूलिया’ का अंतिम पैराग्राफ है। इसमें कहानी का पूरा सार और शिक्षा छिपी है। अन्तोन पाव्लविच चेखव की प्रसिद्ध कहानियों में से यह एक है। मात्र 44 साल जिए चेखव आज अपने साहित्य सृजन के कारण जिंदा हैं। चेखव (29 जनवरी,1860 -15 जुलाई,1904) रूसी कथाकार और नाटककार थे। अपने छोटे से साहित्यिक जीवन में उन्होंने रूसी भाषा को चार कालजयी नाटक दिए जबकि उनकी कहानियाँ विश्व के समीक्षकों और आलोचकों में बहुत सम्मान के साथ सराही जाती हैं। चेखव अपने साहित्यिक जीवन के दिनों में ज्यादातर चिकित्सक के व्यवसाय में लगे रहे। वे कहा करते थे कि चिकित्सा मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका।
आज चेखव का जिक्र इसलिए क्योंकि उनका जन्मदिन है। उनका जन्म दक्षिण रूस के तगानरोग में 29 जनवरी 1860 में एक दुकानदार के परिवार में हुआ। 1868 से 1879 तक चेखव ने हाई स्कूल की शिक्षा ली। 1879 से 1884 तक चेखव ने मॉस्को के मेडिकल काॅलेज में शिक्षा पूरी की और डाक्टरी करने लगे। 1880 में चेखव ने अपनी पहली कहानी प्रकाशित की और 1884 में इनका प्रथम कहानी संग्रह निकला। 1886 में ‘रंगबिरंगी कहानियाँ’ नामक संग्रह प्रकाशित हुआ और 1887 में पहला नाटक ‘इवानव’। 1890 में चेखव ने सखालिन द्वीप की यात्रा की जहाँ इन्होंने देशनिर्वासित लोगों की कष्टमय जीवनी का अध्ययन किया। इस यात्रा के फलस्वरूप ‘सखालिन द्वीप’ नामक पुस्तक लिखी। 1892 से 1899 तक चेखव मॉस्को के निकटवर्ती ग्राम ‘मेलिखोवो’ में रहे थे। इन वर्षों में अकाल के समय चेखव ने किसानों की सहायता का आयोजन किया और हैजे के प्रकोप के समय सक्रिय रूप से डाक्टरी करते रहे। 1899 में चेखव बीमार पड़े जिससे वे क्रिम (क्राइमिया) के यालता नगर में बस गए। वहाँ चेखव का गोर्की से परिचय हुआ। 1902 में चेखव को ‘सम्मानित अकदमीशियन’ की उपाधि मिली, लेकिन जब 1902 में रूसी जार निकोलस द्वितीय ने गोर्की को इसी प्रकार की उपाधि देने के फैसले को रद्द कर दिया तब चेखव ने अपना विरोध प्रकट करने के लिये अपनी इस उच्च उपाधि का परित्याग कर दिया। 1901 में चेखव ने विनप्पेर नामक अभिनेत्री से विवाह किया। इनकी पत्नी उस प्रगतिशील थियेटर की अभिनेत्री थी जहाँ चेखव के अनेक नाटकों का मंचन किया गया था। 1904 में चेखव के नाटक ‘चेरी के पेड़ों का बाग’ का प्रथम बार अभिनय हुआ। 1904 के जून में बीमारी
(तपेदिक) जोर से फैल जाने के कारण चेखव इलाज के लिए जर्मनी गए। वहीं बादेनवैलर नगर में इनका स्वर्गवास हुआ। चेखव की समाधि मास्को में है।
चेखव ने सैकड़ों कहानियाँ लिखीं। इनमें सामाजिक कुरीतियों का व्यांगात्मक चित्रण किया गया है। अपने लघु उपन्यासों ‘सुख’ (1887), ‘बाँसुरी’ (1887) और ‘स्टेप’ (1888) में मातृभूमि और जनता के लिए सुख के विषय मुख्य हैं। ‘तीन बहनें’ (1900) नाटक में सामाजिक परिवर्तनों की आवश्यकता की झलक मिलती है। ‘किसान’ (1897) लघु उपन्यास में जार कालीन रूस के गाँवों की दु:खप्रद कहानी प्रस्तुत की गई थी। अपने सभी नाटकों में चेखव ने साधारण लोगों की मामूली जिंदगी का सजीव वर्णन किया है। चेखव का प्रभाव अनेक रूसी लेखकों, बुनिन, कुप्रिन, गोर्की आदि पर पड़ा। यूरोप, एशिया और अमेरीका के लेखक भी चेखव से प्रभावित हुए। भाारतीय लेखक चेखव की कृतियाँ उच्च कोटि की समझते हैं। प्रेमचंद्र के मत से ‘चेखव संसार के सर्वश्रेठ कहानी लेखक’ हैं।
आजकल भी चेखव के सभी नाटकों का रूस के अनेक थियेटरों में प्रदर्शन किया जाता है। चेखव की कहानियों के आधार पर अनेक चलचित्र बनाए गए हैं, जैसे ‘कुत्तेवाली महिला’, ‘भालू’, ‘दुल्हन’, ‘स्वीडिश दियासलाई’। सोवियत संघ में 1918 से 1956 तक चेखव की कृतियाँ 71 भाषाओं में प्रकाशित हुई थीं। इन सभी पुस्तकों की संख्या 49 लाख है। चेखव के निवास स्थानों पर मॉस्को, यालता, तागनरोग और मेलिखेव में चेखव म्यूजियम खुले हैं। भारत में चेखव की अनेक कहानियाँ और नाटक बहुत सी भाषाओं में प्रकाशित हुए हैं।
तो साहित्य में वह ताकत है कि साहित्यकार कभी मर नहीं पाता। चेखव के लेखन में उस दौर का समाज, सोच और परिवेश सब जीवंत है। यह उनके साहित्य सृजन की ही ताकत है कि 44 साल की उम्र में दुनिया से विदा होकर भी वह हमारे बीच मौजूद है।