स्मृति शेष : उस्ताद राशिद खान शास्त्रीय संगीत के युवा सुर की तान टूटी!

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स्मृति शेष : उस्ताद राशिद खान शास्त्रीय संगीत के युवा सुर की तान टूटी!

उनका मन क्रिकेट, कबड्डी में खूब रमता था और घर के शास्त्रीय संगीत के माहौल से उन्हें कोई भी सरोकार नहीं था। वे मोहम्मद रफी के फिल्मी गीतों को पसंद करते थे और उन्हें ही गुनगुनाते थे। उन्हें घर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत की रियाज से कोई मतलब ही नहीं थी। राशिद खान का जन्म बदायूं (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। वे उस्ताद इनायत हुसैन खान साहब के पड़पोते थे जिन्होंने रामपुर सहसवान घराने की स्थापना की थी जो कि बहादुर हुसैन खान के शार्गिद थे जो मियां तानसेन के शिष्यों से सीधे रुप से जुड़े थे। राशिद खाँ साहब की मां का निधन जल्दी हो गया। पिता को लग रहा था कि शायद राशिद खान शास्त्रीय संगीत सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं लेंगे और यही कारण था कि वे उन्हें निसार हुसैन खाँ के पास लेकर गए जो कि महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ 3 के राजगायक थे।

वर्ष 1977 की बात है जब पं विजय किचलु ने कोलकाता में आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी की स्थापना की और इसमें देश के श्रेष्ठतम भारतीय शास्त्रीय संगीत के जानकारो को जोड़ने का प्रकल्प आरंभ किया। 1977 में ही निसार हुसैन खां पं.विजय किचलू के आमंत्रण पर कोलकाता आईटीसी सेंटर पहुंच गए। उनसे सीखने के लिए राशिद खान साहब को भी भेजा गया जिनकी उम्र उस समय दस या बारह वर्ष की होगी। 14 वर्ष की उम्र में राशिद खान को आईटीसी की स्कॉलरशिप मिल गई। परंतु उन्हें अब भी भारतीय शास्त्रीय संगीत में आनंद नहीं आ रहा था। उन्होंने अपने चाचा गुलाम मुस्तफा खान साहब से भी सीखना आरंभ किया और यहां पर उनकी मुलाकात प्रसिद्ध गजल व फिल्म गायक हरिहरन के साथ हुई और दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए।

आईटीसी संगीत समारोह में तानपुरे का साथ देते थे।
उस्ताद राशिद खान जब आईटीसी में थे तब आईटीसी संगीत महोत्सवों में वे बड़े कलाकारों के साथ आते थे और इस दौरान वे इंदौर भी आए थे और तब विदुषी गिरिजा देवी के साथ वे आए थे और रवीन्द्र नाट्य गृह में उन्होंने तानपुरे की संगत की थी। पंडित वीजी जोग भी आईटीसी संगीत समारोह के सिलसिले में इंदौर आए थे तब उनके प्रिय शिष्य डॉ रमेश तागड़े को भी वे अपने साथ कार्यक्रम में वायलिन पर साथ देने के लिए मंच पर लाए थे। कार्यक्रम के पूर्व रवीन्द्र नाट्य गृह के ग्रीन रुम में पं जोग ने राशिद खान के बारे में कहा था कि यह लड़का बहुत रियाज की है और देखना भविष्य में बहुत आगे जाएगा।

उस्ताद राशिद खान ने काफी समय तक रियाज की परंतु भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ एक जो प्रेम होता है वो लगातार ढूंढ रहे थे। कुछ समय पश्चात उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा से साक्षात्कार हुआ और वे मंचीय प्रस्तुति देने लगे और वह भी बड़े कार्यक्रमों में और बड़े कलाकारों के साथ। पंडित रवि शंकर से लेकर उस्ताद विलायत खान, उस्ताद अली अकबर खान, पं निखिल बेनर्जी जैसे कलाकार उन्हें पसंद करने लगे और अपने नम्र स्वभाव के कारण वे सभी के लाड़ले बन गए।

उस्ताद राशिद खान की प्रसिद्धि बढ़ती गई और कुछ ही समय बाद उन्होंने पं भीमसेन जोशी के साथ जुगलबंदी भी की। उस कार्यक्रम में पं जोशी ने साफ कहा था कि उस्ताद राशिद खान देश के शास्त्रीय संगीत का भविष्य है और यह सही साबित हुआ। उस्ताद राशिद खान ने अपने गायन सीखने की आदत को केवल शास्त्रीय संगीत तक नहीं रखा बल्कि गजÞल गायकी और फिल्म गायन के क्षेत्र में भी उन्होंने हाथ आजमाया। उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साहब याद पिया की आए इतना बेहतरीन गाते थे उसकी कोई तुलना नहीं। इसके बाद कई गायको ने इसे गाया है परंतु उस्ताद राशिद खान साहब जब इसे गाते थे तब सही मायने में उनके जैसा इसे कोई नहीं गा पाता था।

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इम्तियाज अली की फिल्म ‘जब वी मेट’ में गाए गीत आओगे कब तुम साजना आज भी लोकप्रिय है। इस गीत के बाद युवा उस्ताद राशिद खान साहब के फैन बन गए और जब भी वे युवाओं के कार्यक्रम में जाते थे तब उन्हें यह गीत गाना ही पड़ता था। उस्ताद राशिद खान साहब जो भी राग गाते थे गहराईयों में डूब कर गाते थे। आलापचारी भी बिल्कुल राग के एक एक सुर को लेकर करते थे। उनके पास तानों के कई प्रकार थे और वे प्रयोगधर्मी भी थे। पं भीमसेन जोशी और उस्ताद अमीर खां साहब की गायकी से वे बेहद प्रभावित थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों के साथ उन्होंने लगभग बीस फिल्मों में भी गीत गाए है। पद्मश्री,पद्मभूषण और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कार प्राप्त उस्ताद राशिद खान भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपना करियर बनाने वाले हजारों युवाओं के आदर्श थे सभी राशिद खान से प्रभावित थे और उनके जैसा बनना चाहते थे।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक कलाकार के लिए कहा जाता है कि चालीस वर्ष के बाद गायन में थोड़ी बहुत गंभीरता आने लगती है परंतु उस्ताद राशिद खान के गायन में शुरुआत से ही जैसे परिपक्वता नजर आती थी। वे ख्याल गायन,तराना आदि बेहद ही आसानी से गाते थे और यही कारण था कि युवाओं में भी उतने ही लोकप्रिय थे। लुई बैंक्स जैसे वेस्टर्न म्यूजिक के कलाकार के साथ जुगलबंदी करना हो या फिर सितार के कलाकार शाहिद परवेज के साथ गायन वादन की जुगलबंदी करना हो वे पीछे नहीं रहते थे। इतना ही नहीं अपने मित्र गजल गायक हरिहरन के साथ भी उन्होंने कई कार्यक्रम किए। राशिद खान साहब का निधन केवल 55 वर्ष में हो जाना भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए अपूरणीय क्षति है। इतनी कम उम्र में भी उन्होंने कई शिष्य भी तैयार किए। निश्चित रूप से उस्ताद राशिद खान साहब की जगह कोई नहीं ले पाएगा।