Metro Derailed:ऐसे फैसले विजयवर्गीय ही ले सकते हैं
मध्यप्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर में मेट्रो चलाने का मसला चार साल से कदमताल कर रहा है। जितने समय में इसे पटरी पर दौड़ने लगना था,उतने समय में यही तय नहीं हो पाया कि इसे चलाने का सही मार्ग कौन-सा होना चाहिये? यह भी पेंच है कि इसे एलिवेटेड ब्रिज पर कहां चलायें और कहां जमीन के नीचे। मेट्रो के इन मूल तत्वों पर विचार किये बिना प्रारंभ की गई इस परियोजना का पहला चरण पूरा होने से पहले ही इसके पहिये थम गये हैं। मौजूदा हालात में यह बेहद जरूरी भी था, क्योंकि इंदौर के जन प्रतिनिधियों,जनता,कारोबारियों,समाज सेवियों, विषय विशेषज्ञों तक की गंभीर आपत्तियां हैं। इन्हें हाल ही में नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने एक वृहद बैठक आहूत कर सुना और कहा कि जब तक समुचित हल नहीं निकलता और इसे जन उपयोगी नहीं बना दिया जाता, तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे। भले ही इसकी लागत हजार-पांच सौ करोड़ रुपये बढ़ जाये। ऐसा फैसला वे ले सकते हैं, क्योंकि जनता की नब्ज पर हाथ रखने वाले जन प्रतिनिधि के तौर पर ही उनकी पहचान भी है।
मेट्रो को लेकर प्रारंभ से ही असहमतियों का अंबार रहा । इसे विमान तल से वाया सुपर कॉरिडोर,विजय नगर,रेडिसन चौराहा, रोबोट चौराहा,बंगाली चौराहा,कनाडिया रोड,पत्रकार कॉलोनी,पलासिया चौराहा,हाई कोर्ट,रीगल चौराहा,कोठारी मार्केट,राजबाड़ा,मल्हारगंज होते हुए विमान तल पर पूरा होना था। यह मार्ग ही पूरी तरह से अव्यावहारिक, घनी आबादी के बीच से जाने के कारण दुष्कर और तकलीफ देह निर्माण प्रक्रिया वाला दिखाई दे रहा था। इंदौर की पूर्व सांसद व लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी सुमित्रा महाजन से लेकर भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया,शहर हित पर जन आंदोलन चलाने वाली संस्था अभ्यास मंडल,शहर के कारोबारी,अनेक इंजीनियर आदि इसके खिलाफ अभिमत देते रहे। इसे शासकीय अधिकारियों ने पूरी तरह से अनसुना,अनदेखा किया। ऐसा क्यों किया,यह तो वे ही जानें, लेकिन भाजपा की सरकार होते हुए प्रमुख भाजपा नेताओं की बात को भी ताक पर रखकर काम आगे बढ़ता रहा।
इसके बाद जब प्रदेश में 2023 में फिर से भाजपा सरकार आई और मोहन यादव उसके मुख्यमंत्री तथा शहर से विधायक निर्वाचित कैलाश विजयवर्गीय नगरीय प्रशासन मंत्री बने, तब से इन आपत्तियों पर सुनवाई का सिलसिला प्रारंभ हुआ । 17 जून को विजयवर्गीय ने शहर के प्रमुख नागरिकों के साथ संबंधित अधिकारियों की मौजूदगी में मैराथन बैठक की। जिसमें उन तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई तो निष्कर्ष यही निकला कि ऐसी जिदबाजी से तो मेट्रो का कूड़ा हो जायेगा,जिसमें जन धन की बरबादी तो होगी ही, यह जनता के किसी काम भी नहीं आयेगी। इतना ही नहीं तो शेष निर्माण के लिये जो दो-तीन साल लगेंगे उसमें शहर के प्रमुख बाजारों का भट्टा बैठ जायेगा और यातायात का भी कबाड़ हो जायेगा। तब विजयवर्गीय ने फैसला सुना दिया कि अधिकारीगण एक माह में तमाम सुझावों के मद्देनजर नये परिवहन मार्ग का अवलोकन,अध्ययन करें और रपट प्रस्तुत करें। फिर हुआ तो एक और बैठक इसी तरह की लेकर विचार विमर्श किया जायेगा। उन्होंने साफ भी कर दिया कि कुछ करोड़ का नुकसान हो जाये तो चलेगा, लेकिन शहर हलाकान नहीं होना चाहिये और मेट्रो की उपयोगिता साबित होना चाहिये।
अब इस मुद्दे पर आते हैं कि क्या शहर के भीतर भारी तोड़फोड़ कर मेट्रो चलाने की तुक है भी ? क्या दस-बीस साल बाद भी इसकी उपयोगिता होगी? सबसे पहली बात तो यह कि विमान तल से लव कुश चौराहे की तरफ इसका निर्माण ही गलत फैसला है। कोई विमान से आकर विजय नगर तक मेट्रो से क्यों जायेगा? वह तो अपनी कार से ही सीधे आयेगा-जायेगा। फिर एम.जी.रोड,कोठारी मार्केट,राजबाडा,मल्हारगंज जैसे घनी आबादी और यातायात वाले इलाके को साल-दो साल के लिये बंद कैसे किया जा सकता है? याने परियोजना की परिकल्पना ही गलत है। वह बनाई किसने?उन्हीं अधिकारियों ने, जो अब भी इस सरकार का हिस्सा हैं। इसे जिस भाजपा सरकार ने मंजूरी दी, वह अब भी है। बस,मुखिया बदल गये। पहले जिद थी,अब जज्बातों को देखा जा रहा है।
विकास कार्यों में कुछ असुविधा तो जनता को उठाना पड़ता है, किंतु उसका मूल उद्देश्य अंतत: जनता की भलाई ही होना चाहिये। यदि एक वाक्य में कहें तो मेट्रो की वर्तमान योजना जनहित के अनुकूल तो नहीं है। देखा जाये तो इसे बंगाली चौराहे से आगे पिपलिया हाना,कृषि कॉलेज,एम.वाय.एच,नया रेलवे स्टेशन,सुभाष मार्ग होते हुए ले जाना चाहिये, वह भी जमीन के अंदर से। दूसरे विकल्प में बंगाली चौराहे से पलासिया चौराहा,जंजीरवाला,रेलवे स्टेशन होते हुए ले जा सकते हैं।
एक और बात बार-बार उठ रही है कि शहर के भीतर परिवहन के अन्य साधनों के परिचालन को व्यवस्थित कर मेट्रो को उज्जैन,देवास,राऊ,पीथमपुर,महू के बीच चलाया जाये तो निश्चित ही अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। इंदौर से इन नगरों के बीच बड़ी संख्या में लोगों की आवाजाही है, जो निरंतर बढना ही है। इससे इंदौर व जुड़े हुए नगरों का विकास भी तेजी से हो सकेगा, जो इंदौर में आबादी का घनत्व बढ़ने से रोकने में भी सहायक होगा। इंदौर में इस समय इंदौर-एदलाबाद फोर लेन का काम चल रहा है,इंदौर-उज्जैन छह लेन होना है। इंदौर-हरदा का काम बायपास तरफ से चल रहा है। इसके साथ ही करीब छह फ्लाय ओवर,ओवर ब्रिज का काम भी चल रहा है। याने समूचा शहर अस्त व्यस्त है। अनेक सड़कें बंद कर दी गई हैं तो तो अनेक परिवर्तित की गई हैं। इसने शहर के सुकून को कम किया है,पर्यावरण को दूषित किया है,यातायात को विकट किया है और वाहनों के बार-बार जाम में फंसने से प्रदूषण का स्तर खराब हो रहा है। ऐसे में यदि बीच शहर से मेट्रो का काम भी अंडर ग्राउंड या एलिवेटेड ब्रिज के जरिये भी चला तो सवा सत्यानाश तय है।
फैसला,अब कैलाश विजयवर्गीय को,जन प्रतिनिधियों-अधिकारियों से परस्पर विचार विमर्श से लेना है और जनता के हित को सर्वोपरि रखना है। डगर बेहद कठिन है। एक तरफ शासकीय धन का अपव्यय है, जो प्रकारांतर से जनता की जेब से ही आता है तो दूसरी तरफ जनता का दैनंदिन जीवन अव्यवस्थित हो जाना और प्रदेश की व्यापारिक राजधानी इंदौर के आधे से अधिक हिस्से में न्यूनतम दो साल तक कारोबार का चौपट हो जाने का मसला है। देखते हैं, महानगर बनते इंदौर में मेट्रो परियोजना किस अंजाम पर पहुंचती है।