Miracle of Baba Ramdev : पतंजलि के इस संत ने जो किया वो तो कमाल ही कहा जाएगा!

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Miracle of Baba Ramdev : पतंजलि के इस संत ने जो किया वो तो कमाल ही कहा जाएगा!

हरिद्वार से कर्मयोगी की रिपोर्ट 

Haridwar (Uttarakhand) : बाबा रामदेव को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने समाज में योग के प्रति चेतना जगाई। योग को योगियों व अभिजात्य साधकों से निकालकर योग चेतना जगायी। आज करोड़ों लोग सुबह चार बजे से साढ़े आठ बजे तक उनके तथा अन्य चैनलों पर योग कार्यक्रमों से जुड़ते हैं। देश के कोने-कोने में लोग सुबह योग करते देखे जा सकते हैं। योग को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता मिलने के मूल में भी कहीं न कहीं रामदेव जी के परोक्ष योगदान को हम नहीं नकार सकते।

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वास्तव में तो यह कल्पना से परे बात लगती है कि किसी संत ने चुपके से आकर हमारे समाज में बदलाव की खामोश क्रांति कर दी। निर्जन वनों में, कंदराओं में, गुरुकुल व आश्रमों में साधनाओं में लीन योगी की छवि ही आम भारतीय के मन में रही है। यूं तो अमेरिका व आस्ट्रेलिया में योग व उससे जुड़ा अरबों का है व्यापार होता है। चीन भी इस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। बड़ी संख्या में चीन हर साल योग प्रशिक्षकों को अपने यहां बुला रहा है। चीन में भारतीय प्राच्य विद्याओं व पुराणों पर बड़े पैमाने पर शोध हो रहा है। लेकिन, भारत में इसकी कल्पना करना भी कठिन है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि कैसे बारह महीनों के मौसम में एक गेरुआ धोती में रहने वाले एक योगी ने चुपके-चुपके देश में एक योग की क्रांति कर दी हो।

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ये संत जब हरियाणा में अपना घर-बार छोड़कर उत्तराखंड के हरिद्वार के लिए निकला, तो रुड़की पहुंचकर देखा कि बस चालक हरिद्वार-हरिद्वार कि आवाज लगा रहे हैं। दरअसल, बस चालक हरिद्वार की सवारियों को बैठाने के लिए आवाज दे रहा था। इस आवाज को संत यह समझ बैठा था कि शायद हरिद्वार आ गया है। वे रुड़की ही उतर गए। लेकिन, जब पता चला तो उनके पास आगे हरिद्वार जाने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने इस दौरान कई विषम परिस्थितियों को झेला। किसी तरह ट्रक में लिफ्ट लेकर वे हरिद्वार पहुंचे। इस तरह शुरू होती है बाबा रामदेव की योग यात्रा की कहानी। वे कहते भी हैं कि वे देवभूमि के ईश्वरीय आदेश पर हरिद्वार आए हैं। सामान्य कृषक परिवार से आया और गुरुकुल से पढ़े-लिखे इस संत ने आज कामयाबी की ऐसी मिसाल कायम की कि दुनिया दांतों तले उंगली दबा लेती है। आज वे सिर्फ एक गेरुआ धोती पर नजर आते हैं। लेकिन, उनकी देखरेख में अरबों का योग व दैनिक जीवन में उपयोगी होने वाली परंपरागत वस्तुओं तथा आयुर्वेद की दवाओं का कारोबार चलता है।

पिछले दो दशक में योग को रामदेव ने जिस तरह हमारी जीवनशैली में शामिल किया, उसने देश में सोच बनायी कि भारत को दुनिया में योग का नेतृत्व मिलना चाहिए। योग हमारे ऋषि मुनियों के गहने अनुभवों से अर्जित ऐसी विद्या है जो न केवल हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए अपरिहार्य शर्त है बल्कि मनुष्य के आध्यात्मिक उत्थान में सहायक है। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में प्राचीन काल में बिखरे योग के सूत्र को संकलित करके आधुनिक मानव के उत्थान का मार्ग का प्रशस्त किया। आज उन्हीं महायोगी पतंजलि के अधूरे काम को आगे बढ़ाने का काम बाबा रामदेव कर रहे हैं।

यह तथ्य चौंकाता है कि बाबा रामदेव के विभिन्न प्रकल्पों के जरिए एक लाख लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर और पांच लाख लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला है। वहीं दूसरी और दूध, अनाज, मोटा अनाज, जड़ी-बूटी, एलोवेरा, आंवला और अन्य आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग होने वाले पदार्थों के उत्पादकों को भारी मुनाफा हो रहा है। देश भर में खुले पतंजलि के स्टोर तमाम लोगों को रोजगार दे रहे हैं। एशिया का सबसे बड़ा फूड पार्क, योगग्राम, योगपीठ के आसपास रोजगार की ऐसी श्रृंखला खुली है, जो लाखों लोगों का चूल्हा जलाने में मददगार है। आज वे शैक्षिक जगत में गुरुकुल शिक्षा पद्धति के जरिये एक खामोश क्रांति को अंजाम देने में लगे हैं। पतंजलि विश्वविद्यालय हमारी प्राच्य विद्याओं व योग की 21वीं सदी में प्रतिष्ठा के लिए प्रयासरत है।

हर सफल व्यक्ति की आलोचना करना हम अपना धर्म समझते हैं। लेकिन उसके संघर्ष और पुरुषार्थ को हम नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे ही कई विवाद बाबा रामदेव से भी जुड़ जाते हैं या कह सकते हैं जोड़ दिये जाते है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए अन्ना आंदोलन में उनकी भागीदारी सत्ताधीशों के कोपभाजन की शिकार हुई। दरअसल, हमारे मीडिया की प्रवृत्ति रही है, कि वह समाज में नकारात्मक चीजों को खबर बनाने के प्रयास में जीवन के सकारात्मक पक्ष को नजरअंदाज कर देता है। हम भूल जाते हैं कि बाजार को चुनौती देने वाला व्यक्ति का जब कद ऊंचा होता है तो बाजार की नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। हम यह क्यों भूल जाते हैं बाबा रामदेव ने कोल्ड ड्रिंक के घातक प्रभावों का प्रबल विरोध करते हुए कहा था ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर।

दरअसल, कथित शीतल पेय की सांद्रता इतनी अधिक होती है, कि उससे चीनी मिट्टी की परत चमक जाती है। बाबा ने फास्ट फूड व जंक फूड के खिलाफ चेतना जगायी। जब वे कहते कि बर्गर मतलब बरबादी का घर तो लोग हंसते थे। आज तमाम शारीरिक रोगों में जंक फूड के घातक प्रभावों को पश्चिमी देशों के शोधों में स्वीकार किया गया। लेकिन, अरबों-खरबों की मिल्कियत वाली बहुराष्ट्रीय शीतल पेय कंपनियों का विरोध करने का साहस तो बड़ी सरकारें भी नहीं कर पाती। कई देशों में तख्तापलट करने में शामिल रही शीतल पेय उत्पादक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ एक संत की आवाज बुलंद करना बहुत बड़ी बात थी। बाबा मेडिकल माफिया और ड्रग माफिया के खिलाफ जनता को जगाते रहे हैं। हमारे चिकित्सा कारोबार में लगे व्यापारी किस तरह दोनों हाथों से मरीजों को मूंडते हैं। इसकी बानगी कोरोना काल में नजर आई जब लाखों लोगों ने अपनों को बचाने के लिये घर,जेवर व जमीन बेचे व गिरवी रखे। जो साहस हमारे नीति-नियंता व मीडिया न कर पाया ,उस काम को बाबा रामदेव ने किया। हम न भूले कि आज देश-दुनिया में चिकित्सा का पेशे विशुद्ध व्यवसाय में बदल गया है।

अभी चीन से खबर आई कि एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों से कहा कि जो कर्मचारी महीने में पचास किलोमीटर चलेगा या दौड़ेगा, उसे एक महीने की अतिरिक्त तनख्वाह दी जाएगी। कम दौड़ने पर 60 व 40 प्रतिशत के लक्ष्य रखे गए। कई जगह अतिरिक्त बोनस की बात कही गई। मकसद यही है कि उसके कर्मचारी फिट रहें। ये काम तो बाबा रामदेव कई माध्यमों से मुफ्त में कर रहे हैं। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारा व्यवहार, शारीरिक सक्रियता हमारे मनोकायिक रोगों से मुक्ति में सहायक है। चुपके-चुपके बाबा रामदेव ने योग, प्राकृतिक चिकित्सा और स्वदेशी आंदोलन में जो क्रांति की है, उसे देश को महसूस करना चाहिए।