“जनजातीय गौरव दिवस” पर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचे प्रधानमंत्री एकदम अलग मिजाज में नजर आए। वैसे तो उन्होंने शिवराज सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की तारीफ की, जनजातीय गौरव दिवस पर बिरसा मुंडा को नमन किया, गौंड रानी कमलापति को याद किया और शिवराज सरकार की राशन आपके ग्राम योजना और म.प्र. सिकल सेल मिशन का शुभारंभ किया।
तो देश के पहले विश्व स्तरीय कमलापति स्टेशन को राष्ट्र को लोकार्पित भी किया। पर इन औपचारिक कार्यक्रमों में शिरकत करते हुए भी मोदी का मन कुछ अलग ढूंढ रहा था और वह मिला उन्हें करमा नृत्य गीत में। जिसका जिक्र उन्होंने अपने भाषण में दिल खोलकर किया। आदिवासियों को सोच समझ के मामले में शिक्षित होने का दावा करने वाले हम सभी से बेहतर माना। चार दिन का जीवन है फिर माटी में मिल जाना है, मन का गुमान करना व्यर्थ है …आदि भावों के जरिए जहां मोदी नृत्य गीत के भावार्थ का बखान कर रहे थे, तो शायद आदिवासियों की तुलना में खुद को शिक्षित और ज्ञानी समझने वाले बड़े वर्ग की अज्ञानता की खिल्ली भी उड़ा रहे थे, कटु व्यंग्य भी कर रहे थे और समझाने की कोशिश भी कर रहे थे।
कि अहंकार मत करो, जो खेत, खलिहान और चल-अचल संपत्ति को तुम अपना समझ अहंकार कर रहे हो, वह कुछ भी साथ जाने वाला नहीं है, तो अच्छा यही है कि माटी में मिलना है…सोचकर ही व्यक्ति को जीवन कर्म करना चाहिए। शायद माटी का भाव करमा नृत्य गीत से भी मिल रहा था तो शिवराज और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने जब आदिवासी रणबांकुरों की भूमि की माटी का अमृत कलश मोदी को सौंपा, तब भी यह भाव उनके मन में जीवंत हो उठा होगा।
खैर जनजातीय गौरव दिवस पर दो बातें खास थीं कि मोदी ने जनजातीय आबादी को पढ़े-लिखे होने का दावा करने वाली आबादी से ज्यादा समझदार स्वीकार किया। तो यह भी माना कि जनजातीय आबादी के बिना आत्मनिर्भर भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रधानमंत्री ने राज्यपाल मंगुभाई पटेल की भी दिल खोलकर तारीफ की और माना कि उन्होंने अपना जीवन जनजातियों के लिए खपा दिया।
मोदी के साथ जंबूरी मैदान के जनजातीय मेगा शो में मौजूद हर व्यक्ति करमा नृत्य गीत को सुन रहा था और नृत्य का आनंद ले रहा था लेकिन उसका गूढ़ संदेश शायद ही किसी ने समझने की कोशिश की हो। जब मोदी ने ध्यान दिलाया, शायद तब ही सभी गैर आदिवासियों और हो सकता है कि पढ़े लिखे आदिवासियों की भी समझ में आया हो कि जनजातीय कलाकारों द्वारा अत्यंत मनोहारी एवं अर्थपूर्ण नृत्य-गीत की प्रस्तुति में जीवन निष्कर्ष छिपा हुआ है।
मोदी ने कहा कि मैं इन्हें ध्यान से देख रहा था। इनके हर नृत्य, गीत, जीवन-शैली, परंपराओं में कोई न कोई तत्व ज्ञान होता है। आज यह नृत्य गीत मुझे बता रहे थे कि जीवन चार दिन का होता है, फिर मिट्टी में मिल जाता है। धरती, खेत, खलिहान किसी के नहीं रहते, धन-दौलत यहीं छोड़कर जानी होती है। मन में गुमान करना व्यर्थ है। जीवन का उत्तम तत्व ज्ञान जंगल में रहने वाले ये जनजातीय भाई-बहन हमें बताते हैं। हम अभी यह सब सीख रहे हैं।
तो मोदी ने आदिकाल से आदिवासी समाज की महत्ता को निरूपित करते हुए कहा कि जनजातीय समाज का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान है। भगवान श्री राम को वनवास के दौरान जनजातीय समाज द्वारा दिये गये सहयोग ने ही मर्यादा पुरूषोत्तम बनाया। जनजातीय समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों, जीवन-शैली से हमें प्रेरणा मिलती है। यानि कि राम का जीवन भी आदिवासी समाज को अलग करने पर पूरा नहीं होता और यही बात आज भी अक्षरश: लागू है।
इसके साथ ही मोदी ने कहा कि प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल मध्यप्रदेश के पहले जनजातीय राज्यपाल हैं। उन्होंने जनजातीय वर्ग के कल्याण के लिये अपना पूरा जीवन खपा दिया। मोदी ने कहा कि आजादी के अमृत काल में आज के दिन हम यह संकल्प भी ले रहे हैं कि राष्ट्र के विकास के लिए दिन-रात मेहनत करेंगे।
मोदी ने रानी कमलापति के प्रति भी अपने भाव प्रकट करते हुए कहा कि भोपाल के भव्य रेलवे स्टेशन का कायाकल्प ही नहीं हुआ बल्कि रानी कमलापति का नाम रेलवे स्टेशन से जोड़ने से गोंड समाज सहित सम्पूर्ण जनजाति वर्ग का गौरव बढ़ा है। उन्होंने कहा कि आज का दिन भोपाल और मध्यप्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए गौरवशाली इतिहास का दिन है। आज पूरा देश जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है। इस मौके पर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का लोकार्पण हमारे लिये गौरव की बात है।
तो निश्चित तौर पर 15 नवंबर का दिन “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में बिरसा मुंडा की जयंती मनाता रहेगा। तो गौंड रानी कमलापति का नाम विश्व स्तरीय स्टेशन का गौरव भी बढ़ाता रहेगा। इसके साथ ही पहले जनजातीय राज्यपाल के बतौर मंगुभाई पटेल का जनजाति समाज के प्रति योगदान का जिक्र भी जरूर होगा, क्योंकि अक्सर राज्यपाल का दायरा राजनैतिक मंचों पर औपचारिक संबोधन तक ही सीमित रहता है।
लेकिन मोदी ने जिस तरह राज्यपाल को विशेष तौर पर खुलकर अपने उद्बोधन में जगह दी, उसे अच्छी पहल माना जा सकता है। मोदी के संदेश को कौन किस तरह ग्रहण करता है, यह “जाकी रही भावना जैसी” की तरह अलग-अलग नजर आएगी…लेकिन जनजातीय तत्वज्ञान को कभी भी नकारा नहीं जा सकता, यही राम का जीवन बताता है तो यही गीता का भी ज्ञान है।