मोदी-शाह के दौरों ने बढ़ाई दावेदारों की धड़कनें

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मोदी-शाह के दौरों ने बढ़ाई दावेदारों की धड़कनें

भोपाल: मध्यप्रदेश में अगस्त के बाद हर माह हो रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरों ने अगले साल होने वाले चुनाव के लिए दावेदारी कर रहे विधायकों और टिकट के दूसरे दावेदार नेताओं की धड़कनें बढ़ा दी हैं। इन नेताओँ के वैसे तो सरकारी योजनाओँ के लोकार्पण और शिलान्यास के रूप में सामने आ रहे हैं लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसके अलग मायने निकाल रहे हैं और कहा जा रहा है कि इन दौरों के माध्यम से पार्टी के शीर्ष नेता उन क्षेत्रों में बीजेपी की धमक बनाए रखना चाहते हैं जहां पार्टी द्वारा कराए गए सर्वे में नुकसान होने की स्थिति बन रही है।

प्रधानमंत्री मोदी पिछले एक माह में दो बार एमपी के दौरे पर आ चुके हैं। उनका पहला दौरा 17 सितम्बर को कूनो में दक्षिण अफ्रीका से आए चीतों को बाड़े में छोड़ने को लेकर था लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इस दौरे के साथ श्योपुर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी समेत ग्वालियर-चंबल अंचल के जिलों तक यह मैसेज पहुंचाने की कोशिश की गई है कि बीजेपी ही सबसे मजबूत और सशक्त दल है और यही देश हित के लिए काम करने वाला दल है। इसके बाद उनका दूसरा दौरा उज्जैन में 11 अक्टूबर को हुआ जिसमें मालवा-निमाड़ के लिए राजनीतिक संदेश दिया गया।

यहां धर्म और अध्यात्म के जरिये लोगों में बीजेपी की नीतियों को सामने लाने का काम किया गया और माना जा रहा है कि इसे आने वाले दिनों में पूरे प्रदेश में और विस्तारित रूप में पहुंचाने का काम किया जाएगा। इस बीच यह भी चर्चा है कि पीएम मोदी अगले माह नवम्बर में विन्ध्य क्षेत्र में रीवा या सीधी जिले के दौरे पर आ सकते हैं। यहां वे सीधी जाने के लिए मोहनिया घाटी के नीचे सुरंग के रूप में बनाई गई सिक्स लेन टनल और सीधी जाने के लिए गोविन्दगढ़ के समीप स्थित पहाड़ में बनाए गई प्रदेश की सबसे लंबी रेलवे सुरंग के लोकार्पण में शामिल हो सकते हैं और सीधी जिले के लिए नई रेल सेवा का ऐलान भी कर सकते हैं। इसके माध्यम से यहां से खिसकते भाजपा के जनाधार को थामने का काम किया जायेगा।

इसलिए परेशान हो रहे दावेदार
पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं के दौरों ने उन विधायकों की परेशानी बढ़ाई है जो क्षेत्र में सक्रिय नहीं हैं और जिनकी छवि क्षेत्र में खराब है और उसका लाभ उठाने के लिए उन्हीं के दल के प्रतिद्वंद्वी नेता सक्रिय हैं। इसके साथ ही बीजेपी में कई मंत्रियों, विधायकों के टिकट उम्र के क्राइटेरिया और जीत-हार के सर्वे के आधार पर कटना तय है। यह स्थिति हर चुनाव में बनती है। इसलिए भी भविष्य में विधायक बने रहने का सपना देखने वाले पार्टी नेताओं ने इन दौरों के मायने निकालने के साथ अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम तेज कर दिया है।